Gurpreet Kaur

Drama Inspirational Children

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Gurpreet Kaur

Drama Inspirational Children

रंगो से अच्छी थी बे रंग होली

रंगो से अच्छी थी बे रंग होली

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सुधा अपनी बच्ची को आज अपने साथ काम पर ले आयी सोचा चलो आज होली का त्योहार भी है और बच्ची की छुट्टी भी इसको साथ ले चलूँ। अपने काम पर पहुचने के बाद सुधा ने सबको अपनी बच्ची से मिलाया। और बताया कि आज इसकी छुट्टी थी तो अपने साथ ले आयी और यह ज़िद भी कर रही थी कि होली खेलनी है, अब घर में बच्ची को कैसे छोड़ देती ? 

रेश्मा-(मकान मालकिन )यह तो ठीक है, लेकिन यह करेगी क्या ?

सुधा- बच्चों को होली खेलते हुए देख लेगी और खुश हो जाएगी।

रेश्मा-चल तू काम कर ले, बच्ची को यही बैठने दे।

सुधा काम में लग जाती है।

कुछ देर बाद ख़ुशी सुधा की बेटी अपनी माँ के पास जाती है और पूछती है माँ हम घर कब जाएँगे ?

सुधा-बस काम ख़त्म होने के बाद।

गर्व-(रेश्मा का बेटा) माँ चलो होली खेलते है।

सभी आस-पड़ोस के लोग होली खेलते है, ख़ुशी सब को बैठ कर देख रही होती है।तभी गर्व मज़ाक़ में ख़ुशी को रंग लगा देता है। ख़ुशी का भी मन कर आता है खेलने को। वो झूम कर पूरी मस्ती में होली खेलती है।

कुछ देर बाद जब घर जाने की बारी आती है, सुधा अपनी बच्ची को देखती है, उसके सारे कपड़े ख़राब हो चुके थे। घर जाने से पहले सुधा ने रेश्मा से कहा -मालकिन मुझे कोई पुराने कपड़े दे दो अपने बच्चे के ताकि में अपनी बच्ची को पहना सकूँ इसने सारे कपड़े ख़राब कर लिए।

रेश्मा- ऐसे ही ले जा, इसे घर अब में अपने बच्चे के कपड़े नही दे सकती।

सुधा- ने कहा चलो इसको नहाने की इजाज़त दे दो ताकि चेहरा साफ़ कर सकूँ।

रेश्मा- ऐसे तुम लोगों को अपना बाथरूम उसे करने के देने लगी तो बस ....पहले तो इसे खेलना ही नही चाहिए था।

सुधा- एक चूली पानी की लेती है, और उससे अपनी बच्ची का चेहरा साफ़ करती हुई सोचती है," इससे अच्छा था कि बेरंग होकर दूसरों को होली खेलते हुए देख लेती।"


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