रक्षाकवच
रक्षाकवच


माँ कमरे के बाहर से सुमन को आवाज लगाती हैं- "अरे बेटा सुमन जल्दी से उठ तो तेरे भाई को राखी बांधने भी तो चलना है।"
माँ की आवाज सुनते ही सुमन पलंग पर से तपाक से उठ खड़ी होती है और पास ही में रखी भाई की तस्वीर पर स्नेह से हाथ फेरती है।
कुछ देर बाद सुमन "भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना........." गीत गुनगुनाते हुए पूजा की थाली सजाती है।
तभी माँ सुमन के कंधे पर हाथ रखकर बाहर की तरफ इशारा करती है और फिर दोनों माँ- बेटी बाहर खड़ी टैक्सी में जाकर बैठ जाती हैं। दस मिनट बाद टैक्सी हॉस्पिटल के सामने आकर रुक जाती हैं। और सुमन भावविभोर होकर हॉस्पिटल के दरवाजे की तरफ देखती हुई टैक्सी से नीचे उतरती है। फूलों से सजी हुई थाली के साथ सुमन हॉस्पिटल के अंदर प्रवेश करती है और वार्ड नंबर 8 के दरवाजे को खोलती है। सामने बिस्तर पर सुमन का भाई अनमोल सुमन को देखते हुए चहक उठता है।
बहन अपने भाई के माथे को बड़े ही प्रेम से सहलाती है। और सुमन थाली में रखा रक्षाकवच भाई के हाथ पर बांधने के लिए जैसे ही उठाती है, तो अनमोल बहन के हाथ को वहीं रोक लेता है। सुमन प्रश्नचित्त निगाहों से अनमोल की तरफ देखती है। और भाई अनमोल कुमकुम का तिलक बहन के माथे पर लगाते हुए रक्षाकवच बहन सुमन की कलाई पर बांध देता है। बहन आश्चर्य से कभी अपनी कलाई पर बंधे रक्षाकवच को तो कभी अपने भाई अनमोल को देखती है।
अनमोल सुमन के गले लगते हुए बोल पड़ता है -"दीदी पापा के जाने के बाद आप ही तो हमारा सहारा है। आपने पूरे घर को बिल्कुल पापा की तरह ही संभाल रखा है। एक महीने से आप रोज मेरा ख्याल रख रही हो। मेरे इलाज में कोई कमी नहीं छोड़ी है आपने। इसीलिए इस रक्षाकवच पर सबसे ज्यादा हक आपका है। हर मुसीबत में मेरी ढाल बनकर खड़ी रही हैं आप। प्लीज दीदी इसी तरह से मेरी रक्षा करते रहिएगा। बहुत अच्छा लगता है जब आप रोज प्यार से मेरे माथे को सहलाती हो।"
अनमोल की बात सुनकर सुमन की आंखें भर आती है और वह उसके माथे को सहलाते हुए उसे आलिंगन में भर लेती हैं।
पास खड़ी माँ दोनों को देखकर मुस्कुरा रही होती है।