हौसलों की उड़ान
हौसलों की उड़ान
आज राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में तैयारी जोरों पर थी। प्रिंसिपल चतुर्वेदी जी स्वयं सभी तैयारियों का निरीक्षण बहुत बारीकी से कर रहे थे। क्योंकि स्वतंत्रता दिवस के मौके पर कलेक्टर साहिबा बतौर चीफ गेस्ट बनकर पधारने वाली थी।
कलेक्टर साहिबा की मेहमाननवाजी में कोई कमी न रह जाए। इस बात का खास ख्याल रखा जा रहा था। पूर्णिमा भी आज बेहद खुश थी क्योंकि आज उसे कलेक्टर साहिबा के सामने अपनी स्वरचित कविता पाठ करने का सुनहरा अवसर प्रदान हो रहा था। पूर्णिमा के माता-पिता भी आज अपनी बेटी की हौसला अफजाई के लिए विद्यालय में आने वाले थे। कुछ समय बाद में कलेक्टर साहिबा की गाड़ी विद्यालय परिसर में आई।
कलेक्टर साहिबा के आते ही प्रिंसिपल चतुर्वेदी जी नें बिना समय गवाए कार्यक्रम का शुभारंभ किया। सर्वप्रथम झंडा फहरा कर राष्ट्रगान गाया गया। तत्पश्चात सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुआत की गई। सभी बच्चे कलेक्टर साहिबा को अपने सामने मौजूद देखकर उत्साहित थे। सभी की आंखों में आज कुछ विशेष कर दिखाने की चमक थी। इसी बीच स्टेट से पूर्णिमा का नाम अनाउंस हुआ।
पूर्णिमा ने स्टेज पर अपना कविता पाठ शुरू किया, तो पूर्णिमा के माता-पिता की खुशी का ठिकाना ना रहा। जैसे ही पूर्णिमा ने अपना कविता पाठ समाप्त किया, तो पूरा विद्यालय परिसर तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। यहां तक कि कलेक्टर साहिबा ने भी पूर्णिमा को उठकर गले से लगा लिया। यह सब देखकर पूर्णिमा के सपनों को पंख लग गए थे। कलेक्टर साहिबा के भाषण के साथ कार्यक्रम का समापन तो हो गया था। लेकिन पूर्णिमा का ध्यान अभी भी पूरी तरह से वहीं पर लगा हुआ था। अब उसमें कुछ विशेष कर दिखाने का जुनून दिखाई दे रहा था। उसके सामने बस अब उसके सपने थे। पिता आज अपना गर्व भरा सिर उठाकर विद्यालय का सारा वाक्य गांववालों को सुना रहे थे।
माँ भी आज अपनी लाडली के लिए कुछ विशेष व्यंजन पका रही थी। माता-पिता को आज लग रहा था कि पूर्णिमा उनका जीवन खुशियों से भर देगी। आखिरकार पिता को अपनी खेती के काम से ही घर का गुजारा चलाना पड़ता था। पूर्णिमा निरंतर अपने लेखन कार्यों में लगी हुई थी। अब तो पूर्णिमा ने अपनी पढ़ाई भी पूरी कर ली थी। लेकिन एक दिन अचानक पूर्णिमा के पिता पर खेत में पानी देते हुए बिजली का तार गिर गया। और हॉस्पिटल ले जाने पर उनकी मृत्यु हो गई। पूर्णिमा और उसकी माँ पर दुखों का पहाड़ टूट गया था। पूर्णिमा अब एकदम शांत रहने लगी थी। पूर्णिमा की माँ के तमाम समझाने की कोशिश करने के बावजूद भी वह अपनी पुरानी स्थिति में नहीं लौट पा रही थी। पूर्णिमा और उसकी मां का जीवन पूर्णतः गरीबी में व्यतीत हो रहा था।
एक रात पूर्णिमा जब सो रही थी, तो वह स्वप्न में अपने उसी विद्यालय में पहुंच जाती है। जहां उसके पिता अपनी बेटी का सम्मान देखकर मारे खुशी के उछल रहे थे और गर्व भरी नजरों से अपनी लाडली को देख रहे थे। पूर्णिमा का स्वप्न टूटते ही उसकी आंखों से आंसुओं की धाराएं बह चलती हैं और वह अपनी मां के पास जाकर उसकी गोद में सिर रखकर सिसकियां भरने लगती हैं। माँ भी अपनी बेटी को देखकर रोने लगती हैं। माँ बेटी के इन आंसुओं से आज ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मानो इन आंसुओं की धाराओं से सहस्त्र चट्टानें टूट कर बह जाएंगी। पूर्णिमा ने अपनी माँ से कहा कि वह अब अपने पिता के सपने को सच करेगी। वह हौसला अब कभी नहीं हारेगी।
पूर्णिमा के लिए यह सुबह एक नया जीवन लेकर आई थी। जिसमें उसकी वही सपने थे, जो उसने अपने पिता के साथ देखे थे। पूर्णिमा ने फिर से लिखना प्रारंभ किया। इसी के साथ ही उसने सिविल सर्विसेज की परीक्षा भी दी। परिणाम आने पर पूर्णिमा की खुशी का ठिकाना ना रहा। उसने अपनी माँ को गले से लगा लिया और बताया कि उसका सिविल सर्विसेज में चयन हुआ है। पूर्णिमा के परिवार में अब फिर से खुशियां लौट आई थी। पूर्णिमा ने अपने लेखन क्षेत्र में भी काफी प्रसिद्धि हासिल की थी।आज उसे खुशी थी कि आज उसने अपने पिता का सपना पूरा कर दिखाया है और उसके पिता जहां भी हैं उन्हें उस पर गर्व है। पूर्णिमा की माँ ने उसे गर्व से गले लगा लिया।