रक्षाबंधन
रक्षाबंधन


वह बड़ी खुश थी। बड़े मन से घर का कोना कोना साफ किए जा रही थी। उसकी आंखों में एक अजीब सी चमक थी। ऐसे लग रहा था मानो दुनिया जहान की खुशियों ने उसके घर पर दस्तक दे दी हो। वह फर्राटे से एक के बाद एक काम किए जा रही थी। बड़े प्यार से चीजें सजा रही थी। उसकी इस उत्तेजना देखते ही बनता था। ऐसा लग रहा था मानो बंजर जमीन पर कुछ हरियाली नजर आ रही थी। पड़ोसी भी टकटकी लगाए देख रहे थे और आपस में फुसफुसा रहे थे कि न जाने ऐसी क्या बात है कि यह आज इतना चहक रही है।
वह सभी के बातों को अनसुना करके अपनी ही धुन में काम किए जा रही थी कि तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। आवाज सुनते ही उसकी सांसें तेज हो गईं और उसका हृदय ज़ोर से धड़कने लगा। दरवाजे की ओर जाते हुए उसकी नजर मेज़ पर रखे घड़ी पर पड़ी तो वह दोप पल के लिए रुक गई। वह सोचने लगी कि भैय्या की गाड़ी तो चार बजे आने वाली है और उन्हें घर पहुंचने में दो घंटे तो लग ही जाएंगे तो अब इस वक्त कौन आया होगा? इसी सोच में वह रूक गई और अपने ही किन्हीं ख्यालों में उलझ कर रह गई। फिर दोबारा दरवाजे पर ज़ोर ज़ोर से दस्तक की आवाज सुनाई दी। तब वह हड़बड़ाते हुए उस ओर दौड़ी। किवाड़ खोलकर देखा तो सामने माली खड़ा था। उसके भैय्या को रजनीगंधा के फूल बहुत पसंद हैं इसलिए माली से कहकर उसने उन्हीं फूलों के गुलदस्ते बनवाए थे। माली को खड़ा देख उसे गुस्सा और दुःख दोनों हुआ पर फिर उन फूलों की ओर देख वह मन ही मन मुसकाई।
उन फूलों को उनकी जगह पर सजाकर वह बाकी की तैयारियों में जुट गई। दिन कब ढल गया और शाम कब हो गई इस बात का उसे पता ही नहीं चला। घर की सजावट को निहारते हुए उसे याद आया कि उसे भी सजना है अपने भैया के आने से पहले। शाम के छः बज रहे थे। वह टकटकी लगाए हुए दरवाजे पर ही खड़ी थी। दूर दूर तक कोई दिखाई नहीं दे रहा था। जैसे जैसे समय बीत रहा था उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
उसे लगा कि इस साल भी भैया नहीं आएंगे और फिर छुट्टी न मिलने का बहाना बना देंगे। रात के दस बज रहे थे और वह निराश हो कर भीतर चली गई। वह खुद के लिए और अपने पति लिए खाना थाली में परोस कर खाना खाने बैठ ही रही थी कि बाहर किसी की आहट सुनाई दी। दोनों मियां बीवी दरवाजे की ओर गए और जब किवाड़ खोला तो उसकी आंखों पर उसे यकीन नहीं हो रहा था। उसके भैय्या उसके सामने खड़े थे।
खुशी के मारे वह फूले नहीं समा रही थी और क्या करना है यह समझ में नहीं आ रहा था। वह कुछ पल युंही हतप्रभ रह गई। उसके पति ने उसे अपने भाई को अंदर बुला ने को कहा। अंदर आते ही वह अपने भाई को गले लगा कर रोने लगी। भाई भी रो पड़े। पति की आंखें भर आईं।
फिर आरती की थाली लेकर वह आई। उसने भाई से कमीज़ के दस्ताने ऊपर करने को कहा तब उसकी नजर अपने भाई के दुसरे हाथ की ओर पड़ी और वह फुट फुटकर रोने लगी। तब भैय्या ने उसे सांत्वना देते हुए कहा कि वह इतने सालों से जिस हाथ पर राखी बांधती आई है वह तो आज सलामत है फिर वह किस लिए रो रही है। भाई बहन का रिश्ता ही कुछ ऐसा है। कहने को तो भाई बहन का रक्षक होता है पर आज एक बहन के प्यार, विश्वास और आस्था ने न केवल अपने भैय्या की जान बचाई बल्की उसे युद्ध में में भी जीत दिलाई। इस लिए सच्चे रक्षक तो बहन ही होती हैं। योंही बातों में कब रात बीत गई और भोर हो गई इसका पता ही नहीं चला। उसे ऐसा लगा कि बरसों बाद आज उसने सच मुच रक्षाबंधन पर्व मनाया है। मन तृप्त हो गया उसका भी और उसके भैय्या का भी।