रजाई भाग 9
रजाई भाग 9
श्यामू का मुंह उतरा हुआ था। कितना समय बर्बाद हो गया और काम कुछ बना नहीं। बल्कि संबंधों में खटास आ गई थी अब। अब तक तो दोनों भाइयों में सीधे सीधे कुछ कहा सुनी नहीं हुई थी मगर इस घटना ने श्यामू को सोचने पर मजबूर कर दिया। उस समस्या पर तो बाद में ध्यान दे लेंगे मगर अभी तो सोने की व्यवस्था करनी थी इतनी रात में। सबसे पहले तो मेहमानों को बिस्तरों की व्यवस्था करनी थी फिर खुद की। कम से कम दो रजाइयां चाहिए थीं। इतनी रात को कहाँ से लायें रजाइयां ? यक्ष प्रश्न था श्यामू के सामने मगर उसका कोई उत्तर नहीं था उसके पास। काश कि वह पिताजी की बात मान लेता पहले तो कम से कम जग हंसाई से तो बच जाता। मगर अब क्या हो सकता था।
घर में रखे सब बिस्तर निकाले गये। कुल मिलाकर दो रजाइयों की कमी थी। इसका क्या विकल्प हो सकता है इसे तलाशने लगा था श्यामू। दो लोई रखी थीं घर में, एक कंबल था मगर इनसे कैसे काम चलता ? पर मजबूरी थी और कोई उपाय भी नहीं था उसके पास।
श्यामू ने एक कंबल उठाया और उस पर एक शॉल डाल दिया। उसने रचना के साथ अपनी साली को इसमें सुला दिया। चूंकि वह कमरे में थी इसलिए ठंडी हवा नहीं लग रही थी। इससे काम चल सकता था। खुद ने अपने साले को साथ सुलाया और दोनों लोई ओढ़ लीं। पौष की सर्दी और बाहर बरामदे में बिछी चारपाई। बिना रजाई केवल लोई से कैसे सर्दी रुकती। शीत लहर ने जैसे ठान लिया था कि उसे आज की रात में विश्व रिकॉर्ड बनाना है सर्दी का। अपनी फुल स्पीड से दौड़ रही थी वह। बेइज्जती और ठंड ने एक और एक ग्यारह का काम किया था। नींद आने का प्रश्न ही नहीं था। कैसे आ सकती थी नींद। नींद और सर्दी का तो वैसे भी कुत्ते-बिल्ली का सा बैर है। दोनों एक साथ नहीं रह सकते हैं। या तो सर्दी ही रह सकती है या फिर नींद ही। सर्दी के रहते नींद की क्या मजाल जो वहां आने की हिम्मत कर सके।
राम का नाम लेकर रात बिताने की कोशिश की जाने लगी। वो तो गनीमत थी कि दोनों साले, बहनोई साथ सो रहे थे। एक से भले दो। एक ही बिस्तर पर जब दो आदमी साथ सोते हैं तब सर्दी कम लगती है। लेकिन यहां तो सर्दी और साहस में जंग हो रही थी। साहस टूटने का नाम नहीं ले रहा था और सर्दी उसे तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रही थी। दोनों अपने अपने मिशन पर लगे हुए थे। ऐसा कई बार लगा कि साहस हार जाएगा और सर्दी जीत जायेगी। कभी कभी साहस पिछड़ता सा दिखने लगता था। मगर जब कोई विकल्प नहीं हो तब मनुष्य जी जान लगा देता है खुद को बचाने में। शायद साहस को यह बात समझ में आ गई थी। उसने अपनी समस्त शक्ति को पुनः एकत्रित किया और अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने लगा। जब अस्तित्व पर बात आ जाती है तो कुछ अतिरिक्त ऊर्जा भी बनने लगती है। इस अतिरिक्त ऊर्जा के बल पर ही साहस नये कीर्तिमान रच देता है।
उस रात भी वैसा ही हुआ। सर्दी की जी तोड़ कोशिशों के बावजूद वह साहस को तोड़ पाने में कामयाब नहीं हो पाई। एक एक मिनट भारी पड़ रहा था मगर श्यामू ने साहस नहीं छोड़ा था। बाहर कुत्तों के भोंकने की तेज आवाजें आ रही थीं। शायद वे भी सर्दी से दो दो हाथ कर रहे थे श्यामू की तरह। पता नहीं श्यामू के साले को नींद आई या नहीं मगर वह चुपचाप लेटा रहा। श्यामू ने यही सोचा कि वह सो रहा है।
राम राम करते पांच बज गए थे सुबह के। गोकल पांच बजे जग जाता था। गाय भैंसों को चारा देना, पानी पिलाने का काम उसे करना होता था। गोकल ने खाट छोड़ दी। घर में जाग हो गई थी। अब बिस्तर में पड़े रहने का कोई औचित्य नहीं था। बिस्तर भी तभी अच्छा लगता है जब उसमें गरमाहट हो। जब उसमें गरमाहट ही नहीं है तो फिर बिस्तर किस काम का है ? श्यामू ने भी बिस्तर छोड़ दिया।
गोकल ने बाहर अलाव जला दिया। श्यामू अलाव के पास आ गया। सर्दी अगर डरती है तो केवल आग से जैसे कि बीवियां केवल "कॉकरोच" से ही डरती हैं और किसी से नहीं। आग के सामने सर्दी टिक नहीं पाती है और नौ दो ग्यारह हो जाती है। श्यामू की सर्दी भी नौ दो ग्यारह हो गई थी। श्यामू को लगा कि उसके साले को कौन सी नींद आई होगी ? सर्दी के मारे जब उसे ही नींद नहीं आई तो साले को कैसे आयेगी ? इसलिए उसे आवाज देकर अलाव के पास बुला लिया श्यामू ने। वो भी कौन सा सो रहा था, तुरंत अलाव के पास आ गया। इतने में रचना चाय बनाकर ले आई।
गरम गरम चाय और सामने अलाव ! ये तो वही बात हो गई कि "चूपड़ी और दो दो"। आनंद आ गया। सब लोग अलाव के सहारे से बैठ गए और रात के अनुभव सुनाने लगे। बेचारे साले और सालियों की अजीब दुविधा थी। खुलकर अपने अनुभव भी नहीं कह सकते थे। जैसे जबरा मारे और रोने भी न दे। बेचारे झेंपते हुये बोले "हमें तो आ गई थी नींद। खूब सोये हम तो" मगर आंखें बता रही थी कि उनकी हालत भी वैसी ही थी जैसी श्यामू की थी।
