रास्ते का दीपक
रास्ते का दीपक
सुबह बहुत साफ थी। ठंडी हवाएँ चल रही थी। गर्मियों की सुबह यहाँ साफ, शान्त और ठंडी होती है। लेकिन शामें धूलभरी। अभी सुबह के आठ ही बजे थे, वह अपना बेग उठाकर घर से निकल ही रहा था कि दरवाजे पर विधायक चिमनलाल जी मिल गए। बड़े जोरों की नमस्कार की डॉक्टर साहब ने।
विधायक जी बोले, ‘डाक्टर साब घर आना, जरा जल्दी, पंकज की तबीयत ज्यादा खराब है.’
‘जी हाँ, अभी आया ही समझो।' डॉक्टर शर्मा ने जवाब दिया। चिमनलाल जी करीब पैसठ वर्ष के होंगे। कानों पर उगे लम्बे बाल और भौहों के बाल सफ़ेद झक्क हो गए थे, मगर शरीर में गजब की फुर्ती थी। चिमनजी डॉक्टर शर्मा का खास ध्यान रखते थे। उनकी तगड़ी सिफारिश से ही डॉक्टर शर्मा की इस कस्बे में पोस्टिंग हुई थी। इसलिए डॉक्टर पर उनके एहसान थे। यहाँ मंडी होने की वजह से व्यापारियों की बस्ती ज्यादा है और डॉक्टर की प्रेक्टिस अच्छी चलती है। फिर डॉक्टर शर्मा तो पूरे सेल्समैन थे। ग्राहक पटाने के सारे नुस्खे उन्हें पता थे। वैसे तो इस कस्बे में पोस्टिंग के लिये हजारों की रिश्वत ली जाती है, ठीक वैसे ही जैसे थाने का मोल, लाखों में होता है लेकिन चिमनजी डॉक्टर शर्मा के पिता के अच्छे मित्रों में से थे। अत: जैक से काम चल गया, चैक की जरूरत नहीं पड़ी।
पैसे के लालच में, डॉक्टर शर्मा ने तमाम तरह के गलत काम किये सरकारी दवाइयों की हेराफेरी की, अस्पताल में मरीजों को देखने की बजाय घर पर ही मरीजों को देखना और ज्यादा फ़ीस वसूलना, पच्चीस की जगह पचास लेना। जैसा वक्त और मरीज। गरीब बेचारे अस्पताल में लाइन लगाकर खड़े ही रहते। गूंगी जनता अन्दर ही अन्दर गालियाँ देती लेकिन ऊपर से पूरा आदर देती। डॉक्टर उनके लिये देवता था, जो मरते को नई जिन्दगी दे सकता है। फर्जी मेडिकल लीव देना तो आम बात थी लेकिन विधायक के कहने पर वे झूठी मेडिकल रिपोर्ट भी दे देते। पार्टी अच्छी रकम देने को तैयार हो तो वे खुद भी खुशी-खुशी झूठी रिपोर्ट दे देते। ऐसा नहीं था कि वे विधायक के कहने पर गलत काम करते थे बल्कि वे स्वयं वे सब काम करते थे जिससे अधिक पैसा मिले।
किन्तु जब से मनोरमा वाला केस लगा है, डॉक्टर की भारी बदनामी हुई। उस केस में मनमाफिक पोस्टमार्टम रिपोर्ट देने के पचास हजार मिल चुके थे। पार्टी सॉलिड थी लेकिन अगली पार्टी भी कम नहीं थी, उसने केस खुलवा ही लिया हालाँकि होने-जाने को कुछ नहीं था। क्योंकि विधायक जी का वरदहस्त उन पर था। फिर भी नाम तो बिगड़ता ही है। दिल के कोने में एक अनहोना डर बना ही रहता है। कस्बे से कभी-कभी उसके ट्रांसफर की आवाज उठती है लेकिन उन्हें राजनैतिक संरक्षण प्राप्त होने से दब जाती है। राजनीति के खिलाड़ी को चाचा बनाया तो अब वह उसकी गेंद बन गया था।
आज वह कुछ विचलित था। अपने कमरे में बैठकर व्हिस्की के पेग चढ़ाये, टांगों को मेज पर रखा और कुर्सी पर झूलते हुए, सिगरेट फूंकने लगा। कमरे में वह नितांत अकेला था। रात का सन्नाटा हवा के झोंके के साथ कमरे में घुस आया। रात गहरा गई थी कमरे की रोशनी पीली जर्द पड़ गई थी। उसने कुर्सी से उठने की कोशिश की पर यह एक निरर्थक कोशिश थी। विचार उसके दिमाग में भीड़ की तरह फ़ैल गए।
‘स्साला कह रहा था, डॉक्टर साहब ध्यान रखना यह मेरा केस है। मेडिकल रिपोर्ट में लिख देना कि नैचुरल डैथ है। बाकी मैं सब निपट लूँगा।’ ‘क्या निपट लेगा?’ डॉक्टर ने एक भद्दी सी गाली होठों में बुदबुदाई।
यकायक मुर्दे का नीला पड़ा पार्थिव शरीर उसके सामने जैसे खड़ा हो गया और अट्टहास करने लगा। –‘आज नहीं छोडूंगा तुझे! सच्चाई सामने नहीं आई तो ये खंजर तेरे सीने में होगा।’ वह चौंक गया। उसने कमरे में चारों ओर दृष्टि दौड़ाई। दरवाजे के पास एक छाया सी खड़ी थी। लाल सुर्ख अंगारे सी आँखें, उसके चेहरे पर हेडलाईट की तरह पड़ी। वह हड़बड़ाकर खड़ा हो गया, हालाँकि उसके पाँव उसका साथ नहीं दे पा रहे थे। उसका दिल डूबने लगा, उसने हिम्मत कर अपने पांवों को फर्श पर जमाया। वह उसे पहचान गया था, वह मृतक का भाई था।
‘बेफिक्र रहो, आखिर मैं डॉक्टर हूँ।’ वह उसे विश्वास दिलाने के लिये आगे बढ़ा लेकिन तेजसिंह ने तेजी से दरवाजा बंद कर दिया। उसे लगा कि डॉक्टर भाग जायगा। ‘सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली। तुम कितने लालची और कमीने हो यह सारा इलाका जानता है। यह मामला रफा-दफा नहीं होगा और होगा तो तुम्हारी लाश उसके साथ जायेगी।' और उसने चमकते खंजर को हवा में लहरा दिया।
मौत का अचानक सामना डॉक्टर को डरा गया। उसके हाथ से सिगरेट गिर गई क्षण भर वह बुत की मानिंद सिर्फ खंजर देखता रहा। दूसरे ही क्षण वह बेफिक्र हो गया। उसने निर्णय ले लिया था ‘रिपोर्ट सत्य ही दूँगा, कुछ भी हो।’ उसने झुककर सिगरेट उठाई और पीने लगा। ‘आज जिस स्थिति में, मैं हूँ उसकी सम्पूर्ण जिम्मेदारी मेरी अपनी है। पैसा बटोरते-बटोरते मोहरा बनकर रह गया। आज जहाँ पहुँच गया हूँ, वहाँ खंजर ही मेरी नियति हो सकती है.’ भावनाओं में ही सारे अपराध होते है। लेकिन मैं तो लालच में अपराध कर रहा हूँ। और झूठ को सत्य बताकर मैं दूसरे की भावनाओं को ही आहत कर रहा हूँ। आहत भावनाएँ बदला लेकर रहेगी। तब मेरा क्या होगा? सत्य बोलने पर ज्यादा से ज्यादा ट्रांसफर ही तो होगा, कमाई कम हो जायेगी लेकिन इंसान तो बना रहूँगा।
चलो तेजसिंह। वे सीढ़ियाँ उतरने लगे। तेजसिंह ने खंजर मजबूती से पकड़ रखा था। अस्पताल के अहाते में ही डॉक्टर का क्वाटर था। डॉक्टर ने पोस्ट मार्टम की रिपोर्ट लिखी दस्तखत किये और एक प्रति तेजसिंह को दी। रिपोर्ट में साफ लिखा था कि मृतक की मौत जहर से हुई है।
तेजसिंह डॉक्टर के पैरों में गिर गया और हिचकी लेने लगा, तेजसिंह पश्चाताप तो मुझे करना चाहिए तुम्हारा खंजर मेरे लिये रास्ते का दीपक बन गया।