ALOK KUMAR GAUR

Inspirational

4.5  

ALOK KUMAR GAUR

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राखी का उपहार

राखी का उपहार

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आज सावन मास की पूर्णिमा यानी रक्षाबंधन का त्यौहार है। अमृता प्रात: से ही राखी का थाल सजाए अखिल का इंतजार कर रही है। अखिल उसका छोटा भाई है। दोपहर के 12:00 बज गए हैं, लेकिन अखिल का कहीं कुछ पता नहीं। अमृता का मन घबरा रहा है। अमृता ने मां को आवाज दी - मां! अखिल कहां चला गया है? हर साल रक्षाबंधन का उसे मुझसे ज्यादा इंतजार रहता है, लेकिन आज पता नहीं कहां चला गया। मैं कब से उसका इंतजार कर रही हूं? पता नहीं मुझसे तो बस यही कह कर गया है कि दीदी के लिए उपहार लाने जा रहा हूं। तुमने उसे जाने ही क्यों दिया? अरे! मुझे क्या पता था इतना समय लगेगा बस आता ही होगा। तुम चिंता मत करो। अखिल ने इसी वर्ष चार्टर्ड अकाउंटेंट की परीक्षा पास की है। और पिछले माह ही उसकी बहुत अच्छे सालाना पैकेज पर नौकरी लगी है। फिर भी अमृता को वह बच्चा ही नजर आता है।

अमृता 9 साल पहले का समय याद करती है। जब अचानक उसके पिताजी का देहांत हो गया। उनके परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था। अखिल अभी दसवीं कक्षा में था और अमृता एम ए कर रही थी। आय का कहीं और सहारा ना होने के कारण अमृता ने ट्यूशन लेना शुरू किया। घर की सारी जिम्मेदारी उस पर आ गई। पिताजी ने अमृता का रिश्ता तय कर दिया था। विनीत एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर था। अचानक आई इस विपत्ति में कोई सहारा ना होने के कारण अमृता ने विवाह करने से मना कर दिया। स्नातकोत्तर की शिक्षा पूरी करने के बाद एक विद्यालय में शिक्षिका के पद पर नौकरी करने लगी। अखिल की पढ़ाई के लिए उसने कहीं कुछ कमी नहीं होने दी। ट्यूशन पढ़ाना, विद्यालय जाना और अखिल का पूरा ध्यान रखना, उसकी पढ़ाई लिखाई पर सही सलाह देना, अमृता का दैनिक कार्य था। देखते ही देखते समय पंख लाकर उड़ गया और आज 9 साल बाद अमृता की मेहनत सफल हो गई। जब अखिल ने चार्टर्ड अकाउंटेंट की परीक्षा पास कर ली उसकी आंखों में खुशी के आंसू बह रहे थे। अचानक अखिल की आवाज से अमृता का ध्यान भंग हुआ और मैं गुस्से में बोली - "कहां चला गया था? मैं सुबह से इंतजार कर रही हूं।"

अखिल मुस्कुराते हुए बोला - "बस यहीं था, नाराज ना हो।" अमृता बोली - "चल, अब राखी बंधवा ले।" अखिल ने जवाब दिया -"बिल्कुल, लेकिन इस बार राखी मैं आपको बाधूंगा।" अमृता चौक उठी - "क्या......क्या कहा तूने?"

"वही जो आपने सुना। राखी इसलिए बांधी जाती है कि राखी बांधने वाले की रक्षा का वचन दिया जाता है। और आपने पापा के बाद से मेरी पूरी तरह से रक्षा की है, तो राखी बांधने का अधिकार तो मेरा ही हुआ ना दीदी।"

"अरे! तू पागल हो गया है। ऐसा भी कहीं होता है। मां.... मां! देखो ना.... अखिल क्या कह रहा है?"

" बिल्कुल सही कह रहा है। मैंने सब कुछ सुन लिया है। अमृता! तुमने बेटे की तरह सभी फर्ज निभाएं हैं। अब जो अखिल कह रहा है, वह सही है। इसकी बात मान ले।"

यह सब सुनकर अमृता रोने लगी। वह बोली बहुत बड़ा हो गया है ना। उसके आंसू पोंछते हुए अखिल ने अमृता को राखी बांधी। अखिल ने कहा अब बारी है उपहार की। अमृता गुस्से में बोली - "उपहार! अब तो इतना बड़ा हो गया है कि मुझे उपहार भी देगा।"

" हां... दीदी और ऐसा उपहार जिसे आप मना ना कर सकेंगी।" अमृता अचंभित सी अखिल को देखती रह गई।अखिल दौड़ता हुआ बाहर गया और किसी को साथ लेकर आया। अमृता ने जब साथ आए व्यक्ति को देखा तो चौंक उठी। विनीत......। "अखिल! यह क्या मजाक है?" तभी पीछे से मां आई और बोली - "बेटा यह तेरा राखी का उपहार है। जिस जिम्मेदारी की वजह से तूने शादी के लिए मना कर दिया था, अब वह जिम्मेदारी पूर्ण हो चुकी है। और अब अखिल को भी अपनी जिम्मेदारी निभाने दे। विनीत ने भी तेरी वजह से अभी तक शादी नहीं की। अब तू शादी के लिए हां कह दें, जिससे मैं भी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो सकूं।" अमृता कुछ ना कह सकी। बस उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। उसे अचानक लगा कि वास्तव में उसका भाई बड़ा हो गया है।


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