मायका.....
मायका.....
बड़े भाई विशाल के कमरे के बाहर से गुजरते हुए मुग्धा ने बड़ी भाभी सुधा की आवाज सुनी तो अपना नाम सुनकर वो ठिठक गई। सुधा अपनी देवरानी यानी विनय की पत्नी से कह रही थी - "कोई जरूरत ना है अब मुग्धा को ज्यादा मुंह लगाने की। वैसे भी दोनों भाइयों की बहुत मुंह लगी है। अब तक तो मां जी की वजह से हम कुछ कह न पाए लेकिन अब सहन नहीं करूंगी।" जब मन चाहा चली आती है मुंह उठाकर.......।
यह सुनते ही मुग्धा जैसे आसमान से जमीन पर आ गिरी।
उसका कलेजा मुंह को आ गया। वो जल्दी से अपने कमरे में जाकर बिलखने लगी। थोड़ी देर बाद उसने खुद को संभाला और अपने पति रवीश को फोन किया हेलो! रवीश मेरी टिकट करवा दो और जितनी जल्दी हो जाए उतनी जल्दी। क्या हुआ मुग्धा? सब ठीक तो है न...... तुम उखड़ी उखड़ी से क्यों लग रही हो? ....... तुम तो एक महीने के लिए गई थी अब चार दिन में ही..........। मैंने बोला ना "मुझे अभी वापिस आना है।" कहकर मुग्धा ने फोन कट कर दिया।
रवीश को कुछ समझ न आया लेकिन कुछ सोचकर उसने तत्काल कोटे से मुग्धा का टिकट बुक करवा कर उसे कॉल किया "कल शाम की टिकट कन्फर्म हो गई हैं। मुझे बता देना मुग्धा मैं समय पर तुम्हें लेने स्टेशन आ जाऊंगा।" मुग्धा ने एक ठंडी सांस ली और अच्छा कहकर फोन रख दिया। उसने इधर उधर पड़ा हुआ अपना सामान समेटना शुरू किया और पैकिंग करने लगी। उसका 4 साल का बेटा कविश सोया हुआ था। सोते हुए बेटे को देख उसका ममत्व जाग गया उसने कविश को अपनी गोद में लिटा लिया और आंखें मूंद कर बैठ गई उसकी आंखों से आंसू बहने लगे।
अभी एक महीना पहले ही उसकी मां की असामयिक मृत्यु हृदयाघात से हो गई थी। मुग्धा अपने परिवार में सबसे छोटी होने के कारण बेहद लाडली थी। बड़े भाई विशाल से तो वह पूरे 8 साल छोटी थी और विनय से 3 साल। दोनों भाई उस पर जान छिड़कते थे। और मां की तो वो जान ही थी। भाई बहन के स्नेह और लाड प्यार को देख दोनों भाभियां भी मुग्धा को बहुत लाड करती थी। मां के देहांत पर जब मुग्धा बुरी तरह रोए जा रही थी, तब किसी पड़ोसन ने ये कह दिया रो ले बिटिया जितना चाहे......लेकिन तसल्ली तो करनी पड़ेगी.... मायका तो तेरा मां के साथ ही समाप्त हो गया। इतना सुनते ही बड़ी भाभी सुधा उस पर चिल्ला ही पड़ी थी क्यों चाची....क्यों मायका खत्म हो गया इसका......अरे मां जी न रही, तो क्या हम ना हैं.... मुग्धा मेरी अपनी बेटी है ...... जब तक मैं हूं तब तक इसका मायका रहेगा और मैं इसकी मां। यह सुनते ही मुग्धा सुधा से लिपट गई थी...। उसकी और सारे रिश्तेदारों की नजर में सुधा के प्रति सम्मान बढ़ गया था। और यही सब सोचकर अब जब विशाल ने मां की मृत्यु होने के एक महीने बाद हवन के लिए मुग्धा को फोन किया तो उसने रवीश से साफ साफ बोल दिया था कि अब पूरे एक महीना रहकर ही आएगी अपने मायके में।
लेकिन आज जो कुछ उसने सुना.... समझा.....क्या वो सही है....इसका मतलब उस दिन जो सुधा भाभी ने कहा वो सब एक झूठ था.....छल...था.......केवल छल। वास्तव में केवल समय की मांग पर सुधा ने अच्छे होने का दिखावा किया था। पूरे दिन न तो मुग्धा अपने कमरे से बाहर निकली.... ना ही कोई उसे बुलाने आया। यहां तक कि दोनों भाई भी उसके पास तक न आए। बस इतना ही सुनाई दिया जब विनय ने कहा - मुग्धा कहां है? तो सुधा ने कह दिया उसके सिर में दर्द है। इसलिए अपने कमरे में सो रही है।
पूरी रात मुग्धा बस मां को याद करके रोती रही।
सुबह उठकर उसने जब कहा विशाल भैया मैं आज शाम को जा रही हूं तो विशाल ने उसकी तरफ बिना देखे ही कहा विनय तुम्हें स्टेशन छोड़ आएगा। इस तरह के जवाब की मुग्धा को कोई आशा न थी, उसने सोचा था.......भैया.....उसको कुछ दिन रुकने को कहेंगे.....अचानक जाने का कारण पूछेंगे....लेकिन.....यह सोचकर वो फफक उठी। सुधा उसके पास आकर बोली देखो मुग्धा!........ अब मां जी तो वापिस आ नहीं सकती.... तुम्हें थोड़ा सा धैर्य तो रखना ही पड़ेगा.... बाकी हम लोग तो हैं ही जब तुम्हारा मन करे चली आना.......अपने मायके।
मुग्धा को एकदम नफरत सी हो आई सुधा से। जो बाहर कुछ...... भीतर से कुछ......। शाम को विनय उसको गाड़ी में बिठा आया। गाड़ी ने हॉर्न दिया और चल पड़ी अपने गंतव्य की ओर। मुग्धा खिड़की से बाहर सब कुछ बिछड़ता हुआ देखकर सिसक उठी ...... वो गलियां........ बचपन की यादें........ सहेलियां....... भाई......... मां और........ और..........मा...... य.......का.......।
