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Pratibha Shrivastava Ansh

Drama

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Pratibha Shrivastava Ansh

Drama

पत्र

पत्र

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डाकिया नहींं जाता वहाँ। यह पत्र तब लिखी थी जब वो हम से बहुत दूर चले गए थे।

प्रिय पापा,

आप कैसे है,कहाँ है,कब आएंगे। कुछ भी तो नहीं पता नहीं...आज जब आप नहीं हो हमारे बीच आपकी कमी बहुत खलती है। जानती हूँ मृत्यु अटल है पर क्या कोई ऐसे जाता है क्या ? मैं आपसे बहुत ज्यादा नाराज हूँ और आप है कि मनाने भी नहीं जाते है। एक-एक करके सारे तीज-त्यौहार आकर चले गए पर आप हो कि आते ही नहीं। जानते हो! आप आज भी जीवित हो पापा मेरे लिए मैं आप से बात करती हूँ।

आपकी स्मृतियों में दौड़ लगती है पर आप कोई संकेत नहीं देते की आप भी हो यही मेरे आस-पास। आज भी परेशानियों में तुम्हारी तस्वीर से बात करती हूं तो मन हल्का हो जाता है। यह मन नहीं मानता कि तुमने शरीर त्याग दिया। पता नहीं मुझे किस गलती की सजा मिली कि मुझे आपके अंतिम दर्शन नहीं नसीब नहीं हुआ। मुझे तो ज्ञात था कि आप बीमार हो,आपका ऑपरेशन हुआ है पर मुझे यह ज्ञात ना था कि वह ऑपरेशन के बाद आपने अपनी आँखें खोली ही नहीं।


पता नहीं पापा मैंने आने में देरी कर दी या आपको जाने की जल्दी थी। चारों बेटियों में सबसे ज्यादा दुलारी तो मैं ही थी ना फिर मुझ से मिलने के लिए आपने आँखें क्यों नहीं खोली...मेरे आने की खबर मात्र से आप झूम उठते थे फिर क्यों चले गए मुझसे मिले बिन...जानते हो पापा एक कविता लिखी हूँ"बाबा" आप के लिए सिर्फ आपके लिए। सबको बहुत अच्छी लगती है,काश पापा आप आज आप साथ होते और अपनी बिटिया को गले लगाते।

बहुत भूखी हूँ पापा आपके स्नेह का निवाला आपके हाथ से खाने को व्याकुल है आपकी बेटी। दूर इतने हो कि आपसे पत्राचार नहीं कर सकती। कोई डाकिया नहीं जाता उस गली जहाँ आप रहते हो पर फिर भी आपके एक उत्तर की प्रतीक्षा में आपकी बेटी प्रतिभा।


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