STORYMIRROR

पतंगबाजी का पंछी

पतंगबाजी का पंछी

3 mins
798


दिसंबर का वक्त था।

छठी में दाखिला हुआ था। आज भी याद है वो रविवार का दिन था।

सहारनपुर के हकीकत नगर में हम रहते थे। करीब जीरो डिग्री सेल्सियस की सर्द हवाओं के चलते पतंगबाजी करना मेरे लिए प्रतिबंधित था। चोरी-छिपे मैंने एक खास जगह छिपाई हुई पंतग और मांझा निकाला और दबे पांव छत पर चढ़ गया।

मेरी छत पड़ोसियों से ज्यादा ऊंची थी तो अक्सर पड़ोसी यहीं आकर पतंग उड़ाया करते थे। पूरी छत पर जहां-तहां मांझे के गुच्छे बिखरे रहते थे। मैं उस सर्दी में नंगे पांव छत पर चढ़ा था ताकि घर में कोई पैरों की आवाज सुन न ले। धुंध छाई हुई थी। हवा रह-रहकर कभी चलती, कभी एकदम शांत हो जाती। पहली जंग तो जीत ली थी मैंने छत पर चढ़कर। अब बस तीन-चार पतंगों को काट दूं तो दिन बन जाए।

चरखी को एक ईंट से खास एंगल पर सेट कर लिया। हाथ न कट जाए इसलिए चेपी (पंतग चिपकाने में प्रयोग होने वाली कागज की टेप) अपनी ऊंगलियों में चिपका ली। बाएं हाथ को पीछे की ओर बढ़ाकर चरखी से मांझा खींचना शुरू किया और दांया हाथ सामने की ओर फैलाकर पतंग को लंबवत नीचे सेट कर लिया।

जैसे ही हवा चली मैंने दांए हाथ को ऊपर उठाते हुए पीछे की ओर जोर से खींचा और साथ ही दोनों हाथों से मांझे को छोड़ने लगा। पर ये क्या हवा फिर ठप। पतंग नीचे आ गई। ऐसा तीन-चार बार हुआ।

आज ये क्या हो रहा है, मन में जोर से चिल्लाया (सच में नहीं चिल्ला सकता था न... कहीं कोई नीचे कोई सुन न लें)... आज तो पतंग उड़ाकर ही मानस जमा देने वाली ठंड में मैं बेतहाशा कोशिश किए जा रहा था।

मैंने ध्यान नहीं दिया कि एक तरफ की दीवार टूटी हुई है। पंतग को झटका देने के लिए मैं पीछे हटता गया और अगले ही पल मेरे पैर के अंगूठे में मांझे का एक गुच्छा फंसा और उसी गुच्छे के दूसरे सिरे पर मेरा दूसरा पैर पड़ा। वो गुच्छा मेरे अंगूठे के साथ नहीं जा सका और झटके से मैं हवा में नीचे की ओर जाने लगा। मुझे आज भी वो एक सेकेंड का अनुभव याद है कि जब आप हवा में होते हो तो कितना अच्छा लगता है। आप एक पंछी की तरह महसूस करते हो।

स्काई डाइविंग में लोग ऐसा ही अनुभव करते होंगे। हवा आप को झ़ुलाती है तो बड़ा मजा आता है। .... लेकिन अगले ही पल पड़ोसी की छत पर... आंखों के सामने से राेशनी गायब होने लगी। मैं जहां गिरा वहां से हिल नहीं पाया। नींद-सी आने लगी। तभी अचनाक शोर मचना शुरू हुआ। पड़ोस के लोग दीवार फांदकर मुझ तक पहुंचे। गिरने की आवाज सुनकर मम्मी भी पहुंचीं। वो घबराई हुई थी। बहुत ज्यादा। किस्मत से मुझे ज्यादा चोट नहीं आई थी। घर पर किसी ने नहीं डांटा। लेकिन मैं समझ रहा था कि उन पर क्या बीत रही थी।

आराम करने के लिए सोमवार को अगले तीन सालों के स्कूली रिकाॅर्ड में मेरी पहली और आखिरी छुट्‌टी इसी नाम से दर्ज हुई थी।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama