पश्चाताप
पश्चाताप
प्रिया कक्षा 6 की छात्रा थी। शहर के रईसों में उसके पिताजी का भी एक नाम था। उसकी बातों में घमंड साफ दिखता था, हो भी क्यों ना इकलौती बेटी जो थी। घर में नौकर चाकर की कमी ना थी। एक फरमाइश और सब दौड़ जाते पूरी करने को।
प्रिया स्वभाव से चंचल तो थी ही मगर उसे अपने से छोटो को नीचा दिखाने में बहुत आनंद आता था।
उसके घर हर रोज एक बर्तन मांजने वाली आती थी। कुछ दिनों से प्रिया के उम्र की ही एक लड़की साथ में आने लगी। प्रिया की माँ के पूछने पर मालूम हुआ वो गाँव से शहर शिक्षा लेने अपनी चाची के पास आई हुई है। उसके फटे कपड़े और गंदे बालों को देख प्रिया मुंह बना लेती थी।
बर्तन वाली के बहुत मान करने पर प्रिया की माँ ने उसके दाखिले की बात प्रिया के स्कूल में की। प्रिया को ये बिलकुल अच्छा नहीं लगा, फिर उसने सोचा ये गाँव के लोग है मेरी बराबरी कैसे करेंगे।
आश्चर्य वो लड़की बहुत होशियार निकली। सभी शिक्षकों की प्रिय छात्रा। अब प्रिया से सहा नहीं जा रहा था। अभी वार्षिक परीक्षा होने को थी।
प्रिया अपने यार दोस्तों में व्यस्त थी। उसे विश्वास था कि उसे अच्छे अंक ही प्राप्त होंगे।
मुख्य परीक्षा भी हो गई। प्रिया इस दौरान उस लड़की का बहुत मज़ाक बनाया। कभी उसके बात व्यवहार का, कभी तेल लगी चोटी का, उसकी फटी पुरानी किताबों का।
अन्ततः परीक्षा फल भी का दिन भी आया। प्रिया हर वर्ष की तरह अपनी माँ के साथ गयी और बर्तन वाली भी अपनी भतीजी को ले कर आई थी।
कक्षा अध्यापिका ने नई बच्ची की बहुत तारीफ की और बताया वो अव्वल आई थी।
जबकि हर साल अच्छे नम्बर से उत्तीर्ण होने वाली प्रिया फेल हो गई थी।
माँ और अध्यापिका ने उसे बहुत समझाया ऐसे पूरे दिन किसी का उपहास करने की जगह अगर वो खुद मेहनत करती तो आज वो भी उत्तीर्ण हो जाती। सभी मनुष्य एक समान है ये हमारी मेहनत है जो हमें एक दूसरे से अलग करती है।
प्रिया ने अब सब समझ लिया। अब वो किसी को कमतर नहीं समझेगी। उसने माँ से गले लगकर माफ़ी मांगी। उसकी आँखों में पश्चाताप के आँसू थे।