Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Manju Shrivastava

Inspirational Others

1.8  

Manju Shrivastava

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प्रतिद्वंदी

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कोख जायी थी वो, प्रतिछाया माँ के रक्त मज्जा से बनी, माँ का प्रतिरूप----पर माँ से विरुद्ध, विद्रोहिणी। जैसे हर वक्त मौके तलाशती हो। जुबां को तीर बना देने में। और अक्सर कामयाब भी होती। बचपन की दहलीज पार कर यौवनास्था में पर्दापण कर रही थी। छूटता बचपन और आते यौवन का कच्चा सौंदर्य, माँ के परिपक्व सौदंर्य से जैसे प्रतिस्पर्धा को तैयार था। सह नहीं पाती माँ के व्यक्तित्व की प्रशंसा। सामाजिक प्रशंसा और प्रंशसाओं के उत्तर प्रतिदंश ही होते अक्सर----परंतु माँ तो माँ थी। आहत तो होती पल-पल---पर क्षणांश में पीड़ा को विस्मृत कर देती। मित्र दोस्त, रिश्तेदार, परिचित माँ के मनोरम व्यक्तित्व की चर्चा, प्रशंसा अक्सर उसे चाहे-अनचाहे प्रतिद्वंदिता के उस स्तर तक ले आते। जहां उसे माँ, माँ नहीं अपनी प्रतिद्वद्वीं ही नजर आती। भरसक प्रयत्न होता, माँ का भी अपनी कोखजायी को अव्वल रखने का। परंतु विद्रोह के आगे, कोशिशें सदैव हार जाती, जो माँ को ही नहीं मानती, वो माँ की कैसे मान लेती। सृष्टि के नियमों से कौन नहीं बंधा है, बेटी सात फेरों के बाद ससुराल में आज माँ होने का गौरव प्राप्त करने जा रही थी, तीसरी पीढ़ी का गौरव। प्रतीक्षित परिवार जन प्रतिक्षा में थे, आज तीसरी पीढ़ी का जन्म होने जा रहा था। माँ की चितिंत निगाहों में असंख्य सवाल थे ---तीसरी पीढ़ी में आज फिर बेटी का जन्म हुआ था, और कोखजायी अपनी देह से, अपने रक्त मज्जा से बनी अपनी प्रतिछाया को देख माँ की ओर देख मुस्कुरा रही थी, और माँ की आँखो से जैसे पीड़ा झर-झर बही जा रही थी----

उसे यकीन हो चला था अंजुरी में भरे फूलों की खूशबू फूलों के हथेली से अलग होने के बाद भी हाथों में अक्सर रह जाती है ।



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