प्रकृति व आधुनिक मानव
प्रकृति व आधुनिक मानव
ईश्वर ने पृथ्वी पर अनेक जीव और प्राणी बनाये, जिनमे सबसे जल्दी विकसित हुआ इंसान अर्थात मानव जाति जो आज सबसे बुद्धिमान मानी जाती है, जो इस पृथ्वी पर अपनी इच्छानुसार जी रहा है, लेकिन वो ये भूल गया कि इस पृथ्वी पर सबका हक है अर्थात यह प्रकृति सबको जीने का अधिकार देती है l मेरा आशय मानव ने प्रकृति के साथ वो समन्वय नहीं किया जो करना चाहिए था वो खुद को इस पृथ्वी का मालिक समझ बैठा और उन निहिल जीवो के साथ अनान्य, जो बिलकुल अनुचित है l मानव को जिनसे खतरा है उनको ख़त्म करना कुछ हद तक समझ आता लेकिन जो मानव जाति को तनिक नुकसान नहीं पहुंचाते उनके साथ मानव का समन्वय बहुत शोचनीय है l इस पृथ्वी पर प्रकृति ही मानव की ईश्वर है और सदियों से अर्थात वैदिक काल हो या उत्तर वैदिक काल, मानव सदैव किसी ना किसी रूप मे प्रकृति की पूजा करता आया है उसके प्रति प्रेम प्राचीन समय से है l मगर आज के समय देखा जाये तो समझ आएगा कि मानव ने प्रकृति के साथ उचित व्यवहार नहीं किया l वो सभी कृत्य किये जो सवर्था उचित नहीं कहे जा सकते, वो बुद्धिमान है उसे पता है मै मेरा जन्म एक सूक्ष्म जीव (वायरस )के रूप मे हुआ है और मुझे प्रकृति ने पाला पोषा है प्रकृति ने मुझे वो अनुकूल जलवायु वो वातावरण उपलब्ध करवाए जिससे मै आज इतना बुद्धिमान हूँ और अन्य जीवो की तुलना मे बहुत अच्छी जिंदगी जीता हूँ, प्रकृति का सबसे ज्यादा उपयोग करता हूँ l उसने ही प्रकृति का दोहन किया एक मज़बूरी तक ठीक लेकिन इतना अधिक कि पर्यावरण संतुलन का जरा भी परवाह नहीं l लेकिन इस सृष्टि की रचना करने बाली प्रकृति ये सब अच्छे से देख रही है वो मानव भले भूल जाये कि उसका जीवन अतीत क्या था लेकिन वो प्रकृति नहीं भूलेगी l डायनासोर जैसा भयंकर और शक्तिशाली कोई जीव नहीं था इस पृथ्वी पर, मगर प्रकृति को उनका घमंड भी पसंद ना आया क्यूंकि वो चाहती है उसकी छाया मे सब फले फूले.. इस पर किसी एक का अधिकार नहीं l डायनासोर ही विलुप्त कर दिए प्रकृति ने l हर वो खतरनाक जीव जो राजा बनना चाहा इस पृथ्वी को कब्जा करना चाहा, नहीं हो सका और शयद भविष्य मे कर ही नहीं सकता l आज उस दौर मे है मानव l मानव पर वो सब है जिससे वो इस पृथ्वी को कुछ समय के भीतर आग मे तब्दील कर सकता है, उसकी लड़ाई आपस मे तो ठीक है मगर उस लड़ाई के मध्य कोई निहिल जीव क्यों आये?? ये चिंता है प्रकृति की l मानव को ये समझना जरुरी है प्रकृति से मानव है ना कि मानव से प्रकृति ! उसके सरंक्षण मे रहे उसका दोहन कम करें l जल स्वच्छ अच्छा लगता है मगर अस्वच्छ करता कौन है मानव, अरे उसने उस निहिल जीव को अत्यधिक मात्रा मे भछण किया जो दिन रात जल को स्वच्छ रखता हैl मजबूरी मे उसका भोजन कुछ ठीक है मगर उसका व्यवसाय करना उसके जीवन को नस्ट करना मानव का अधिकार नहीं है... मै बात मानव के द्वारा लिखें सम्भिधान की नहीं कर रहा मै प्रकृति के संविधान की बात कर रहा हूँ जो भविष्य मे उससे भी ज्यादा जरुरी है l अपनी माँ का सब सम्मान करते हैं करना भी चाहिए, तनिक सोचिये ज़ब मानव के शिशु का जन्म होता है तब वह अपनी माँ का कितने समय तक दूध पीता है, शयद दो या तीन साल या ना भी l आगे की जिंदगी मे किसका दूध पीता है -गाय l इस मानव ने इस सीधे पशु के कुल को भी ठेस पहुंचाई हैl (मानव अन्य पशु का भी दूध पिता है मगर अन्य पशु बाद मे आते है प्रथम सबसे उत्तम मानव व मानव शिशु के लिये गाय दूध बताया गया है ) इसलिए प्राचीन काल से हम सभी गाय को गौ माँ मानते हैं, हिन्दू धर्म के अनुसार उसमें देवी देवताओं का वास होता है l हम मानव इतने क्रूर हुए कि हमने इनके लिये तनिक ना सोचा और अपने अधिकार के द्वारा उनके साथ अन्याय किये जा रहे हैं जो बिलकुल अनुचित है l ऐसे ना जाने कितने जीव हैं जो प्रकृति के इस वातावरण मे रहकर पर्यावरण को संतुलित करते हैं मगर मानव इसके विपरीत है, जो शयद अब प्रकृति को अप्रिय लगने लगाl जो जीव प्रकृति को अप्रिय लगा है, जिसने प्रकृति के साथ समन्वय नहीं किया उसके साथ वक़्त आने पर प्रकृति भी समन्वय नहीं कर पायेगी l
देखिये आधुनिक मानव ज़ब अपना जन्मदिन व शादी पार्टी आयोजित करता है तब क्या करता है आज का मानव...बारूद से खेलता है वो प्रकृति के इस संतुलित पर्यावरण का संतुलन बिगाड़ता है जो प्रकृति के साथ अनुचित व्यवहार है l प्रकृति के इस क्रोधी समय मे मानव को चाहिए कि कुछ हद तक समन्वय करें.. जितना प्रदूषण करते हैं उसके बदले कुछ वृक्षरोपण करें, उनका सम्मान करें ! कुछ हद तक उन निहिल जीवों का सम्मान भी करें जो मानव के लिये जीते हैं, जिनसे मानव को काफ़ी फायदे भी होते है, जिनका दूध पीकर मानव ने अपने विकसित और बुद्धिमान व शक्तिशाली बनाया, जिससे पर्यावरण संतुलन और मानव अस्तित्व बना रहे l आजकल कोरोना का प्रकोप हर मानव के लिये खतरा बना हुआ है, यह कोई नई बात नहीं है प्रकृति के पास मानव को पल भर मे नस्ट करने के बहुत ऑप्शन है बर्शते मानव प्रकृति के साथ समन्वय ना कर पाये l कोरोना से तो मानव जीत ही जायेगा मगर वो अपना आर्थिक नुकसान सदियों याद रखेगा l ये प्रकृति का मात्र ट्रेलर है, हो सकता है और भी भयानक स्तिथि कुछ सालो या दशकों में आये l ऐसे खतरनाक वायरस मानव के कृत्य का ही परिणाम है जिनसे मानव ही परेशान हुआ हैl हमें समय रहते सम्भलना जरुरी है हमें प्रकृति के महत्वपूर्ण पार्ट जिसकी जिम्मेदारी प्रकृति ने हमें दी है उसका ध्यान रखना जरुरी क्यूंकि पर्यावरण संतुलन मानव जीवन के लिये और अन्य जीवों के लिये बहुत जरूरी है l हमें प्रकृति के सभी अवयव का सम्मान करना अति आवश्यक है जैसे हमारे वेद-पुराणों -शास्त्रों मे उल्लेखित है l आशा करता हूँ आप और हम सब प्रकृति का सम्मान करेंगे और उन निहिल जीवो का सम्मान भी करेंगे जो इस सृष्टि के महत्वपूर्ण भाग है l