परिवार बिना अधूरे हैं
परिवार बिना अधूरे हैं
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"परिवार के बिना हम अधूरे हैं " यह कथन अपने आप में महत्वपूर्ण है। एक परिवार में उन सभी की भूमिका अपनी जगह स्पष्ट होती है जिनके साथ हम रहते हैं दादा-दादी नाना-नानी एवम अन्य सभी । परंतु उतनी ही महत्वपूर्ण भूमिका है हमारी मित्रता की एक अच्छा मित्र हमेशा एक शुभचिंतक की तरह हमारे लिए बहुत ही महत्व रखता है। आज मैं आपको एक ऐसी कहानी सुन आऊंगी जिसमें परिवार तो है परंतु मित्र भी है ।
एक बहुत बड़ा सा परिवार गांव के एक हिस्से में रहता था ।उनकी अपनी खुद की जमीन थी और उस जमीन का कोई बंटवारा नहीं हुआ था। यह जमीन पांच भाइयों की थी। धीरे धीरे परिवार में उन पांचों भाइयों के बच्चे बड़े होने लगे जवाबदारी बढ़ने लगी। हुआ कुछ यू की जवाबदारी के बढ़ते सभी को वह जमीन खटकने लगी। कि ना जाने कब कौन सा सूरज निकलेगा और यह जमीन बेचकर सभी लोग अपने अपने हिस्से का पैसा लेकर सुख और व्यवस्थित रूप से रहने लगेंगे। अब तो ये हाल था ,उस जमीन को बेचने के लिए सभी लोग एकत्रित हुआ करते थे। और जमीन के पास की भूमि पर नहर निकल जाने के कारण वह और भी महंगी और अच्छी प्रॉपर्टी हो गई थी , इसीलिए परिवार में जब भी कोई उत्सव होता था तो वह भूमि को बेचने की बात जरूर होती थी। परंतु सभी के सामने एक बहुत बड़ी परेशानी थी कि उस भूमि का मालिकाना हक ना होने के कारण वे पांचों भाई मिलकर उस भूमि के बेचने कोई हल नहीं निकाल पा रहे थे। इसीलिए उन पांचों भाइयों में से कुछ सशक्त भाइयों ने उस जमीन के बारे में सोचना छोड़ दिया था । उनका मानना था यह भूमि पुरखों की निशानी है और एक ना एक दिन अवश्य इसका मूल्य अच्छा हो जाएगा और इसे बीच का हमें पैसा प्राप्त होगा। परंतु उस भूमि पर रह रहे , खेत के मकान पर जो भी भाई थे वह उस भूमि को बेचने से कतरा रहे थे क्योंकि उनका मानना था नहर निकल जाने के बाद यह भूमि और भी मूल्यवान हो गई है बटाई पर देने के बाद भी हमारी पीढ़ी बैठकर खाएगी ।परंतु कहते हैं ना लालच बुरी बला है।
सबको भूमि तो पसंद थी परंतु उस जगह के मूल्य से ज्यादा आकर्षित थे सभी भाई !इसीलिए उसको बेचकर धनवान होना चाह रहे थे। और फिर 1 दिन ऐसा की उस भूमि की नीलामी हुई और सभी भाई मालिकाना हक को लेकर विवाद करने लगे। क्योंकि वह भूमि नहर के पास वाली जमीन पर थी इसीलिए सरकार ने उसे मुंह मांगी कीमत पर किसानों से खरीदने के लिए प्रलोभन दे रही थी । भूमि के विषय में यह परिचर्चा सुनकर उनके एक दूर के शुभचिंतक जो कि उन पांचों भाइयों के पिताजी के बहुत ही अच्छे मित्र थे उन्होंने उन पांचों को समझाया कि माना तुम पांचों को भूमि को बेचकर पैसे लेने हैं परंतु भूमि मां के समान होती है और फिर तुम्हारी भूमि तो नहर के पास है यदि तुम पांचों भाई इसको बेचने की जगह थोड़े थोड़े पैसे सरकार से लोन पर लेकर इस पर खर्च करो तो यह भूमि तुमको बहुत मुनाफा दे सकती है परंतु कोई भी भाई उनके पिताजी के मित्र की बात सुनने के लिए राजी ना था। चुकी उनके पिता के मित्र संपन्न परिवार से थे इसीलिए उन्होंने प्रस्ताव रखा कि यदि मैं तुमसे यह भूमि खरीद लूं तो क्या तुम लोग मुझे बेचोगे । उनकी यह बात सुनकर पांचों भाई तैयार हो गए फिर क्या था आदरणीय से पैसे ले लिए गए और भूमि उनके नाम पर कर दी गई। परंतु उन पांचों भाइयों के पिता के मित्र के कोई अपनी औलाद नहीं थी, उनके पिता के मित्र ने उनसे कहा कि मैं यह भूमि तुम लोगों की आर्थिक परिस्थिति को देखकर खरीद रहा हूं परंतु तुम लोग ऐसा ही समझना कि तुम्हारे पिता पर है।
आखिरकार भूमि उनके पिता के मित्र के पास बेच दी गई और उनसे पैसे प्राप्त कर कर सभी खुशी खुशी रहने लगे एक दिन उस भूमि पर खुदाई का काम चल रहा था क्योंकि उस भूमि पर एक गेस्ट हाउस बनवाना था। तभी वहां से पुराना गड़ा हुआ धन जो कि बहुत ज्यादा मात्रा में था निकल पड़ा। यह देख कर उन पांचों भाइयों के मन में एक ही बात आ रही थी "अब पछताए क्या होत जब चिड़िया चुग गई खेत।" काश हमने भी अपनी जमीन की सेवा की होती गेस्ट हाउस हम लोग भी बनवा सकते थे ताकि घूमने फिरने वाले व्यक्ति आकर यहां रुक सके और यदि यह काम हम लोगों द्वारा होता तो आज यह खजाना हमारे पिता के मित्र को मिलने की जगह हम पांचों भाइयों पर होता। बस उतरी हुई शक्ल लेकर सभी ने अपने पिता के मित्र को बधाई दी। और उन्होंने भी बधाई को स्वीकार किया। जब उनके पिता के मित्र से पूछा गया कि आपके तो कोई संतान नहीं है फिर आप इस खजाने का क्या करेंगे तो वह मुस्कुरा कर बोली किसने कहा कि मेरे संतान नहीं है अरे मेरे मित्र की संतान भी तो मेरे संतान के बराबर है और तुम लोग चिंता नहीं करो इस खजाने पर मेरा अधिकार नहीं सरकार को देने के बाद जो भी मिलेगा वह तुम पांचों भाई बराबर आपस में बांट लेना यह कह कर मुस्कुरा कर उनके पिता के मित्र ने उन पांचों भाइयों को आशीष दिया सदैव प्रसन्न रहो फलो फूलो। इस प्रकार कहानी का अंत करते हुए मैं यही कहना चाहूंगी की अच्छी भावना रखने वाले मित्र हमेशा एक अच्छे शुभचिंतक रूप मैं ईश्वर की कृपा से हमें प्राप्त होते हैं और हमें अपने मित्रों का आदर करना चाहिए क्योंकि परिवार की तरह बे भी हमारे परिवार के सदस्य होते हैं इसीलिए कहते हैं कि परिवार बिना अधूरे हैं क्योंकि एक परिवार मैं रहने के बाद ही हमें मित्रता ,संबंध, भावना त्याग,समर्पण ,रिश्ते इन सभी चीजों का एहसास होता है यह सब हमें एक परिवार में रहकर ही प्राप्त होते हैं।