परिश्रम का फल
परिश्रम का फल
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रहमतपुर नामक गाँव में एक किसान (Farmer) रहता था। वह बहुत परिश्रमी था। उसके परिश्रम से खेतों में भरपूर फसल पैदा होती थी। किसान के चार बेटे थे। चारों ही बेटे बहुत आलसी थे। वे खेती के काम में उसका साथ नहीं देते थे। किसान उनके आलसीपन से बहुत दुखी था।
एक दिन किसान ने अपने बेटों का आलस्य दूर करने के लिए एक उपाय सोचा। वह किसान बीमारी का बहाना करके चारपाई पर लेट गया और अपने चारों बेटों को अपने पास बुलाया और कहा:-” तुम चारों के लिए खेत के चारों कोनों में खजाना दबा रखा है। यदि तुम चारों मिलकर खेत की खुदाई करोगे तो तुम्हें खजाना मिल जाएगा फिर तुम सुखी रहना।”
किसान के चारों बेटे लालच में आ गए और उन्होंने खेत को खोदना शुरू कर दिया, लेकिन खेत को खोदने के बाद भी उन्हें कुछ नहीं मिला।
वे चारों निराश हो गए। किसान ने अपने बेटों को दुखी देखकर कहा:-” कोई बात नहीं, अब तुम खेत में जाकर बीज बिखेर दो। खजाना अपने आप ऊपर आ जाएगा।”
किसान के बेटों ने वैसा ही किया। इस तरह खेतों में पानी भी लगा दिया। इस तरह से धीरे-धीरे किसान ने अपने चारों बेटों को खेती का काम करना सिखा दिया। जल्दी ही खेतों में फसल लहलहा उठी। खेतों में लहलहाती फसल को देखकर किसान खुश हुआ और अपने बेटों से कहा:-” मेरे प्यारे बच्चों! ये ही वह खजाना है जो खेतों के नीचे दबा पड़ा था। अब यह ऊपर आ गया है। जाओ, इसे ले जा कर बाजार में बेच आओ ।”
किसान की बातों से उसके चारों बेटों की आँखें खुल गई। उन्होंने आलस्य को त्याग दिया और किसान के चारों बेटे खेती में अपने पिता का हाथ बंटाने लगे।किसान के चारों बेटे मेहनती बन गए थे। इस प्रकार किसान और भी सुख से रहने लगा।