प्रेम पत्र
प्रेम पत्र
मेरे नाम से एक चिट्ठी आई है प्रेम से सरोबार,
एक एक लफ्ज़ में प्रेम है!
किसी बच्चे सी खुश, ले कर घूम रही हूं।
उसे जाने कितनी बार पढ़ चुकी हूं और कितनी बार रो चुकी हूं।
अश्क थमने का नाम ही नहीं ले रहे।
कई साल पहले मैं अस्पताल गई थी कुछ ज़रूरी टेस्ट करवाने,
एक लड़की का accident केस आया था,
अस्पताल ने इलाज शुरू करने से मना कर दिया, एडमिशन चार्जेस और
आपरेशन की स्वीकारोक्ति चाहिए थी किसी रिश्तेदार की,
जान बचाने को आपरेशन करना था जल्दी ही.
जाने क्या आया मन में, फार्म मैंने भर दिया और एडमिशन चार्जेस भी जमा करवा दिए।
उसका ऑपरेशन शुरू करवा कर आश्वस्त हो कर मैं वापिस आ गई।
जीवन की अपा धापी में भूल चुकी थी सब।
इस बात को आज 5-6 साल हो गए हैं।
आज अचानक ये पत्र आया किसी Dr. प्रभा का,
तो याद आया उसकी स्कूटर की डिक्की से इसी नाम का तो लाइसेंस मिला था!
हॉस्पिटल वाले उसके घरवालों को फोन कर रहे थे।
मुझे ज़रा भी अंदाजा नहीं था की वो डाक्टरी की पढ़ाई कर रही थी।
उसने मेरा पता उस स्वीकारोक्ति फार्म में से लिया और आज शाम वो आ रही है मुझसे मिलने।
जाने कितनी दुआएं हैं पत्र में, कितनी तलाश की उसने, उसके घर वालों ने मेरी।
लिखती है अगर आप ना होती, तो आज मैं भी ना होती।
सुबह शाम दुआ की है मैंने और मेरे परिवार ने आपके लिए।
कुछ दिन पहले ही उसकी पोस्टिंग उसी अस्पताल में हुई है तो
उसको उस फार्म में से मेरा नाम पता मिला।
अरे मैं तो फिर रोने लगी। कोई ना, ये तो खुशी के आंसू हैं।
अब जाने कब तक ये बहते रहेंगे।
Dr. प्रभा, इंतज़ार है आपका।
ये है मेरा प्रेम पत्र,
किसी अनजान का, किसी अनजान को लिखा हुआ।