प्रायश्चित

प्रायश्चित

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" यार मलय , तुम्हारी एफबी फ्रेंड लिस्ट तो वरिष्ठ नागरिक सूचि जैसी लगती है। लगभग आधे तो रिटायर्ड ही हैं ..." ऑफिस कलिग रोहित ठहाके लगाते हुए बोला ।

 " ऐसा कुछ नहीं ...बस जो भी रिक्वेस्ट आते हैं उन्हे जोड़ लेता हूँ..." कहते हुए न जाने क्यों एक दर्द उभर आया मलय की आँखों मे ...

" और तो और लगभग सभी पर विस्तृत टिप्पणी रहती हैं तेरी। भले कुछ भी पोस्ट किया हो। जरा हम पर भी नजरे इनायत कर दिया करो ...आखिर अब एक नामी लेखक हो ।" रोहित ने उसे छेड़ते हुए कहा ।

" हम्म ! नामी लेखक..." निश्वास लेते मलय की आँखे भर उठीं...

  माँ के गुजरने के बाद पापा बहुत अकेले हो गये थें ।अंतर्मुखी व्यक्तित्व के पापा बहुत अधिक धार्मिक भी न थें । छोटे से शहर मे क्लब या विशेष समाजिक संगठन की कोई व्यवस्था भी न थी जहाँ वो खुद को व्यस्त रखतें। पढ़ने के शौकीन थें मगर किताबों मे कितना सर खपाते । 

     एकलौती संतान मलय राजधानी मे पदस्थ था ...हालांकि सुबह शाम हाल समाचार लेता रहता। छः महीने मे मिल आता पर पापा का अकेलापन कमता न था।

काफी मशक्कत के बाद उन्हें एफबी और वाट्स एप चलाना सिखा कर खुद से और कई वेब पत्रिकाओं से जोड़ दिया । कुछ दिनों तक बकायदा उनके हर पोस्ट देखता, उनका उत्साह बढ़ाता। मगर पत्रकारिता की डिग्री मिलने के बाद लिखने के जुनून मे ऐसा उलझा कि पापा कब उपेक्षित होने लगे वो समझ ही नही पाया। शिकायत करने पर व्यस्तता का रोना रो फिर खुद मे मशगुल हो जाता। समय बीतता गया ...मयल पत्रकारिता मे परचम लहरा रहा था और उपेक्षित पिता अकेलेपन से लड़ते एक दिन अलविदा कह गयें ...

पिंग -पिंग की आवाज उसे अतीत से बाहर खींच लाई ..मैसेंजर पर मिसेज भाटिया का मैसेज था जो उसके मित्र सूची मे थी " बहुत धन्यवाद बेटे। मेरी हर पोस्ट पर तुम्हारा आना और सुबह शाम खैरियत पूछना बहुत हद तक हमारी जिंदगी के खालिपन को कम कर देता है। भगवान सभी को ऐसी संतान दे।" मलय की आँखो में अब तक थमें आँसू मोबाइल स्क्रीन पर टपक गये...


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