पिता
पिता
आज जो संस्कार है मुझमें, जो दुसरो का आदर करे उनका सम्मान करे, ये मुझे मेरे माता-पिता से मिला। अनुशासन और प्यार मां से मिला,
आगे बढ़ने की प्रेरणा मां से मिली और कई जगह
पिता ने कभी नहीं ये देखा की लड़कियां है घर में रखो बल्कि उनकी पहल हर जगह आगे थी।
मेरे पिता हर जगह वट वृक्ष की तरह मुझे लगे।
11वी कक्षा से मै लिखने लगी थी।
पहली बार लिखी तब शर्म झिझक के कारण उनको नहीं दिखाई लेकिन बाद में उन्होंने देखकर
मुझे बहुत प्रोत्साहित किया। कहते, आप समाज से क्या चाहते? क्या कमी लगती है, क्या बदलाव चाहते हो इसको लिखो।
मेरे पापा खुद एक बहुत अच्छे कवि थे।
उन्हीं से मुझे लिखने की प्रेरणा मिली। आकाशवाणी में अपनी कविताएं प्रस्तुत की। कवि सम्मेलन में गई मेरे पापा रात में मेरे साथ होते।
आज वो नहीं है मेरे साथ मेरे पिता-मां। साथ छोड़ गए, उनकी कमी मै जब तक जिंदा हूं रहेगी।
मेरे पति के निधन के बाद मेरे पापा ने कहा था, अपना दुख किसी से मत कहो। कोई नहीं समझेगा, उसे वैसे ही लिखो जैसे तुम उनको याद करती हो। जो शब्द आते उनसे ही उकेरो
और आज लिख रही, केवल लिख रही।
दुख का भंडार है उसे शब्द बना रही।
