पीढ़ी
पीढ़ी


आनेवाले १० - १५ सालों में हमसे पहले की एक पूरी पीढ़ी इस दुनिया से चली जाएगी। सच है ये क्यूँकि दुनिया रुक नहीं सकती। इस पीढ़ी के लोग थोड़े अलग ही हैं !
सुबह जल्दी उठनेवाले , रात को जल्दी सोनेवाले, पौधों को पानी पिलानेवाले और वह भी बिना जाया किये, भगवान के लिए फूल तोड़नेवाले, रोज़ पूजा करनेवाले, मंदिर में एक बार चक्कर लगाने वाले, रास्ते में मिलने वाले की पूरे अपनेपन से हाल-चाल पूछनेवाले, नमस्कार करने वाले, खाना ज़ाया न जाए इस लिए हिसाब से खाना बनानेवाले और अगर खाना बच जाए तो किसी गरीब को देनेवाले। और कुछ नहीं तो दूसरे दिन उसी को चटाके भरके खानेवाले!
हाथ तंग होते हुए भी मेहमानों की दिल से
मेहमान-नवाज़ी करनेवाले। व्यसन भी करना हो, तो समाज की परनिन्दा का लिहाज़ करनेवाले।
पुराना चश्मा टूटे तो उसको चिपका के इस्तेमाल करनेवाले, पुरानी चप्पल सीं के पहननेवाले और पुरानी बनियान चीथड़े हो जाए तब तक पहननेवाले।
गर्मियों में पापड़ सुखानेवाले, हाथ दर्द करने लगे तब तक कूट कूट कर मसाले बनानेवाले, ऐसे कपड़े जो खास मौकों पर पहने जाते हों, उन्हीं को इस्त्री करनेवाले,
जेब के पैसे संभालकर खर्च करनेवाले और खाना घर का ही खानेवाले!
ऐसे लोग अब धीरे-धीरे इस दुनिया से जा रहे हैं!
वे चले जाएंगे और उनके साथ एक अहम सीख लेते हुए जाएंगे।