ओह, सिट!

ओह, सिट!

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परीक्षा के परिणाम आ गये थे,मैंने पूरे सौ प्रतिशत अंक प्राप्त किए.मुझे अपने स्कूल में बुलाया गया,वहां जहाँ कल तक मेरी कोई नहीं सुनता था और आज पूरा स्कूल सुनने को बेताब था.स्कूल के सारे शिक्षक अचानक से मुझे जानने लगे थे,और ताज्जुब तो मुझे तब हुआ जब कभी अपने कार्यालय से बाहर न निकलने वाले प्रधानाध्यापक जी ने बाहर आकर मुझे बच्चों के सामने कुछ बोलने को कहा.

मैं जितना घबराया हुआ था,उतना ही गौरव भाव से भी भरा हुआ था.हजार से ज्यादा बच्चें कतार में खड़े थे.सबका ध्यान मेरी ओर था.मै आगे बढ़ा और माइक को अपनी हाथों में जैसे ही थामा तालियों की गरगराहट से पूरा माहौल ही बदल गया.चारों ओर रौनक थी.बच्चों की आँखों में अद्भुत उत्साह था मुझे सुनने को.शिक्षक मुझे सुनने की औपचारिकता में खड़े थे पर वे भी खुश थे.

मैं कुछ न बोल पाने की असमंजसता को तोड़ते हुए एक लम्बा स्पीच दिया.बच्चें बिच-बिच में तालियाँ बजाने लग जाते.मैं तब रुक जाता.हालाँकि मैं यह तय नहीं कर पा रहा था कि वे मेरे किस तथ्य पर तालियाँ बजा रहे है.शायद इसलिए कि मेरे ज्यादातर बोले गए वाक्य मेरे न थे,वे यहाँ-वहाँ सुने हुए थे और आमतौर पर ऐसे मौकों पर बोले जाते थे.

यह मेरे लिए अद्भुत और अविश्वसनीय पल था.पिछले दस वर्षों से मैं यहाँ पढता रहा था पर इतना सम्मान आज ही देखा अपने लिए.सभी गौरवान्वित थे.यहाँ तक कि पूरा वातावरण गौरवान्वित था.

स्कूल में भव्य विदाई-उत्सव के बाद प्रधानाध्यापक के BMW कार से मुझे घर तक छोड़ दिया गया.घर पर तो पापा-मम्मी के दोस्तों और रिश्तेदारों का ताता लगा हुआ था और इधर मेरा फ़ोन भी लगातार बजा जा रहा था.फ़ोन पे फ़ोन.आहा ! कितना सुखद था यह पल.पापा-मम्मी के दोस्त और अन्य रिश्तेदार मेरे सर पर हाथ फेरने को बेहद उत्सुक थे.वे तरह-तरह की भविष्यवानियाँ कर रहे थे.लड़का ये करेगा...लड़का वो करेगा.

फेसबुक पर लगभग पचास लड़कियों ने मेरा फ्रेंड-रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर लिया था और ढेर सारे रिक्वेस्ट मुझे आने लगे थे.मैं ट्विटर चलाता नहीं,सो पता नहीं वहां क्या हो रहा होगा.पर हाँ,गूगल पर भी मैं खोजा जाने लगा था.हालाँकि विकिपीडिया पे मेरी प्रोफाइल तो अब तक नहीं थी पर लोग गूगल के माध्यम से मेरे फेसबुक प्रोफाइल पे आ जाते.और यार,अगले दो दिन में ही इतने रिक्वेस्ट आये कि मुझे मेरे प्रोफाइल को पेज में बदलना पड़ा.देखते ही देखते हजारों लाइक्स आ गये.मैंने कुछ अपने अनुभव शेयर किए,जो कुछ मेरे थे,ज्यादा दूसरे के.

मज़ा तो अब आ रहा था लाइफ में.सोसाइटी वाले सम्मान देने लगे थे.चिंटू,नेहा,गोलू,भोला व अन्य कई बच्चें मेरे पास ट्यूशन पढने आने लगे.माँ अक्सर उन्हें कुछ खिला-पिला कर ही वापस भेजती.

माँ-पापा दोनों भगवान की पूजा-अर्चना में अब काफी समय बिताते.कमरे की एक ओर स्थित छोटा सा मंदिर जिसमे लगभग सभी भगवान एडजस्ट किए हुए थे,उनके सामने वे लम्बा शंख फूकते.

कई प्रसिद्ध इंस्टिट्यूट से मुफ्त क्लास के ऑफर आने लगे,मैं बड़ा कंफ्यूज हो गया.खैर,एक इंस्टिट्यूट मैंने इस शर्त पर ज्वाइन कर लिया कि वो मुझ पर  क्लास आने का दबाव नहीं डालेगा.फिर कई प्राइवेट कंपनीयां भी जॉब ऑफर कर रही थी.वैसे भी स्टार बन ही गया था सो बेकार के अध्ययन में लगे रहना मुर्खता ही होती.और फिर अब दोस्त-यार के बिच खर्च भी करने पड़ते सो जॉब पकड़ लेना ही उचित लगा.

अंततः दो महीने की ट्रेनिंग के बाद एक कॉल सेंटर में मैं काम करने लग गया.कॉल सेंटर में काम करना शुरू-शुरू में नवीनता से भरा था पर कुछ ही दिनों में यह मुझे बोरिंग लगने लगा.और इससे पहले की मैं कॉल सेंटर छोड़ देता,मेरे लाइफ में कामिनी की रिंग बजी.जितनी सुंदर नाम उतनी ही सुंदर रूप.

कुछ ही समय में हमारे संबंध ने एक मुकाम पा लिया.और तक़रीबन छह महीने बाद मम्मी-पापा की सहमती से हम दोनों ने शादी कर लिया.कामिनी चाहती थी कि हम हनीमून के लिए पेरिस जाए.क्यों? मैंने कभी पूछा नहीं.दरअसल पूछने की आदत मुझमे बहुत कम थी,स्कूल के दिनों से ही.पापा ने हमारी टिकट बुक करा दिए.

पेरिस में यह हमारी पहली रात थी.वह ईस्ट-वेस्ट के मिक्स लुक में थी.एकदम ब्यूटीफुल.मैंने कमरे की लाइट ऑफ कर दिया.धीरे-धीरे उसके पास गया.और पास......थोड़ा और नजदीक.....अब हमारे बिच केवल हम थे,हमारी सांसे थी.मैंने अपना होठ उसकी होठो पर.......

ओह,सिट !!!

ये क्या हुआ.मैंने अपनी बदन पे जबरदस्त पानी का बहाव महसुस किया.आँख मिजते हुए देखा,माँ बाल्टी लेकर बोलती हुई जा रही है “इतनी देर तक भी कोई क्या सोता है !! जाओ जल्दी मंदिर.भगवान के दर्शन कर आओ,आज तुम्हारी रिजल्ट आने वाली है न !”

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