नयी सोच
नयी सोच
आज गुड़िया का विवाह है। गीता सोचने लगी समय कितनी जल्दी बीत जाता है। गीता को वो दिन याद आया जब बैंक में पदोन्नति के साथ साथ उसके पति समीर का तबादला मुंबई जैसे महानगर में हुआ। गीता स्वयं केंद्रीय विद्यालय में शिक्षका है। समीर के भाई की एक सड़क हादसे में दुःखद मृत्यु हो जाने के कारण उसकी पत्नी शोभा भी उनके साथ रहती है। मुंबई आने पर शोभा ने भी एक प्रतिष्ठित खानगी कंपनी में काम करना शुरू किया था। समय रहते गीता की गोद में एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया। अब वह सोचने लगी कि इस गुड़िया को कहीं छोड़ कर काम पर जाना पड़ेगा। केंद्रीय विद्यालय की नौकरी वह छोड़ना नहीं चाहती थी। शोभा से बात करने पर वह नौकरी छोड़ कर गुड़िया की परवरिश के लिए तैयार हो गई। जैसे ही पंडित जी ने आवाज दी, गीता अपनी यादों से बाहर आई और माता को बुलाए जाने पर उसने शोभा को आगे कर दिया
घर परिवार के बुजुर्गो ने इसका विरोध किया कि एक विधवा यह रस्म नहीं कर सकती। तब गीता ने कहा "जब पच्चीस वर्षों तक शोभा गुड़िया की परवरिश में लगी रही, उसे संस्कारों से सुशोभित किया तब क्यों किसी ने भी उस बात का विरोध नहीं किया।" आज यह रस्म शोभा द्वारा ही संपन्न की जाएगी। सफेद वस्त्रों में सुसज्जित शोभा का चेहरा दीप्तिमान हो उठा। समीर और गुड़िया गीता की इस नयी सोच पर गर्व अनुभव करने लगे।
