समीप
समीप
समीप अलार्म की आवाज़ पर तो नहीं उठता था लेकिन माँ बडे़ प्यार से उठाती या कभी कभी डांट भी देती फिर भी बहुत मुश्किल से उसकी नींद खुलती थी। वही समीप आज परिन्दों की मीठी चहचहाट से सबसे पहले उठ जाता है। सुबह सवेरे सूरज की पहली किरण का स्वागत करता है। नीले आसमान पर उड़ते हुए सफ़ेद रूई जैसे बादलों के दिलकश नजारों के चित्र बनाता है।
उसके माता-पिता इस बदलाव की सराहना करते हैं। उसे उत्कृष्ट साहित्य के सौजन्य से प्रकृति के नज़दीक ले जाते हैं। अब वह सवेरे उठकर पक्षियों को दाना डालता है। एक कुंडी में पीने के पानी का इंतज़ाम करता है। राह चलती गाय बकरियां जब गर्मी से बेहाल होकर उधर पानी पीती हैं तब समीप को बड़ा सुकून मिलता है।
लॉकडाउन के कारण समीप के कालेज भी बंद है। दिन में अपनी माँ की दिनचर्या को देखकर उसे अपनी माँ पर गर्व होता है तो पिता की सेवाओं पर नाज़ होता है। उसकी माँ एक सरकारी बैंक में कार्यरत है। वह दिन भर घर परिवार के कामों के साथ साथ बैंकिग व्यवसाय को भी पूरा पूरा न्याय देती है। बहुत ही मिलनसार स्वभाव और सबको सहायक होने से उसकी छवि बडी प्रतिष्ठित है। पिता एक नामी डाक्टर है जो कोरोना की बीमारी से लड़ते हुए मरीज़ों की सेवा सुशुष्णा में जुटे हुए हैं। घर में रहते हुए उसे एहसास होता है कि दोनों के परिश्रम से आज उसके परिवार की इज़्ज़त है। वह अपनी पहचान भी उसी तरह बनाने की ठान लेता है जो सच्ची लगन और परिश्रम की नींव पर टिकी होती है ।