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Shubham Garg

Drama

4  

Shubham Garg

Drama

नया घर

नया घर

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कहते है पैर उतने ही फैलाने चाहिए जितनी बड़ी चादर हो। ये बात मेरी मां से पूछो जिन्होंने सर्दियों में भी वो चादर अपने बच्चों को उड़ा दी और खुद अपनी ख्वाहिशें औड़कर सोती रही।


लेकिन इतने सालों तक घर को संभालने के बाद मम्मी ने एक चीज़ का सपना देखा था। नया घर लेने का। मम्मी ने कब से ज़िद लगाई हुए थी कि एक नया घर लेना है जिसमें जब कभी मेरी चारों बहने एक साथ आ जाएं तो उसमे पूरा समा सकें।


कब से चल रही इस ढूंढ़ के बाद जाकर फाइनली हमे इस साल फ्लैट मिल ही गया। मम्मी बहुत एक्साइटेड थी क्यूंकि उन्हें सबको शो-ऑफ जो करना था। घर पूरा रैडी होने में थोड़ा टाइम था तो हमने डिसाइड किया कि हम दशहरा वाले दिन हवन वगैराह कराके वहां शिफ्ट हो जाएंगे।


हमने बेड बनवाए, अलमारी बनवाई। मैंने बुक शेल्फ भी बनवाई। और मैं एक्साइटेड इसलिए था क्यूंकि अब फाइनली मेरा खुद का कमरा होने वाला था। बचपन से लेकर अब तक हम सब 45 गज के घर में रहते थे जहां एक फ्लोर पर सिर्फ एक कमरा था और हम 7 लोग। धीरे धीरे बहनों कि शादी हो गई और हम 3 ही रह गए। लेकिन तब भी खुद का कमरा कहने के लिए कोई कमरा नहीं मिला था।


दशहरे के दिन उद्घाटन हुआ। थोड़े लोगों को बुलाया, उन्होंने घर पे कॉमेंट्स किए और ये दिन खत्म हुआ। हमने अभी तक सारे गद्दे भी नहीं खरीदे थे और मैं पहली रात अपने कमरे में अपने बुक शेल्फ के सामने नहीं सो पाया।


अगले दिन पापा और मैं ऑफिस चले गए। मेरी दो बहने घर पर थी। उनका फोन आया तो पता चला कि अचानक मम्मी को चक्कर आने लगे और उन्हे हॉस्पिटल में एडमिट करा दिया है।


एक दिन उस हॉस्पिटल में रहीं। अगले दिन सुबह हॉस्पिटल में उनसे मिलकर मैं ऑफिस चला गया। दोपहर को बहन का फोन आया कि मम्मी कि तबीयत ज़्यादा ख़राब है घर आजा। वो रो रही थी। और इधर मेरे आंसू बहना चालू हो गए।


ये मेरे आंसू इतनी जल्दी कब से बहने लगें है मुझे नहीं पता लेकिन ये सब कि ज़िम्मेदार मेरी मम्मी और मेरी चार बहने ही है।


जल्दी से मैंने सामान उठाया, मेरे दोस्त ने मुझे उनकी कार में बैठाया और हम हॉस्पिटल के लिए निकल गए। फिर मुझे लगा ये मेरी बहने वैसे ही जल्दी रो देती है, पापा से पूछता हूं। पापा को फोन मिलाया तो पापा ने कहा एक बार आजा।


जब भी पापा को फोन करता था तो पापा चिंता दूर करते थे, इस बार उन्होने नहीं की, तो समझ आ गया कि कुछ ज़्यादा क्रिटिकल है। पूरे रास्ते रोते हुए हॉस्पिटल पहुंचा। सब लोग बाहर खड़े थे। एक एम्बुलेंस भी थी। मम्मी को दूसरे हॉस्पिटल में रेफर किया गया था।


थोड़ी देर तक मैं रोता रहा बिना किसी से पूछे कि मम्मी को हुआ क्या है। फिर पता चला कि ब्रेन हेमरेज है। ब्रेन हेमरेज नहीं था इस्कीमिक स्ट्रोक था पर क्या फर्क पड़ता है। दूसरे हॉस्पिटल में एडमिट हुई। इतनी फॉर्मेलिटीज़ कि मुझे लगा कि मेरी मम्मी पहले ही दम तोड देंगी।


फिर एम. आर. आई. हुआ तो पता चला कि ब्रेन में स्वैलिंग है और ऑपरेशन करना पड़ेगा। डॉक्टर्स ने कहा अगर नहीं किया तो ये वैसे ही जा रहीं है और अगर किया तो बचने के चांसेज है थोड़े लेकिन फिर भी जान को खतरा हो रहता ही है।


आज तक ये सब बस टीवी में देखा और सुना था और अब ये सब मेरे सामने था। हमें लगा कि इतने टाइम से जो घर लेने कि ख्वाईश थी उसी का इंतजार कर रही थी, अब जब पूरी हो गई तो ये मम्मी का आखरी समय है। हम सब बहुत रोए, बहुत प्रेयर्स की, वो सब कुछ किया जिन्हे अंध विश्वास मानता था।


फिर रात को खबर आई कि ऑपरेशन सक्सेसफुल हो गया है। थोड़ा सुकून। धीरे धीरे मम्मी स्टेबल हुई वेंटिलेटर हटा तो जब भी कोई मम्मी से आई. सी. यू. में मिलने जाता था तो थोड़ा बोलने कि कोशिश करता था। लेकिन मैं तो बिना बोले ही वापिस आ जाता था।


इतने दिनों बाद जब पहली बार बोला तो बोल ही नहीं पाया। उन्हे ऐसी हालत में देखा है कि भगवान से प्रार्थना करता हूं कि किसी को अपने करीबी को इस हाल में देखने की नौबत ना आए। जैसे कंडीशन थोड़ी बेहतर होने लगी और मम्मी वार्ड में शिफ्ट हुई तो पता चला कि मम्मी चीज़ें भूलने लगी है।


मम्मी दीवाली पर घर पर नहीं थी तो इस बार ना ही दीवाली दीवाली जैसी थी और ना ही घर घर जैसा। हालाॅंकि ऐसा कुछ खास हम करते भी नहीं थे लेकिन मम्मी के बिना तो वो सादगी भी चली गई थी।


एक महीने और कुछ दिन हॉस्पिटल में रहने के बाद वो वापिस घर आई। अपने नए घर। लेकिन उन्हे ये भी याद नहीं था कि वो कहां है और ये किसका घर है। कुछ दिनों तक ऐसे ही चलता रहा। फिर सिटी स्कैन कराया तो पता चला ब्रेन में फ्लूइड ज़्यादा हो गया है, एक और सर्जरी करनी पड़ेगी। फिलहाल ही में मम्मी की एक और सर्जरी हुई है।


अब ज़्यादा खुश होने से भी डर लगने लगा है। कि कहीं पहले ही किसी कि नज़र ना लग जाए। कि कहीं अपनी ही नजर ना लग जाए। अभी तक उस बुक शेल्फ के सामने नहीं सोया हूं। अभी तक अपने कमरे को अपना कमरा नहीं कहा है।


शायद मम्मी हार रही है। लेकिन उनकी ये चादर जिस पर हम पसर कर सो रहे थे वो मम्मी को वापिस उड़ाने का समय आ गया है। लेकिन सिर्फ उन्हें ठंड से बचाने के लिए। अभी हमारा मूड नहीं है उन्हें अलविदा कहने का। 


पता नहीं वो कितने समय तक मौत से लड़कर हमारे साथ रहेगी लेकिन जब तक भी रहेगी अपने नए घर में रहेगी।


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