अ ' नॉट सो सोलो ' ट्रिप
अ ' नॉट सो सोलो ' ट्रिप
निकम्मा, नाकारा, कोई जॉब ढूंढ़ ले, आगे पढ़ाई ही कर ले, आपका बेटा क्या कर रहा है, इसने तो इंजीनियरिंग कि है ना - और ना जाने क्या क्या। इन बातों को जितना इग्नोर करने की कोशिश करता था उतनी ही हावी हो जाती थीं।
एक दिन यूंही हालातों का सामना कैसा करना है ये सोच ही रहा था कि पापा के पास एक कॉल आया। वो मेरे कजिन का था। वो शादी शुदा और अमीर हैं। या अमीर और शादी शुदा इस ऑर्डर में पता नहीं। उन्होंने कुछ कुछ बोला। पापा ने कहा पूछता हूं। फिर पापा ने मेरी तरफ देखा और बोले - "थाईलैंड जाएगा?"
अब इतने एडवेंचरस सवाल कोई यूंही कैसे पूछ सकता है ये तो पापा ही जाने। मैंने तो हां बोल दिया। आज तक लोगों के गोवा के प्लान्स नहीं बन रहे थे और मेरा तो थाईलैंड था। थोड़ा दिनों में भैया ने पासपोर्ट मंगवाया विसा के लिए, मैं दे आया। जाने की तारीख करीब आ रही थी। पापा के पास भैया का फोन आया कि इसका पासपोर्ट थोड़ा खराब है तो पता नहीं वीसा मिलेगा की नहीं। और मुझे जैसे इन बातों से फर्क ही नहीं पड़ रहा हो। मुझे पता था कि मेरा कटेगा। दिन आया, मेरा अभी तक नहीं कटा। उन्होंने कहा था शायद एयरपोर्ट पर मना कर दें वो। नहीं किया, अभी तक इंतज़ार चल रहा है कि कोई तो रोक दे। नहीं रोका, पहली बार प्लेन में बैठने वाला था। सुपर एक्साइटेड, प्लेन में बैठ गए अभी तक कुछ नहीं हुआ।
प्लेन उड़ा पेट में गुदगुदी हुई, प्लेन क्रैश होने के खयाल आए, और हम पहुंच गए थाईलैंड। भैया ने बोला अभी वो इमिग्रेशन कुछ होगा। मुझे लगा अब तो ये लोग मुझे वापिस भेज ही देंगे। दिल धक धक कर रहा था। ये कह रहा था कि अब टच करके तो वापिस नहीं जाना। नहीं भेजा। और मैं आखिरकार बैंकॉक पहुंच गया। तब जाके असली एक्साइटमेंट चालू हुआ। ओह, मैं तो सच में पहुंच गया। अब घूमते हैं। बैंकॉक से बस हमें पट्टाया ले कर गई जहां हमे तीन दिन रुकना था। अच्छा सा होटल स्विमिंग पूल के साथ। किस्मत चमकी और मुझे कमरा भी अकेले ही मिल गया। बहुत अच्छी किस्मत, नहीं?
और क्योंकि इंसानों की फितरत होती है हर चीज़ को जज करना (कितना भी बोल लो हम नहीं करते जज, सब बुलशिट है), तो मैंने थाईलैंड को ही जज करना शुरू कर दिया। पट्टाया बहुत बदबू मार रहा था और मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी। जब भी मुझे पसीने आ रहे थे तो वो सेम बदबू मुझ में से भी आ रही थी। यक। उसके अलावा सब अच्छा था। हम अलैकैजार शो, ओरांगुटन शो देखने गए। बहुत सारा खाना खाया। बहुत सारी पिक्चर्स खिंचवाई। और क्योंकि भैया शादी शुदा हैं और उनके दोस्त भी, तो वो सब आपस में ही बिजी थे। और मुझे अकेले घूमने का मौका मिल गया। और क्योंकि मैं अकेले घूम रहा था तो मेरी तस्वीरें या तो सेल्फीज़ थी या उन जगहों की तस्वीरें जहां पर मैं था।
पट्टाया के बाद हम वापिस बैंकॉक आ गए जहां हम एक दिन रुके। हम क्रूज़ वगैराह पर गए। तो थाईलैंड में मैंने बहुत सारी चीज़ें पहली बार की। मैं पैरासेलिंग और क्रूज़ की बात कर रहा हूं। तो अपनी बदबू और टैन साथ लिए मैं वापिस दिल्ली आ गया।
थाईलैंड अच्छा था लेकिन उन जगहों में से नहीं था जहां मैं अपने दिल का एक टुकड़ा भी छोड़ कर आया हूं, मुंबई की तरह नहीं जहां मैं अपने आप को पूरा का पूरा छोड़ आया था जब मैं इस साल वहां पहली बार गया था। खैर, थाईलैंड से वापिस आ गए। और लोगों का ' और क्या क्या किया ', ' मसाज कराई की नहीं ' वो बुलशिट चालू हो गया।
पर वापिस आने के बाद मुझे समझ आया कि अगर सही राह पर चलते रहो और चीज़ों के होने की उम्मीदें छोड़ दो तो वो तुम्हें मिल ही जाती हैं और ये भी कि खुश रहने के लिए ज़रूरी नहीं तुम्हारे पास लोग हो, ये नज़ारे ही काफी हैं तुम्हें ज़िन्दगी भर मसरूफ़ रखने के लिए।
