STORYMIRROR

नोट, नोटा और लोटा

नोट, नोटा और लोटा

14 mins
1.1K


वो बोले, मैडम चंहु और चुनावों का मौसम है, आपका `ऑरा' इतना बड़ा है खड़ी हो जाएं। हमें सब चने के झाड़ पर खूब चढ़ाते है। और हम भी चढ़ते रहते हैं। वो बात अलग हैं, कि ``अगेन एण्ड अगेन'' चने के झाड़ से लुड़कने पर भी हमें अक्ल नही पर इस बार हमने पूछा – हार गए तो।

अरे तो क्या हुआ – कितने लोग तो हारने के लिए ही खड़े होते हैं। आपने देखा नहीं नेताओं को, इधर से हारे तो उधर चले गए, उधर से हारे तो इधर आ गये। लुड़क पट्टी के खेल खेलते रहते हैं। हमें याद आई उन महान नेता की बात, जो एक बार उन्होंने बताई थीं –

हम लोगन का सरीर में गोल-गोल गेंद जैसा लगा रहता है हम लोग लुड़कता रहता है। जहां को मलाई दिखता है, हमारा सरीर उसी ``डायरेक्सन'' में लुढ़कने लगता हैमैडम आपका वॉर्ड तो ``लेडीज स्पेशल'' है।

लेडीज स्पेशल मतलब?

मतलब महिलाओं के लिए आरक्षित। हमें चने के झाड़ पर चढ़ाने वालों के साथ हमने कई राजनीतिक पार्टियों के द्वार खटखटाए। पर हम इस लायक ही ना थे क्योंकि हम उनके ``क्रायटेरिया'' से कहीं बहुत ज़्यादा पढ़े लिखे थे। ``मैड'' याने एम.ए डबल और ऊपर से लेखक। बड़े बेआबरू होकर हर राजनीतक दर से हम निकले। और टिकट मिलने वाली महिलाओं की शिक्षा थी – आठवीं पास, दसवीं पास और इसी तरह। अब हमें अपने पालनहारों पर गुस्सा आया, क्या जरूरत थी, हमें इतना पढ़ाने की। पढ़-लिखकर भी हमें वोट तो इन आठवीं, दसवीं वालों को देना अब चने के झाड़ पर जिन्होंने हमें टिका रखा था, उनमें से एक बोला आपको तो जो कड़े कड़े दे नोट, उसे दे देना वोट। वैसे भी जो आपको फोन कर-करके आराम-हराम करके रखते है, जीतने के बाद पांच साल के लिए ``नॉर्थ पोल'' पर चले जाते ह हमें लगा, सच है, अबकी हम अपना वोट बेचेंगे।

दूसरा बोला – आप-आप ऐसा कर ही नहीं सकती। समाज के प्रति आपका दायित्व है। तब हमें याद आया, हम नामचीन है। दायित्व को ढोना जरूरी है। फिर क्या करें? तब किसी ने सुझाया आपके आक्रोश को बाहर निकालने के लिए नोटा को अपनाइए। तब हमें भी नोटा ही सर्वश्रेष्ठ विकल्प लगा। फिर पहला बोला नोट, दूसरा बोला नोटा । हम बड़े पशोपेश में पड़ गए हमारा सरीर में ``बाल'' (बॉल) लग गया, हम नोट और नोटा के बीच लुढ़कने लगा ओह ये क्या हुआ हमारी भाषा को। अचानक डोर बेल बजी – सामने सादे से सफेद कपड़ों में सौम्य व्यक्तित्व वाले पुरुष खड़े थे जी आप,

मैं नोटा –

नोटा – अ आ आप

जी "this is the personifications" आज मेरा मानवीकरण हो गया है। मैं अंदर आंऊ

जी जी आईए आईए

मैने नोटा को सोफे पर बैठाया, कि दोबारा घंटी बजी – सामने लक्ष्मी के अवतार, गुलाबीरंग में हीरे, मोतियों से जड़े, अपने हरे मातहतों के साथ गुलाबी महाराज याने नोट भी ``एटीट्यूड'' के साथ खड़े थे अ अ आप

उन्होंने अपनी गर्दन 180 डिग्री पर घुमाई, उनके ``असिस्टेंट'' मिस्टर हरेराम ने कहा

ये वो हैं, जिनके घर ये होते, सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता, खान-पान का वैभव सब इनसे आता।

पर आपकी सवारी कहां है?

उसे हमने आपकी "V.I.P" विज़िटर्स पार्किंग में पार्क कर दिया है।

अगर वो उड़ गया तो? ``असिस्टेंट'' ने हमें अजीब-सी निगाहों से देखा, जैसे कह रहा हो – ``कैसी मूर्ख है, उसे उल्लू समझ रही है, जो लक्ष्मी के वैभव के रंगों को छोड़कर उड़ जाएगा?' अजीब हैं आप, दीपावली पर तो रातभर जागकर दीपक में तेल डालती हैं, ताकि लक्ष्मी माता पधारे। आज हम स्वयं पधारे, तो आप अंदर भी नहीं बुला रही।

ओह आय एम सॉरी। वो मे....

अब वो बिना इजाज़त अंदर आ गए थे – अंदर सोफे पर नोटा को विराजित देख वितृष्णा से फिर गुलाबी महाराज याने नोट जी ने 360 डिग्रीज पर अपने पीछे खड़े ``असिस्टेंट'' हरेराम की ओर गर्दन रोल की। ``असिस्टेंट'' बोला, इस नोटा से कहो, किनारे सरके, महाराज बीचों बीच बैठेंगे। आपके घर आए हैं, तो आपको ये ``प्रिविलेज'' मिलेगा, कि आप इनके बाजू में बैठ सकती हैं।

अब सोफे के एक कोने में नोट। उनके दाएं हम, हमारे दाएं गुलाबी महाराज याने नोट जी बैठे थे।

``असिस्टेंट'' ने फिर कहा – हम आपको खरीदने आए हैं। पता चला है, आपका काफी वर्चस्व है, इस इलाके में। अब हमें गुस्सा आ गया, इतना ``ए‍टिट्यूड'' हमारी ही घर में, हमारे साथ। पर हम कुछ कहें उसके पहले बाएं से नोटा बोले - हरगिज नहीं – हरगिज हरगिज अपना ईमान मत बेचना।

अब हरेराम कुछ कहने ही जा रहा था, कि नोट ने हाथ के इशारे से हरेराम को चुप किया। अब गुलाबी महाराज निकनेम नोट ने पहली बार अपनी ``वोकल कॉड'' को स्वर दिया – हमने हमारी गर्दन दांये घुमाई।

देखिए – कुछ नहीं रखा, इस ईमान, विमान में। ऐसा है, चॉल और झोपड़पट्टियों के ईमान के भाव अलग-अलग है। उन्हें हम पाचं सौ से दो हजार तक में खरीद लेते हैं। आप बड़े फ्लैट में रहती है ऊपर से कलम चलाने जैसा फालतू काम भी करती रहती हैं। आपको हम बीस हजार दे देंगे। फिर नोटा ने हमारी गर्दन अपनी और घुमाई – देखो बहन – तुम बड़ी पेशोपेश में हो, तुम्हारी ``कॉन्स्टयूयन्सी'' से 300 महिलाएं खड़ी है। उनमें से तीन-चार को शायद तुम जानती हो पर बाकी तो नोट लेकर वोट कटवा बनकर खड़ी हैं। हाँ! बात तो आप सही कह रहे हैं, नोटा जी – काबलियत के आधार पर तो उनमें से हम किसी को नहीं चुन सकते ना। दो सभाओं में हमें बुलाया गया था। नगरसेविका के लिए चुनाव लड़ने वाली – मैडम जी को जब भाषण देने खड़ा किया गया – तो बोलीं

ही ही – ``आप सब आए अच्छा लगा, हम तो पहले कभी बोले बाले नहीं, ऐसा है वर्माजी (कहकर वो लजा गईं, वर्तमान नगरसेवक वर्माजी उनके पतिदेव हैं) हां तो वर्माजी बहुत अच्छा बोलते हैं, हमारे बदले वो बोलेंगे।''

हमें लगा, जब अधिवेशन होगा अगर वे चुनकर आ गईं तो ये वहां बैठेंगी कि वर्माजी! फिर हमने सोचा, अगर हम काबलियत के तराजू पर तौलेंगे, तो इनमें से किसी को नहीं चुन पाएंगे। चलो ऐसा करेंगे जिसका चौखटा सबसे सुंदर होगा उसी के आगे हम ``ई.वी.एम'' का बटन दबा आएंगे। हारनेवाला बेईमानी के आरोप लगाता है और जीतनेवाला ईमानदारी की कसमें खाता है। पर एक मोहतरमा, ऊपर से नीचे तक बुर्के में ऐसी बंद थीं, कि बहुत ताक-झांक करके भी उस होर्डिंग में हम उनके चेहरे के दीदार ना कर पाए।

नोटा जी हम बड़ी दुविधा में हैं। वोट तो देंगे ही, हम इस देश के जिम्मेदार नागरिक जो हैं।

नोटा के चेहरे पर चमक आई। ``तभी तो कहता हूँ बहन मुझे वोट दे दो।

हां वहीं सही रहेगा।

हमारी यह बात सुनते ही अब नोट ने हमारी गर्दन एक दम से एक झटके में अपनी ओर घुमा दी।

हमें गुस्सा आने ही वाला था, कि उसने एक काली ब्रीफकेस खोली जिसमें गुलाबी रंग की बहार थी। साथ में हीरे, पन्ने, नीलम के गहने थे। हाय ! हीरे की चूड़ियां पहनने की कितनी तमन्ना थी, हमारी। हमारा गुस्सा उड़न छू हो गया। नोट महाराज ने कहा।

जानते हैं, इस चमक से आप भी चमक जाएंगी, वैसे तो आपका व्यक्तित्व ऐंवे हैं, पर महंगे कपड़े और गहने पहनकर जहां जाएंगी, छा जाएंगी, और हरेराम कल ही मैडम के नाम वो कॉर्नर वाली दुकान रजिस्ट्री करा दो। अपनी कलम घिसने का काम वहीं कर लिया करेंगी।

वाह, खुद का राइटिंग ऑफिस होगा, जहां हम प्रोड्यूसर, डायरेक्टर्स के साथ मीटिंग कर सकेंगे। हमारे चेहरे के भाव देखकर नोट ने घमण्ड से कहा। तो अब कहिए किसे वोट देना है।

हम हां कहने ही जा रहे थे। कि नोटा ने हमारे कंधे पर हाथ रखा, उसकी आंखों में आंसू थे। उसने कहा।

मेरी दु:ख भरी कहानी एक बार सुन लो, फिर निर्णय लेना।

उसकी आंखों में आंसू देख हमारी आंखों से भी अश्रु धारा बह निकली। लेखक दूसरों की संवेदनाओं पर ही तो अपनी लेखनी का महल खड़ा करता है।

जी कहिए ना।

हमें नोटा से बात करते देख नोट ने हमारी गर्दन, दायीं और घुमाने की कोशिश की पर हमारी लेखकीय खुद्दारी ने उसे उंगली दिखाकर शांत कर दिया, हमारी गर्दन बाएं ही घूमी रही - - -

हां नोटा भाई कहिए –

बहन अगर आप इज़ाजत दें तो मैं अपने कुछ दोस्तों को बुला लूं। राइट टू रिकॉल, राइट टू रिजेक्ट और कुछ वो ईमानदार लोग जो मेरे साथ हैं।

जी बुलालें – पर पहले अपने नाम का मतलब तो बताईए।

बहन मैं नोटा – याने नन आफ द अबॉ (None of the Above)। बताओ तो, ये कहां का न्याय है कि मुझे ग्यारह हजार वोट मिलें, दूसरे को दस, तीसरे को पांच फिर भी मैं नहीं जीत सकता क्योंकि मेरे पास जनबल और बाहुबल नहीं, इसलिए प्लीज तुम लिखो, इस पर... यानी मेरा वजूद है, पर वकत नहीं।

हां जरूर लिखेंगे हम।

यह सुनकर नोट ने हमारी गर्दन में पिन चुभोई, अचानक हमारी गर्दन फिर दायीं ओर घूम गयी– नोट ने कहा

ये नोटा वोट कटवाने की बात कर रहा था ना, तुम्हें पता है ये सबसे बड़ा वोट कटवा है। एक प्रत्याशी ने मुझे इतना उपयोग में लिया। लोगों के घर भर दिए, पर हुआ क्या उसे बीस हजार मिले, और दूसरो को बीस हजार पांच सौ –

वो पांच सौ वोट ये डकार गया था। अगर ये मूसलचंद नहीं बनता तो मेरा प्रिय प्रत्याशी जीत जाता ना। ये सब छोड़ो तुम अपने घर के आस-पास एक लायब्रेरी खुलवाना चाहती हो ना। उसमें मैं तुम्हारी मदद करूंगा। इसकी बातों में मत आओ। ये ब्रीफकेस रखो, कल ऐसी और पांच-दस और आ जाएंगी।

यह देखकर हमारी आँखें चमकने लगी। इतने में फिर नोटा की सिसकियों की आवाज सुनाई दी। उफ् हम क्या करें – वोट किसे दे नोट को कि नोटा को। हमने कहा ऐसा करिए एक वाद-विवाद हो जाए आप दोनों के बीच जो जीता समझो हमारा वोट जीता। तो मिस्टर नोट, जिसके साथ आप होते तो क्या होता बताएं।

जिसके साथ मैं होता हूँ, वो अंबानी, अडानी, टाटा, बिडला, सजनानी, बिनानी बन जाते हैं।

अब नोटा भी अपने करूण रस से बाहर आकर रौद्र-रस में सराबोर हो गया – बोला

मैं जिसके साथ होता हूँ वो अण्णा हजारे बन जाते हैं, और ईमानदार नेताओं की फसल उगाते हैं।

नोट व्यंग्य में हंसा – वो फसल कैसी ऊगती है, सबको पता है।

महात्मा गांधी जैसों का समर्थन मुझे याने नोटा को मिलता है।

किस ग़लतफहमी में जी रहा है। महात्मा गांधी तो मेरे साथ ही मुस्कुराते हैं, मेरे वजूद को बढ़ाते है।

नोटा का दांव उल्टा पड़ गया था – पर उसने हार नहीं मानी –

तेरे कारण है, महंगाई, सट्टा बाजार, काला बाजारी, सारे काले कारनामें हैं, तेरे कारण, तेरी तो दुनिया ही काली है।

काली, फिर हंसा नोट - - - -

अरे मूर्ख उस काली दुनिया में भी जो रंग है, वो सब मेरी ही तो माया है।

माया महा ठगिनी हम जानी –

नोटा की इस बात पर नोट बोला ये वो कहते है, जिनको माया मिलती नहीं।

फिर नोटा बोला जिनको मिलती है, वो भी तो यू. पी. में हार जाते हैं, फिर हार का ठीकरा ``ई.वी.एम.'' पर फोड़ते हैं।

बात को घुमा मत – अपने आपको बड़ा सफेदपोश कहता है ना, सारे सफेदपोश अपने काले कारनामें मेरे रंगों से ही छिपाते हैं और सफेदपोश बन जाते हैं। सब मेरे आगे बिक जाते हैं –

मैं कभी नहीं बिकूंगा – नोटा ने ओज के साथ कहा।

अच्छा ये जो आज तू कपड़े पहनकर आया है कैसे खरीदे? अब मानव तन को जिंदा रखने के लिए खाना खाता है, कहां से आता है। और मिनरल वॉटर की बॉटल से पानी पी रहा है, बच्चू अगर नदी, तालाब का पानी पिएगा, तो इतना ``पॉल्यूटेड'' है कि टांय टांय फिस्स कर जाएगा।

नोटा ने दांव मारते हुए कहा तुमसे किसी का भावनात्मक लगाव होता है कभी? बड़े नोट बने फिरते हो–

अच्छा तुझसे है, तो पहले तू ही बता दे।

नोटा सेंटी होकर बोला –

``जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो वोटिंग वाली सुबह। एक सुंदरी अंदर आई, अपनी उंगली मशीन पर दबाई और निकलने लगी, फिर बहुत ही व्याकुल होकर वापस आई और बोली – मुझे नोटा को देखना है । उसे रोका गया फिर भी वह वापस आई उससे मेरी आंखें चार हुईं । उसकी आंखों में दर्द तैर गया। सॉरी डियर नोटा, मैं चाहती तो तुम्हें थी, पर कल कमल, इंजन, पंजे पर सवार कुछ लोग घर आ गए। एक ने तो इस कदर ``इमोशनल'' अत्याचार किया। बोला आप मेरी बहन है – आप भाई को ही तो जिताएंगी। और मैंने अपना बहन धर्म निभाया। पर अगली बार सारी जंजीरे तोड़, तुम्हारे ही प्रेम के गीत गाऊंगी । फिर शरमाकर बोली, मैं तुझसे मिलने आई, वोट देने के बहाने।''

उसका और मेरा प्रेम संवाद आंखों ही आंखों में चल रहा था, कि महिला अधिकारी ने उसे बाहर कर दिया।

नोट हंस-हंस कर लोट-पोट होने लगा। उसकी ये इतनी ``फनी'' हंसी देख, हमें भी हंसी आने लगी।

हंसते-हंसते नोट बोला अले ले ले ले, तेरे पास एक सुंदरी की आंखों के इशारे हैं।

मुझे तो न जाने कितनी सुंदरियां, अपने दिल के पास छिपाकर रखती हैं।

नोटा और नोट में गरमागरम बहस छिड़ गई थी। कभी दाएं कभी बाएं घुमाते हुए हमारी गर्दन के बाहर बज गए थे। हमारी आह सुनकर नोट ने अपने ``ईमीजिएट'' प्रभाव से ``बेस्ट फिजियो'' को बुलाकर, हमारी गर्दन ठीक करा दी।

फिर बोला – मैडम, इस ``हॉट डिस्कशन'' से दिमाग का दही बन गया है।

जाइए, जरा, कड़क चाय बना लाइए।

हमने कहा हमारी बाई आती होगी वो चाय बना देगी। यह सुनकर व्यंग के साथ कहा।

आपकी बाई आज दो हजार लेकर एक पार्टी की रैली में गई है। जल्दी नहीं आनेवाली। चाय की बड़ी तलब लगी है आप बना लाईए।

नोटा भी बोले – हां बहन चाय तो पीनी है। हम रसोई की और मुड़े। जाते - जाते नोट बोला –

मैडम कड़क नोट से खरीदी, कड़क चाय बनाना जरा अदरख, इलायची भी डाल देना, जो कल सौ रूपए के नोट से मंगाई थी। और जरा ब्रैंडेड क्रॉकरी में लाना, जो मॉल से लाई थी।

नोट सच ही तो कह रहा था। अगर नोट देकर बिल न बनवाते, टैग के साथ बाहर निकलने लगते, तो बीप-बीप की आवाज के साथ खुद टैग हो जाते। हम चाय बना ही रहे थे कि वॉचमैन बाई के साथ अंदर आ गया।

मैडम जी, ये लीला को पकड़ के लाया हूँ, परसों रूपये लेकर सपा की रैली में गई थी, कल कांग्रेस की, आज भाजपा और शिवसेना में, हमें गुस्सा आया –

लीला, तुम्हें शर्म नहीं आती –

उसने अपनी पीठ का पल्लू ऊपर किया –

मैडम ये देखो - - -

ये क्या – कैसे निशान?

दारू, चखणा के लिए मेरा नवरा मारा मेरे कूं, उसको रूपिया नई दी थी तो। आपका पगार बी नई मिला था। 201 वाली मैडम भी दस दिन जब मैं बीमार गिरी, तो पगार काट ली थी। अब तुमइच बोलो मेरे कूं, अगर पैसा मिला, मेरे बच्चे लोग को नया कपड़ा मरद को अद्धा लाई, मिठाई भी लाई। अपने कू भी नई साड़ी लाई, तो क्या बुरा की? आप लोग तो उतरा कपड़ा और बासी खाना देते, हम भी इंसानइच हैं सोचते क्या कभी?

बाई के दुख सागर में उठी सुनामी में हम बह गए। अब हमें नोट पर श्रद्धा होने लगी।

तभी वॉचमैन बोला –

मैडम आपका वो लेख है ना, ``साफ सुथरे चुनाव'' वो हम पढ़ा और अपना दोस्त लोगों को भी पढ़ाया। एक बताया अगर, कोई पसंद नई, तो कोई नोटा भी खड़ा है, उसको वोट देने का।

फिर कशमकश पैदा हो गई नोट कि नोटा?

चाय लेकर बाई के साथ जब हम ड्रांईग रूम में पहुंचे, तो नोटा के कुछ दोस्त आ चुके थे, नोट के भी कुछ उद्योगपती दोस्त आ गए थे। अरे वाह इतने बड़े-बड़े लोग, आज हमारे घर।

चाय की चुस्कियों के बीच नोटा के दोस्त ने कहा –

आजकल नोटा पर बुद्धिजीवी, सुप्रीम कोर्ट के जज सब बात कर रहे हैं। उसने पूरे आंकड़ों के साथ नोटा का प्रोफाइल बताया, कब जन्म हुआ, कैसे बड़ा हुआ, वर्तमान में क्या कर रहा है?

नोटा ने फिर घमंड से कहा – क्या होने वाला है, देखो, मेरे साथी कितने रूतबे वाले हैं? उसके उद्योगपती साथियों ने उसे हग किया, वी लव यू ऑल –

नोटा के साथियों ने कहा –

जब से नोटा, आया कितने लोग जिन्होंने कभी वोट नहीं दिया, घरों से बाहर निकलने लगे हैं, उन्हें नोटा के रूप में विकल्प मिला है ।

नोट ने कहा, अमरीका के चुनाव में भी मेरी महिमा देखी।

अब ब्लॉग लिखने वाले एक लेखक ने कहा – अगर अमेरिका में ``नोटा'' ऑप्शन होता, तो हिलैरी, ट्रंप और नोटा के त्रिकोणीय चुनाव में नोटा ही अमेरिकन्स को बेस्ट ऑप्शन लगता।

इस बीच हमें, नेशनल इंटरनेशनल मीडिया चैनल्स और अखबारों से फोन, मेल आने लगे। हमारी फेसबुक जो सूनी पड़ी रहती है आज अचानक मालामाल हो गई। आज हमारे घर नोट-नोटा के बीच ऐसी बहस चल रही थी, जो सबकी ``टी.आर.पी.'' बढ़ाने वाली थी। हम सोचने लगे, कभी हम किसी बड़े साहित्यकार पर कार्यक्रम करते है, अंग्रेजी के अखबार में, जिसके मालिक साहित्य का सबसे बड़ा पुरस्कार देते हैं, वो तक कह देते हैं कि हमारा पाठक हिन्दी साहित्य नहीं पढ़ता। हम अपनी कोई उपलब्धि, छोटे से छोटे पत्र में तक नहीं छपवा पाते।

और आज अहो भाग्य हमारे! सारा देश-विदेश का मीडिया हमारे घर आ रहा है। धन्य होगा, हमारा अंगना। हम अब ऑस्कर तक छलांग लगा सकते हैं।

फोन आया, मैडम ``बी.बी.सी.'' की टीम बस पांच मिनट में पहुंच रही है। एड्रेस कन्फर्म कर दीजिए। हमने एड्रेस कन्फर्म किया। दरवाजे की घंटी बजी – हम दौड़ते हुए दरवाजा खोलने खुद गए। और दरवाज खोलते ही पूछा, आप बी.बी.सी. में किस पोस्ट पर हैं – सामने से आवाज आई।

बी.बी.सी..... ऊ काऽ मैडम जी? हम तो दूध बेचते हैं,

हमने पूछा, दूध बेचते हैं!

अरे हां! आपकबी.बी.सी. भी अब कलुवा, ललुआ को पोस्ट देने लगे। यह हमारे भारत की महिमा है।मैडम - आईए अब हमारी नींद खुली – सामने दूधवाला खड़ा था। वो तो ओ एक सपना था, ओ नो – दूध का लोटा हाथ में लेकर बड़े उदास भाव से हम सोच रहे थे न वोट, न नोट, न नोटा, हमारे हाथ में रह गया लुड़कन लोटा।ा दूधवाला कलुआ पाण्डे ललवा का भाई।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Fantasy