नमस्ते जी !
नमस्ते जी !
सुबह जल्दी उठा, दफ्तर का पहला दिन जो था, अम्मा बाबू जी ने कहा दफ्तर में सभी के साथ सम्मान और आदर से बोलना, किसी कलिग को आहत नहीं करना, न जाने कितनी सीख उन्होंने दी। इन्हीं बातों को सोचते हुए न जाने कब मैं दफ्तर पहुंच गया। दफ्तर के गेट पर बैठे चपरासी ने बोला नमस्ते जी,! मैं अभी कुछ समझ पाता वह फिर से बोला नमस्ते जी! मैंने भी नमस्ते जी की, और बोला मैं अरूण सिंह।
चपरासी ने पूछा आपको किस से मिलना है, मैं यहाँ ज्वाइनिग करने के लिए आया हूँ। चपरासी मुझे लेकर बडे बाबू के पास गया और कहा ये अरूण जी हैं, इन्हें ज्वाइन करना है। बड़े बाबू ने बैठने के लिए कहा, बोले अपना ज्वाइनिग लैटर दिखाईये! ठीक है। अरे भगवान दास! ये छोटे बाबू हैं, बराबर वाले कमरे में इनकी सीट दिखा दो। मैं अपनी सीट की तरफ बढ़ गया। साथ चल रहे भगवान दास जी ने कहा दफ्तर में किसी तरह की कोई जरूरत हो, तो मुझे बता दीजिये और वो चले गये।
आज मैं अपनी सीट पर बैठा था, आखिर मेरा सपना जो पूरा हुआ था।
अभी मैं सोच ही रहा था कि बड़े बाबू आ गए। हां अरूण! अपने काम के बारे में अच्छी तरह से समझ लेना, कभी किसी तरह की परेशानी हो, तो मुझे अवश्य बताना और वो चले गए। आज दिन कैसे बीत गया, कब पांच बज गये, कुछ पता ही नहीं चला। घर पहुंचा, बाबू जी अम्मा मेरा इन्तज़ार कर रहे थे, बोले कैसा रहा आज का पहला दिन! बहुत अच्छा। अम्मा चाय ले आईं, चाय पीने के बाद मैं अपने कमरे में कपड़े बदलने के लिए चला गया।
रात को खाना खाने के बाद मैं अपने कमरे में सोने चला गया। लेटते ही पूरे दिन का घटनाक्रम मेरे मन मस्तिष्क में एक चलचित्र की तरह उभरने लगा। जीना है तो हंस के जीयो ....गीत की गूँज सुनाई दी, हमारे पड़ोसी देवेन्द्र भाई साहब के आने का सिग्नल था। वह हमेशा प्रेरित करने वाला संगीत ही सुनते हैं, जिससे मैं भी उनका शुभचिंतक हूँ। तभी मुझे भगवान दास जी की याद आयी, कितने सलीके से बोलते हैं, बहुत ही सौम्य व्यक्ति हैं। तभी दूसरे गाने की मधुर आवाज सुनाई दी- रूक जाना नहीं तू कहीं हार के...... गाने सुनते-सुनते न जाने कब मेरी आँखे लग गयीं।
अम्मा की आवाज सुनाई दी, भैया उठ गये क्या? मैंने कहा उठ गये अम्मा, तुरंत तैयार होकर अम्मा के पास गया। अम्मा जल्दी करो आज देर हो गई, नाश्ता करने के बाद दफ्तर के लिए निकल पड़ा। दफ्तर पहुंचा तभी आवाज आयी नमस्ते जी? भगवान दास सामने थे। मैंने पूछा आप कैसे हैं ?
अच्छे हैं, छोटे बाबू। मैं अपनी सीट की ओर चला गया। इसी तरह कई माह गुजर गये।
एक दिन शाम के समय भगवान दास मेरे पास आये और एक शादी का कार्ड दिया और बोले मेरी पोती की शादी है, आपको सपरिवार आना है। मैंने उनकी ओर देखा, लगता नहीं कि आपके इतने बड़े नाती-पोते होगें। मेरे मुंह से अनायास ही निकल पड़ा, बाबू जी मैं जरूर आऊंगा। कई दिन बीत गए, मुझे उस कार्ड का ख्याल आया। मैंने उसे ढूंढा, आज ही शादी का दिन था, अच्छा हुआ, जो मैंने कार्ड देख लिया। कार्ड पर वेडिंग प्वाइंट का पता देखने के बाद मैं घर से निकल गया।
बह
ुत बड़ा फार्मस हाउस, गज़ब की लाइटिंग, मंद-मंद संगीत के स्वर वातावरण की शोभा बढ़ा रहे थे। हमारे दफ्तर के काफी साथी भी विवाह समारोह में शामिल हुए, सभी से मिलना-जुलना हुआ। तभी काले कोट में बड़े बाबू आते हुए दिखाई दिये, वह मद मस्त थे, बोले और अरूण कैसा है! अरे यार इन्ज्वाय करो, शादी में आये हो। मैं उत्सुकतावश उस माहौल से परिचित होना चाहता था, जहां इतना बड़ा आयोजन किया गया था, कितना खर्चा हुआ होगा ?
मेरे मन में न जाने कितने ऐसे सबाल आ रहे थे।
विवाह में अब आगन्तुकों की संख्या बढ़ती जा रही थी, मेरी नजर दफ्तर के ही सीनियर कलिग पर पड़ी। मैं उसकी ओर बढ़ा और भगवान दास के बारे में पूछने लगा। उसने कहा तम्हें उनके बारे में पता नहीं है, भगवान दास जी के एक बेटा एक बेटी है। दोनों बड़े अधिकारी हैं। मैं उसकी बातें सुनकर अचंभित था, क्योंकि भगवान दास जी के अन्दर जरा सा भी घमंड नहीं था, वर्ना ऐसी औलाद को पाकर लोग सातवें आसमान पर बैठ जाते हैं।
मेरे ह्रदय में उनके लिए और सम्मान भाव बढ गया था।
दफ्तर में मुझे लगभग डेढ़ साल से अधिक का समय हो गया था। जून महीने की आखिरी तारीख थी। रोज की भांति दफ्तर पहुंचा, तो देखा भगवान दास जी के नमस्ते जी! का सम्बोधन सुनाई नहीं दिया। मैं अपने काम में व्यस्त हो गया। दोपहर के तीन बजे थे, तभी चपरासी ने कहा- बड़े साहब ने आपको बुलाया है। मैं सोच पड़ गया, आखिर बात क्या है? बढे कदमों से उनके कमरे की तरफ चल पड़ा। मे आई कमिग सर, आओ अरूण। आज भगवान दास रिटायर हो रहे हैं। यह सुन, मैं हैरान हो गया, क्योंकि मैं उनके काफी क़रीब था। दफ्तर की किसी भी बात के लिए मैं उनसे चर्चा कर लेता था।
मैं स्तब्ध था, वह देखने से नहीं लगते कि उनकी रिटायर होने की उम्र हो गयी, लेकिन सरकारी नौकरी में आने के बाद रिटायरमेन्ट की तारीख भी निशचित हो जाती है। क्या सोच रहे हो अरूण! मैंने असमंजस की स्थिति में कहा, कुछ नहीं सर। साहब ने कहा भगवान दास की विदाई पार्टी करनी है, सब लोगों को तैयार करो। कुछ समय बाद भगवान दास जी की वही मीठी सी आवाज सुनाई दी नमस्ते जी! यह सुनते ही मुझे झटका सा लगा। एक अजीब सी बेचैनी हुई, मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मेरा कोई अपना मुझसे दूर जा रहा है। विदाई पार्टी का कार्यक्रम शुरू हो चुका था। वक्ता अपने-अपने सम्बोधन दे रहे थे। बड़े बाबू का सम्बोधन खत्म हुआ और उन्होंने मुझे भगवान दास जी के लिए अपने विचार रखने के लिए कहा।
जब से भगवान दास जी के रिटायरमेन्ट का सुना था तभी से मेरे ह्रदय में भावुकता के भाव उत्पन्न हो गये थे।
मैंने अभी चन्द शब्द ही बोले होगें कि मेरा गला भर आया, जो भगवान दास जी के प्रति मेरा सम्मान था। मैं उन्हें एकटक निहारता रह गया और अपनी सीट पर बैठ गया। अन्त में साहब ने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में उनकी भूरी - भरी प्रशंसा की, सभी दफ्तर के कामिर्को ने उन्हें विदाई दी। अगले दिन सुबह दफ्तर पहुंचा, न दरवाजे पर भगवान दास जी थे और न ही वह सम्बोधन, जिसे मैं प्रतिदिन सुनता था- नमस्ते जी !