नैना
नैना
रविवर का दिन था, मैं अपने होस्टेल के कमरे मे थी. बाहर तेज़ हवा चल रही थी. मन अशांत था I हवा में जो वेग और आक्रोश था वह मेरे मन में भी था I पढाई से मेरा मन ऊब चूका था Iइतने में मेरी नज़र १९९९ की डायरी पर पड़ी I पन्ने पुराने लग रहे थे पर जैसे- जैसे मैं एक-एक पन्ना पलट रही थी मनो आँखों के सामने सारी घटनायें एक चलचित्र की तरह नज़र आ रही थीं I
पहली बार जब मैंने उसे देखा तो कुछ अलग सा लगा I उन झील सी गहरी मासूम आखों में जो चमक थी मानो दुनिया की सारी चीज़ें उससे जगमगा उठें I छरहरी सी, खलबली सी, खिलखिलाती हुई वह दौड़ते हुए आ रही थी कि मुझसे वो टकराई I मैंने मुड़कर गुस्से से उसे देखा क्यूंकी काफी जोर का धक्का लगा था पर उसकी आँखों में वो चमक देखकर मेरे मुख पे जो मुस्कान आई शायद ही वह किसी को देख कर आती I उसने कहा, " आइ ऍम सॉरी I" मैं चुपचाप खड़ी देखती रही I इसके बाद न जाने हर दिन वह कहीं न कहीं मिल जाती थी I कभी कैन्टीन में, कभी स्कूल गेट के पास, कभी ऑटो स्टैंड...... हर जगह उसकी एक झलक मुझे मिल जाती थी I एक रोज़ कुछ कॉपियां लेकर मेरे सामने से गुजरी I मैंने पूछा, " नाम क्या है तुम्हारा?" उसकी आँखें सब कुछ बयां कर रही थी I कोई डर नहीं था I ऐसा लगा मानो सारी दुनियां पर उसका कब्ज़ा हो I यही बात तो मुझे उसकी ओर खींच लाई I उसने झट से कहा, "नैना"I
वह थी तो सिर्फ ग्यारह साल की पर मुखमंडल पर जो तेज़ था वह मैंने आज तक किसी में नहीं देखा था I मुझे उसमें एक अपनापन सा लगने लगा I कक्षा पांच में ही पढ़ती थी पर बातें बड़ी-बड़ी करती थी I किताबे अनगिनत पढ़ चुकी थी और घर में दादी माँ के उपदेश सुनकर नन्हे से दिमाग में ज्ञान का कोष इतना इकट्ठा कर रखा था मानो समुद्र में पानी भी कम पड़ जाए I उसके आशावादी दृष्टिकोण से मैं बहुत प्रभावित थीIनैना दिखने में ठीक ही थी I कद-काठी उम्र के हिसाब से सटीक थीI कंधे तक आने वाले काले मुलायम केश और बड़ी-बड़ी जिज्ञासु काली आँखें I
तीन महीने हो चले, हम दोनों के बीच जो रिश्ता कायम हो चला था वो अटूट था I शायद ईश्वर को यह मंज़ूर नहीं था कि नैना हमेशा खुश रहे I काले बादल आखिर किसकी ज़िन्दगी में नहीं आते ? पिछले कुछ.. तीन सप्ताह से नैना स्कूल नहीं आ रही थी I मुझे लगा कि यूँ ही बुखार होगा, पर जब कोई खबर नहीं मिली तो मैं उसके घर पहुंची I नौकर ने बताया, " वे सब सी.ऍम.सी वेल्लूर गए हैं I तीन सप्ताह बाद आयेंगे I" कुछ सप्ताह बाद मैंने नैना को स्कूल में देखा I आज वह गुमसुम सी अपने बेंच पर बैठी हुई थी I मैं चुपके से गयी और उससे पूछा, " क्या हुआ नैना? वेल्लूर गयी थी? मुझे बताया नहीं Iकिसी की तबीयत ख़राब थी क्या?" मैं क्षण भर के लिए चुप हो गयी I नैना ने जवाब दिया, " कुछ नहीं, मेरी तबियत ठीक नहीं थी Iबुखार हो गया I"इतने में घंटी बज गई और मैं अपनी कक्षा की ओर चल पड़ी I मेरा मन न जाने क्यूँ उसके घर की ओर खींचा चला जा रहा था I शाम को उसके घर हो ही आई I उसकी माँ ने दरवाज़ा खोला I मैंने पुछा, " नैना...घर पर है?" उन्होंने कहा, " आओ.. अच्छा हुआ तुम आ गई I " मैंने हिम्मत बाँध कर पुछा, " कुछ गंभीर समस्या है क्या?नैना..... को लेकर क्या?" वे हिचकिचाईं... "नैना.. को...." इतना बोलते ही उनका गला रुंध गया. मैं उत्सुक थी, जी मचल रहा था I " क्या हुआ?"हडबडा कर मैंने पुछा..... " नैना को... छोटी आंत का कैंसर है इतना " इतना कह कर वे रो पड़ीं I मैं सन्न बैठे रही I हाँथ-पैर ठंडे पड़ गए I साहस बटोर कर मैंने पुछा, " कैसे.. कैसे... हुआ?" "हाँ, कुछ ही दिन पहले से वह जो खाती थी पच नही रहा था, डॉक्टर को दिखाया तो कहा की छोटी अंत में कुछ गडबडी होगी इसलिए सी.ऍम.सी वेल्लूर में दिखा देते तो अच्छा होगा I सी.ऍम.सी में टेस्ट कराने के बाद डॉक्टरों ने ये कह दिया की नैना को छोटी आंत का कैंसर है I इसके लिए कीमोथेरपी की ज़रूरत थी क्यूंकि यह मलिग्ननत कैंसर था I" इतना कह कर वे चुप हो गयीं.
मैंने नैना की आहट सुन कर पीछे मुड कर देखा I मेरी आँखें नम हो गई I
" रो क्यूँ रही हो दीदी?" नैना ने पुछा I
"अगर रोने से मैं ठीक हो जाउंगी तो कितना अच्छा होता न, " नैना ने भोली सी आवाज़ में कहा I
उसने मुझसे कहा, " मेरा एक काम करोगी दीदी? "
" हाँ.. हाँ.. बोलो..," मैंने उसे उत्तर दिया I
" तुम तो जानवर, पक्षी, मनुष्य के बारे में पढ़ती हो न......... तुम्म्म्म ....... नही.... आप... मेरी बीमारी के बारे में पता कर के मुझे बताओ न प्लीस I" मैं चुप रही I
एक नासमझ ने मुझसे माँगा भी तो क्या माँगा?
" क्यूँ रे.. पागल हो गई है क्या?"मैंने कहा I
उसने कहा, " नही मुझे अपनी बीमारी के बारे में जानना है I"
"अच्छा ठीक है," मैंने आंहें भर कर कहा I
मैंने स्कूल में हमेशा उसका साथ दिया I रोजाना तो वह स्कूल नही आ पाती थी, पर कोशिश यही थी कि पढ़ाई ढंग से हो सके I कीमोथेरपी रेडिएशन के चलते उसके बाल झड़ने लगे I शार्रीरिक दुर्बलता बढती जा रही थी I चार महीने बाद उसे वेल्लूर जाना पड़ा I इस बार चिकत्सकों ने उसके बाल कटवा देने को कहा I नन्ही सी जान से यह बर्दाश्त नही हुआ I रो - रो कर बेहाल हो गई I घर से बहार निकलने का मन नही करता था I चाहे सोच जैसी भी हो पर थी तो वह एक छोटी सी बच्ची I काफ़ी ज़िद करने के बाद उसे विग दिलाया गया जो वह स्कूल पेहेनकर जाया करती थी I मैंने पहली बार उसकी आंखों में आंसूं देखे I सहानुभूति वाले शब्द भी कम पड़ गए I पता नही चला कि मैं क्या बोलूं? इतना मालूम था कि वह अपने अन्तिम दिन गिन रही है I उसका कुछ किया नही जा सकता था I मैं उसके साथ हँसी -खुशी रह लेती थी पर सदा मन में दुःख रहता था I
आँखें दब सी गई थीं I दुर्बलता बढ़ गई, खाना गले से नही उतरता था,घर पर ही रहने लगी थी I एक दिन कमजोरी के कारण ' नैना' सदा के लिए पंचतत्त्व में विलीन हो गई I
मोबाइल में कॉल आया... मैंने कॉल काट दिया I मेरी आंखों से आंसूं का एक बूँद पन्ने पर गिरा और स्याही फ़ैल गई I आंसूं पोंछ कर मैंने डायरी बंद कर दी I मेरा मन जो पढ़ाई का बोझ उठाते-उठाते थक चुका था अब सशक्त हो गया क्यूंकि मुझे डाक्टरी की पढ़ाई पूरी करनी थी I किसी के लिए न सही पर " नैना" के लिए I बाहर चल रही तेज़ हवा अब धीमी हो चुकी थी और मेरा मन भी शांत हो गया था I मोबाइल लेकर मैं बालकनी की ओर गई I