नारी मूर्ती नहीं इंसान है
नारी मूर्ती नहीं इंसान है
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।।
सदियों से चली आ रही नारी की गाथा हमारे जीवन में बहुत प्रभावित करती है नारी का मनोबल व नारी की भावनाओं का उल्लेख देवी देवताओं से लेकर राजा- महाराजाओं तक किया गया है।
परंतु फिर भी आज नारी के जीवन को समाज ज्यादा महत्व नहीं देता है जब पुरुष व स्त्री दोनों को साथ रखा जाता है तो अधिक सम्मान और आदर सदैव पुरुष को दिया जाता है।
आज समाज शिक्षित और स्वतंत्र है परंतु फिर भी नारी के स्थान को तुच्छ माना जाता है क्यों??
देवी की पूजा क्यों करते हो :- जैसा कि आप सभी जानते हैं कि नवरात्र के पावन अवसर पर हम 9 दिन नौ देवियों का पूजन , कन्या पूजन इत्यादि करते आ रहे हैं सदियों से चली आ रही ये प्रथा आगे भी चलती रहेगी
परन्तु ये आडंबर क्यों ? यदि हम घर की स्त्री या अन्य स्त्री को सम्मान नहीं दे सकते तो,
आज भी नारी का अपमान होता है नारी असुरक्षित महसूस करती हैं। उदाहरण के तौर पर कन्या भ्रूण हत्या, लैंगिक भेदभाव ,घरेलू हिंसा, बाल यौन शोषण ,बलात्कार जैसे न जाने कितने तमाम हिंसा का शिकार हो रही है ।
आश्चर्यजनक बात तो यह है कि फिर भी देवी की आराधना, कन्या पूजन जैसे सैकड़ों आडंबरों का स्वांग रचा जाता है।
लोगों की दृष्टि में केवल वही नारी महान है जो देवी रूप में पूजनीय है या किसी के पीछे सती हो गई हो इत्यादि।
क्यों पूजते हो कन्या जब ,मारती हो बेटियां तुम कन्या पूजा और बेटी मारो यह पाप करो ना जालिम हत्यारों
नारी मूर्ति नहीं इंसान है :- कह देते हैं कुछ लोग आसानी से की नारी करती है क्या है? परन्तु नहीं पता होता
उनको की नारी वह पावन रूप है जिसकी तुलना कोई नहीं कर सकता । एक कन्या से लेकर मां, पत्नी, बहन सबके कर्तव्य का पालन करती है। एक मां के रूप में 24 घंटे काम करती है थकान महसूस तो होती है पर अपनी जिम्मेदारियां निभाते निभाते मैं इतनी मग्न हो जाती है कि अपनी कोई पीड़ा उसे स्मरण ही नहीं रहती।
फिर भी लोग सोचते हैं कि इसने किया ही क्या है, अगर इसने कुछ किया होता तो यह भी तो हमारी तरह थकती यह तो मूर्ति की बनी हुई है इसे कभी कुछ नहीं होता क्यंकि ये हमारे जितनी मेहनत कर ही नहीं सकती, ओर भी न जाने कैसे-कैसे व्यंग्य कसे जाते है ,
मूर्ति नहीं है नारी एक इंसान है पत्थर दिल नहीं है बल्कि घर और बाहर की दुनिया संभालते संभालते इतनी मजबूत हो गई है कि अपने दुख दर्द नजर ही नहीं आते
इसका अर्थ यह नहीं कि उसे अपनी पीड़ा का आभास नहीं परंतु वह लोगों के सामने अपनी पीड़ा का अहसास करवाती ही नहीं ।
हो गई मगन वो इस कदर ना दुख का आभास ना सुख का आनंद और तुम समझ बैठे वह एक मूरत है
हिंसा का हो रही प्रतिदिन शिकार :- आए दिन अखबारों में समाचारों में कहीं ना कहीं नारी के अपमान भी शोषण की खबर सुनने को मिल ही जाती है
तो कहीं ऐसे व्यंग्य- नारी तो नारी ही होती है नारी कभी पुरुष का स्थान नहीं ले सकती ऐसे विचारों से ही भय ओर निरादर का भाव उत्पन्न होता है।
तो कहीं लड़की हो जरा संभल कर रहना , पुरुषों से ज्यादा बातचीत मत रखना, सीधे रास्ते आना सीधे रास्ते जाना,
संध्या काल से पहले घर पहुंच जाना
जैसे अनगिनत सवाल नारी के मन को अंदर तक झकझोर के रख देते हैं।
दिल्ली, मुंबई या हो अपना बीकानेर किसी भी क्षेत्र अथवा राज्य में बेटियां सुरक्षित नहीं,
हर शहर हर कस्बे में बेटियां हिंसा का शिकार होती जा रही है।
नारी का हो सम्मान तभी होगा भविष्य में तुम्हारा नाम , नारी के बिन परिवार अधूरा नारी से ही होता समाज पूरा
