नाद भ्रम
नाद भ्रम


विषय :- अनाहद नाद
नाद क्या होता है :- किसी भी प्रकार की ध्वनि को नाद कहते है या कोई भी आवाज़ नाद है नाद दो प्रकार के होते है
1 :- आहद नाद
2 :- अनाहद नाद
आहद शब्द को आहत से बना माना गया है आहत का अर्थ यानि चोट कोई भी ध्वनि केवल दो वस्तुओ के टकराने से ( चोट ) उत्तपन होती है बिना टकराए ध्वनि पैदा ही नही हो सकती क्योंकि चिजो के टकराने से हवा के अणुओ मे कंपन होता है वो कंपन वायु मे गति करता हुआ हमारे कानो मे कंपन पैदा करता है जिस कंपन के आभास से हमे ध्वनि की परतीति होती है इस ध्वनि को आहद नाद कहा जाता है ।
अनाहद नाद को किसी चोट ( टकराव ) से पैदा नही किया जाता अनाहद नाद सर्वभौमिक है परंतु इसे कानो से नही सुना जा सकता इसे सुनने के लिए गहरे ध्यान मे होना होता है अनाहद नाद कोई भ्रम नही है।
वैज्ञानिको का कहना है की आकाशगंगा मे एक ध्वनि गूँजती है जिसे हिन्दू ग्रंथो मे ॐ का नाम दिया गया है।
अनाहद नाद सतत शून्य की आवाज़ है या कह सकते है की शून्य के बाद / शून्य को पार करने पर जो आवाज़ सुनाई देती है उसे अनाहद नाद कहते है ये आवाज हमेशा विद्यमान है।
इसे ही हिन्दुओ मे ॐ , सिखों मे ओंकार , मिस्रयो मे , यूनानियों मे , रोमन मे , ईसाइयो मे ,मुस्लिमो मे ओर यहूदियो मे आमीन कहा गया है , जैनियों मे अरिहंत , तिब्बततियों मे भी ॐ कहा गया है ओर पवित्र अक्षर माना गया है संत कबीर दास जी कहते हैं
अनहद बाजै , निर्झर झरे उपजे ब्रह्म ज्ञान अर्थात ब्रह्म की प्रतीति होने से सब ओर अनाहद ध्वनि सुनाई पड़ती है वो लोग जिन्होने ब्रह्म पाया है या ब्रह्म मे समा गए वो मस्ती मे डोलते है अनाहद का श्रवण करते रहते है
हम इसे गहरे ध्यान की अवस्था या जिसे तुरीय अवस्था कहा जाता है उसमे हम अनाहद नाद को स्पष्ट रूप से सुन सकते है इसी को महर्षि पतंजलि ने नाद योग भी कहा है जो भिन्न भिन्न आवाजों मे प्राणियों को सुनाई देता है जैसे की शंख , घंटा , मृदल , झींगुर , बांसुरी , जल की कल-कल , पायल की आवाज , चिड़ियो की चहचाहट या ॐ की ध्वनि के रूप मे हो सकती है ।