मज़दूर
मज़दूर


मजदूर गर्मियों के दिन थे और रामल अभी - अभी मज़दूरी करके अपने काम से लौटा था। रामल पसीने से तरबतर था और उसके कमरे में हवा का भी कोई प्रबंध नहीं था।रामल की पत्नी मंदिरी उसके लिए पानी ले आयी रामल ने पूछा "मुनवा सो गवा है का ? " मंदिरी "हाँ अभी ज़िद करके सोया है। सुबह तोरे से चॉकलेट मांगे रहा, लाये हो का ?"
मंदिरी और रामल अभी बात कर ही रहे थे कि उनका पाँच साल का बेटा महेश नींद से उठकर दौड़ कर आया और अपने पिता की गोद में चढ़ गया। "पापा हमारे लिए चॉकलेट लाये हो। हमने सुबह कहा था आपको " रामल ने जवाब दिया "अरे बिटवा अइसन हो सकत है का, कि तुम कोन्हो चीज़ मँगाओ और हम तुम्हारे लिए न लाएं "
रामल ने अपने कुर्ते कि जेब से एक चॉकलेट निकाल कर महेश को दे दी।
"पापा आप बहुत अच्छे हो "महेश ने कहा। और महेश चला गया। मंदिरी ने रामल से कहा "आप मुनवा की आदत बिगाड़ रहे हो।। ए ठीक नहीं है " रामल बोलै "अरी मंदिरी बच्चा ही तो है। हम मानते हैं कि हम मज़दूर हैं पर हैं तो उसके पिता ही। उसकी छोटी-छोटी इच्छा भी पूरी न कर सकें तो हमारा पिता होने का क्या अर्थ रह जाएगा।
" रामल का जवाब सुनकर मंदिरी कुछ ना कह सकी क्योंकि उसे समझ आ गया था कि पिता अमीर हो या गरीब, पिता तो पिता होता है जो अपने बच्चों की सभी इच्छाएं पूरी करना चाहता है। ऐसा ही रामल है, वो एक मज़दूर है लेकिन एक पिता है।