STORYMIRROR

Sudhir Srivastava

Inspirational

4  

Sudhir Srivastava

Inspirational

मुस्कान

मुस्कान

2 mins
8

संस्मरण - मुस्कान 
************
        04 जनवरी '2025 रात्रि 8 बजे एक मेरी एक आनलाइन गोष्ठी चल रही थी, जिसके मध्य ही एक फोन आया, जिसे मैंने नज़र अंदाज़ कर दिया। पुनः लगभग 9.15 बजे मुँहबोली बहन का फोन आया कि हम, दीदी, अपनी सहेली और बच्चों के साथ अयोध्या धाम से लौट रहे हैं, आप लोगों से मिलने घर आ रहे हैं। रास्ता बताइए।
      मेरे लिए यह किसी आश्चर्य से कम नहीं था, साथ ही विश्वास भी नहीं हो रहा था, क्योंकि भयंकर ठंड के साथ उस समय वो जहाँ थी, वहाँ से घर तक पहुँचने में लगभग एक घंटे लगने थे। फिर 80 किमी. हमारे यहाँ से आगे भी जाना था।
       खैर.....! श्रीमती जी को अवगत कराया। तो उन्होंने कहा - आने दीजिए, क्या दिक्कत है?
        मैंने कहा - नहीं कोई दिक्कत नहीं। पर मुझे नहीं लगता कि इतनी ठंड में वो आयेगी। फिर पहली बार आ रही है।
         श्रीमती जी ने आश्वस्त किया - परेशान मत होइए। सब हो जायेगा।
       इंतजार करते करते जब समय सीमा पार होने लगी तब मैंने उसे फोन किया तो उसने बताया कि वो आगे निकल गई थी, फिर लौट रही है, बस पहुँचने वाली है। और अंततः लगभग 10.30 बजे घर पहुँच ही गई। तब थोड़ी निश्चिंतता हुई। क्योंकि उसका आगमन पहली बार हुआ था।
       घर पहुंचते ही दीदी ने कहा - कि अयोध्या से चलते समय ही मैंने कह दिया था कि मुझे भैया-भाभी से मिलकर ही जाना है, चाहे जितनी भी देर हो। यह सुनकर मन भावुक हो गया। 
       आवभगत की औपचारिकता, बातचीत और हालचाल के मध्य ऐसा लगा ही नहीं कि पहली बार ये लोग आये हैं। सब इस तरह से घुल-मिल गये, अपनत्व और अधिकार का जो परिदृश्य दिखा। उसे शब्दों के दायरे में बाँध पाना कठिन है। पूरी तरह पारिवारिक मिलन जैसा था। श्रीमती जी ने भोजन की व्यवस्था कर अधिकारपूर्वक खाना खिलाकर ही उन्हें विदा किया।
       इस संक्षिप्त आकस्मिक मुलाकात ने जो आत्मीय बोध कराया, उसकी मधुर स्मृतियाँ बरबस ही मीठी सी मुस्कान दे ही जाती हैं।

सुधीर श्रीवास्तव (यमराज मित्र)


साहित्याला गुण द्या
लॉग इन

Similar hindi story from Inspirational