Sudhir Srivastava

Drama Inspirational

3  

Sudhir Srivastava

Drama Inspirational

मुक्त आकाश

मुक्त आकाश

7 mins
235



घनघोर बारिश के बीच कच्चे जंगली रास्ते पर भीगता काँपता हुआ सचिन घर की ओर बढ़ रहा था। उसे माँ की चिंता हो रही थी, जो इस विकराल मौसम में भी दरवाजे पर टकटकी लगाये उसका इंतजार कर रही होगी। पिता की मृत्यु के बाद मां बेटा ही एक दूसरे का सहारा थे।

किसी तरह भागदौड़ कर जंगल के पार बाजार में काम तलाश कर पाया था। आठ किमी. दूर ऊपर से जंगली रास्ता। परंतु पेट की आग इस खतरे के लिए विवश करती रहती रहती है। आज के हालात में वह मजबूर था।

इसी उधेड़बुन में तेजी से बढ़ रहे कदमों के बीच एक डरी सहमी नवयौवना को इस मौसम और खतरनाक जंगल में देखकर उसके कदम ठिठक से गये। सरल संकोची स्वभाव का सचिन हिचकिया, परंतु इस हालत में वह उसे छोड़ने की गलती नहीं कर सकता था।

हिम्मत संजोकर वह उस बदहवास सी लड़की के पास पहुंचा , उससे हालत के बारे में जानना चाहा, परंतु कोई उत्तर न मिलने से वह परेशान सा हो उठा।

थक हार कर उसने उसके कंधे पर हाथ रखकर झकझोरा। परंतु प्रत्युत्तर में निराशा ही हाथ लगी।

उधर अंधेरा बढ़ता जा रहा था, जिससे उसकी चिंता और बढ़ रही थी।

फिर एकाएक उसनें लड़की को कंधे पर उठाया और सावधानी से घर की ओर बढ़ चला।

भगवान का शुक्र ही था कि थोड़ा देर से ही सही वह सही सलामत घर पहुंच गया।

घर पहुंचते ही माँ ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी।

सचिन माँ से बोला-तू परेशान मत हो, पहले तू इस लड़की के कपड़े बदल, तब तक मैं जल्दी से कपड़े बदल कर काढ़ा बना लेता हूँ। शायद तब तक ये भी कुछ बोलने बताने की स्थिति में आ जाय।

उसकी माँ ने किसी तरह उसको अपने कपड़े पहनाये फिर खुद ही मिट्टी के पात्र में आग जलाकर इस उम्मीद में ले आई कि शायद आग की गर्मी से उसकी चेतना आ जाये।

तब तक संजय तीन गिलास में काढ़ा बना कर ले आया।


संजय की मां उस लड़की को बड़े लाड़ से काढ़ा पिलाने लगी। तब तक संजय ने मां को पूरी बात बता डाला और चिंतित भाव से पूछा-अब क्या होगा माँ?

चिंतित तो माँ भी थी, परंतु बेटे का हौसला बढ़ाते हुए दुलराया।

देख बेटा हम गरीब जरूर हैं। परंतु हमारा जमीर जिंदा है।

सुबह प्रधान जी को बताते हैं, उनसे मदद माँगेंगे, फिर हम भी इसके परिवार का पता लगाते रहेंगे।

दुनिया समाज के हिचकोलों के बीच झूलता संजय बोला-फिर भी माँ अगर कुछ पता न चला तब?

देख बेटा अगर तुझे एतराज नहीं होगा तो मैं सबके सामने इसे अपनी अपनी बेटी बना कर अपने आँचल की छाँव दूंगी।

तेरे फैसले पर मैंने कभी एतराज किया क्या? काश ऐसा हो सकता, तो बीस सालों से मेरी कलाई राखी के धागों से खिल जाती।

अच्छा बेटा अब सो जा। जैसी प्रभु की इच्छा। सुबह देखा जायेगा। मैं इसी के पास हूँ, पता नहीं कब होश में आ जाय बेचारी।

ठीक है माँ, इसे होश आये तो मुझे जगा लेना। अंजान जगह को देखकर परेशान हो सकती है।

इतना कहकर संजय सोने चला गया, परंतु अंजान जवान लड़की को लेकर उठ रहे सवालों ने उसकी माँ की आँखों की नींद उड़ा दी, वो कल के बारे में अधिक परेशान थी, ऊपर से लड़की का अब तक होश में न आना उसे और बेचैन कर रहा था।

रात में उस लड़की को होश आ गया, संजय की माँ उसके पास ही थी।

उसने सबसे पहले यह कौन सी जगह है , वह यहां कैसे आयी? आप कौन हैं? मेरे कपड़े कहाँ हैं? ये कपड़े मुझे कौन पहनाया? जैसे प्रश्नों की झड़ी लगा दी।

संजय की मां ने सब कुछ उसे बता दिया। जब उसे तसल्ली हो गई तब उसने अपना नाम रमा बताया। फिर सब कुछ अपने बारे में सब कुछ कह डाला और रो पड़ी। संजय की माँ ने उसे हिम्मत बंधाई , आँसू पोंछे और अपने आँचल में समेट लिया।

संजय की आँखों में नींद का नामोनिशान नहीं था। वह भी बाहर लेटे हुए रमा के बारे में ही सोच रहा था। तभी उसे महसूस हुआ कि माँ किसी से बात कर रही है तो वह उठकर अंदर आया।


माँ उसे देखकर बोली-इसका नाम रमा है, तू इसे नल पर ले जा। ये हाथ मुँह धो ले। फिर कुछ खा ले और तू भी कुछ खा ले। फिर बात करेंगे, बेचारी भूखी होगी। पता नहीं कब से भूखी होगी ।

रमा बोली-नहीं माँ, मुझे भूख नहीं है।

संजय की माँ ने रमा से कहा-देख बेटी! तेरी चिंता में मेरे बेटे ने भी कुछ नहीं खाया है। मैं किसी तरह एक रोटी खा पाई हूँ। दवा जो खानी थी।

वैसे भी घर में कोई भूखा रहे , ये ठीक नहीं लगता।

फिर माँ की आज्ञानुसार संजय ने रमा को नल दिखा दिया।

रमा ने अपने हाथ पैर मुँह को धोया और कमरे में आ गई। संजय ने खाना गर्म कर लिया था। दोनों ने खाना खाया।

अच्छा बेटा, अब तू जाकर सो जा, हम दोनों भी सो जाते हैं।

संजय उठकर जाने को हुआ तभी रमा बोल पड़ी -भैया, थोड़ा बैठो! और बताओ कि आपने मुझे मरने भी नहीं दिया। पर अब मेरा क्या होगा?

संजय बोला-देखो, तुम अपने चाचा का डर दिल दिमाग से हटा दो। बस ये बताओ अब तुम क्या चाहती हो?

रमा ने कहा- मैं क्या कहूँ? मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है।

संजय ने माहौल हल्का करते हुए कहा-तो मेरी बात सुनो। अब से यह घर तेरा है। मेरी माँ अब से तेरी भी माँ है। तू मेरी बहन है। अब तुझे डरने या चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।

जी! रमा सिर्फ इतना ही बोल पाई और रो पड़ी।

संजय और उसकी माँ ने उसे रोने दिया।

थोड़ी देर तक रमा रोती रही, फिर शांत हुई, संजय ने उसके आँसू पोंछे और उसके सिर पर हाथ फेरा तो वह संजय से लिपटकर फिर सिसक उठी।

संजय उसे अपने से अलग करते हुए बोला-अब अगर तू रोई तो मैं फिर तुझे जंगल में छोड़ दूंगा।

रमा ने जल्दी से अपने आँसू पोंछे। उसे डर सा लगा कि संजय सचमुच उसे फिर जंगल में न छोड़ दे।

बातों के क्रम में कब सुबह हो गई पता ही न चला । दैनिक क्रिया और चाय पीकर संजय प्रधान काका और कुछ और लोगों को लेकर आ गया।

सभी ने रमा की बात ध्यान से सुनी। फिर प्रधान काका ने रमा से कहा-देख बेटा! अगर तू यहाँ रहना चाहती है तो ठीक है, अन्यथा हम तुझे तेरे घर भिजवायेंगे।


रमा रूआंसी सी बोल पड़ी -किस घर की बात कर रहे हैं आप, जहाँ मेरे साथ जानवरों सा सलूक होता है, माँ से पूछिये मेरे शरीर से निशान मेरे साथ हुए हैवानियत की सारी दास्तान बता रहे हैं। उस घर जाने से अच्छा है कि आप लोग मेरा गला ही घोंट दो। काश मेरे माँ बाप जिंदा होते। तो शायद..।

रमा की पीड़ा भरी दास्तान सुन प्रधान काका की आंखें नम हो गई। उन्होंने साथ के लोगों से कुछ बात की, फिर बोले-देखो रमा बिटिया, अभी तक जो हुआ उसे भूल जाओ। आज से तुम हमारी जिम्मेदारी हो, बेटी हो। इस गाँव का हर घर तुम्हारा अपना है, हम सब तुम्हारे अपने हैं। तुम्हारे माँ बाप की कमी तो पूरी नहीं हो सकती, लेकिन भरोसा रखो कि उनकी कमी हम तुम्हें महसूस भी नहीं होने देंगे।

तुम्हारे हिस्से के खेत की खेती हम सब मिलकर करेंगे, उससे जो पैसा मिलेगा उसे तुम्हारे नाम जमा करायेंगे। वो सारा पैसा तेरी शादी में काम आयेगा, जो तेरे माँ बाप का तेरे लिए आशीर्वाद होगा।

अपने चाचा का डर निकाल दे, अब भूलकर भी वो तेरे पास आने की हिम्मत नहीं करेंगे।

बोल बेटा-और कुछ?

नहीं काका, जब इतने सारे लोगों की छाँव है फिर मैं क्यों डरूँ? रमा बोली

और हाँ, अगर तू संजय के घर न रहना चाहे तो बोल दे। प्रधान काका ने रमा से पूछा

रमा झट से बोल पड़ी-नहीं काका! मैं माँ और भाई के साथ ही खुश रहूँगी, बस आप लोग अपना आशीर्वाद बनाए रखिएगा । इतना कहते हुए रमा ने प्रधान काका और अन्य लोगों के पैर छूए। सभी ने उसे आशीर्वाद दिया।

अब रमा खुश थी, जैसे उसे मुक्त आकाश मिल गया हो।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama