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Harish Pandey

Drama Romance

4  

Harish Pandey

Drama Romance

मुझे लगा तुम मॉडर्न हो

मुझे लगा तुम मॉडर्न हो

8 mins
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"इश्क़ इतना क़रीब से गुज़रा,

हम समझे कि हो गया!" रवि ने गुनगुनाते हुए फ़ोन पे कहा।

"वाह वाह! बहुत खूब।" नेहा ने फ़ोन पे ही ताऱीफ करते हुए कहा।

"मतलब कभी किसी से हुआ ही नहीं इश्क़, हाँ।" नेहा ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा।

"शायद मुझे इश्क़ किसी से नहीं हुआ, पर यक़ीन सबको दिलाता रहा हूँ मैं।" रवि ने उत्तर में एक और सटीक शेर सुना दिया।

"अच्छा शायर साहब, शायरी के अलावा और क्या क्या कर लेते हैं आप?" नेहा ने रवि के बारे में खुलके जानने के लिए पूछा।

रवि और नेहा लखनऊ के ही रहने वाले थे। दो दिन पहले ही उनकी सगाई हुई थी पर वो ज़्यादा एक दूसरे के बारे में जानते नहीं थे। फ़ोन पे उनकी ये दूसरी बार ही बात हो रही थी। रात का वक़्त था और अगले दिन रविवार। आज दोनों के पास मौका भी था और वक़्त भी। रवि दिल्ली में इंजीनियर के पद पर नौकरी कर रहा था और नेहा लखनऊ में ही किसी प्राइवेट आई टी कंपनी में एच.आर थी।

दो साल पहले ही रवि ने दिल्ली में फ्लैट ख़रीदा था जिसमे वो आजकल अकेला ही रहता था। चूंकि उसके मम्मी पापा अक्सर उससे मिलने के लिए दिल्ली आया जाया करते थे तो उन्होंने ही उसे वो फ्लैट ख़रीदने का प्रस्ताव भी दिया और अधिकतम पैसा भी। रवि अपने माता पिता की एक मात्र संतान थी, और काफ़ी समझदार और आज्ञाकारी लड़का था।

दूसरी ओर नेहा भी काफ़ी अच्छी लड़की थी। पढ़ाई से लेकर नौकरी तक उसने हमेशा अपने माँ बाप का नाम रोशन ही किया था। और अब उन्हीं की इच्छा से शादी भी कर रही थी। शादी के लिए कोई परिचय वाला ही रिश्ता लाया था और लड़का लड़की ने भी एक दूसरे को पसंद कर लिया था।

नेहा और रवि ने शादी के लिए हां तो कर दी थी पर अब एक दूसरे को जानने के लिए जिज्ञासु भी थे।

रवि ने नेहा की बात का जवाब देते हुए कहा, " अपनी ज़रूरत का लगभग सब कुछ ही कर लेता हूँ।"

"जैसे कि?" नेहा ने ज़ोर देते हुए कहा।

"जैसे कि मैं यहाँ अकेले रहता हूँ तो घर का सारा काम मैं खुद ही करता हूँ। साफ़ सफ़ाई, खाना बनाना वगैरह वगैरह।" रवि ने स्पष्ट किया।

"अच्छा, खाना बना लेते हो तुम। सब कुछ?" नेहा उत्सुक होके बोली।

"हाँ मतलब अपने खाने लायक तो ठीक बना ही लेता हूँ।" रवि नेहा की उत्सुकता को भांपते हुए थोड़ा और स्पष्ट हो गया।

"कमाल है, आजकल के मॉडर्न लड़के घरेलू काम भी जानते हैं।" नेहा व्यंग करते हुए बोली।

"मॉडर्न कहाँ, अब सीख गया हूँ अकेले रहते रहते तो बस बना लेता हूँ।" रवि नेहा के दिये 'मॉडर्न' तमगे और तारीफ दोनों लेने में आनाकानी कर रहा था।

"अच्छा मॉडर्न नहीं हो तुम, पर मैं तो हूँ , बहुत ज़्यादा।" नेहा बड़ी चतुराई से बातों का मुद्दा अपनी ओर लाते हुये बोली।

"अच्छा, क्या क्या करती हो तुम?" रवि ने हर बार की तरह बातों को सीधा व स्पष्ट रखा।

"दरअसल, मेरे मम्मी पापा बहुत खुले विचारों के है। उन्होंने कभी मुझे रोका नहीं है मेरे फैसलों पे बल्कि मुझे हर दफ़ा प्रोत्साहित ही किया है। इसीलिए मुझे लगता है कि मैं आजतक कामयाब होती आयी हूँ ।" नेहा ने भी अपनी कामयाबी का श्रेय अपने को न देकर अपने माँ बाप को देते हुए कहा।

"बहुत अच्छी बात है। अच्छा, क्या तुम शादी के बाद यहां ट्रांसफर ले सकती हो?" रवि ने नेहा की नौकरी के विषय मे पूछा।

"हाँ, बिल्कुल। हमारी कंपनी दिल्ली में भी है। वैसे भी शादी के बाद तुम्हारे हाथों का खाना खाना है तो दिल्ली तो ट्रांसफर लेना ही पड़ेगा न।" नेहा ने व्यंग्य करते हुए कहा।

"अच्छा, मुझे लगा तुम बोलोगी कि शादी के बाद मुझे खाना नहीं बनाने दोगी।" रवि ने भी व्यंग्य में हिस्सा लेते हुए प्रत्युत्तर किया।

"बिल्कुल नहीं, आखिर मैं एक मॉडर्न लड़की हूँ । मैं भी तो ऑफिस जाया करूँगी तो हमेशा मैं कैसे बना सकती हूँ खाना।" नेहा ने उत्तर दिया जिसमें व्यंग्य थोड़ा कम और गंभीरता ज्यादा थी।

"कोई नहीं, मिलके ही बना लिया करेंगे। मुझे तो वैसे भी अब आदत हो ही गयी है।" रवि स्थिति को संभालते हुए बोला।

"अच्छा, एक बात और। मैं तुम्हें पहले बता नहीं सका पर मुझे लिखने का शौक़ है।" रवि ने मामले को थोड़ा नर्म बनाते हुए बताया।

"हाँ, तुम्हारी शायरी सुनकर लगा मुझे।" नेहा बोली।

"हाँ शायरी के अलावा मैं और भी बहुत कुछ लिखता हूँ । मेरे पास अच्छे ख़ासे प्रस्ताव हैं प्रकाशन कंपनियों के।" रवि ने थोड़ा और गहराई से बताया।

"अरे वाह। ये तो बहुत बढ़िया बात है।" नेहा ख़ुश होते हुए बोली।

"पर मैं अब इसको पूरी गंभीरता के साथ करना चाहता हुँ। मतलब मैं अपनी नौकरी छोड़के लेखन में आना चाहता हूँ ।" रवि ने अपनी बात को गंभीरता से रखा।

"पर तुम अभी भी तो लिख रहे हो न। तो ऐसे ही करते रहो। तुम्हारी ये नौकरी भी तो बढ़िया है।" नेहा ने अपना मत जारी किया।

"हाँ, पर अभी मुझे वक़्त निकालना पड़ता है लिखने के लिए। मैं इस काम को पूरी तसल्ली से करना चाहता हूं। और मुझे इसके लिए थोड़े बहुत पैसे भी मिल ही जायेंगे, अभी जितने कमाता हुँ उससे कम पर फिर तुम भी कमा ही रही हो तो घर तो चला लेंगें हम।" रवि की स्पष्टवादिता उसके शब्दों में साफ झलक रही थी।

"ये क्या बात कर रहे हो तुम, मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा। इतनी अच्छी कमाऊ नौकरी को छोड़ के तुम फिर से लगभग न के बराबर आना चाहते हो जिसका कोई मतलब नहीं है।" नेहा को रवि की बात रास नहीं आ रही थी।

"पर लेखन मेरा जुनून है। मैं बहुत अच्छा कर सकता हूँ उसमे। और वैसे भी कल को जब बच्चे होंगे तो उनकी देखभाल के लिए भी तो कोई हम दोनों में से चाहिए होगा न घर मे। मैं घर मे रहके ही ये सब कर सकता हूँ।" रवि ने अपना पक्ष रखा।

"बच्चे जब होंगे, तब होंगे। वो तब देखा जाएगा और वैसे भी बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए और पैसा भी चाहिए होगा, उसका क्या?" नेहा ने 'अच्छी परवरिश' का हवाला दिया।

"और वो भी छोड़ो, तुमने ये बात अपने मम्मी पापा को बताई?" नेहा ने तुरंत एक और प्रश्न किया।

"हाँ, वो जानते हैं। उनको कोई आपत्ति नहीं है इसमें। उनका कहना है कि तुम और मैं ये बेहतर निर्णय ले सकते हैं अगर सामंजस्य बिठा लें तो।" रवि ने अपने घरवालों का पक्ष भी स्पष्ट किया।

"तुमने ये बात तब क्यों नहीं बताई जब तुम मुझे देखने आए थे?" नेहा की नामंजूरी ने एक और प्रश्न किया।

"तब हम शादी करेंगे ये ही कहाँ पक्का था और मैंने अभी कोई नौकरी छोड़ी नहीं है।" रवि ने नम्रता के साथ कहा।

"पर छोड़ने की बात तो कर रहे हो न?" नेहा ने बहस को बढ़ाते हुए कहा।

"अच्छा, अगर मैं पहले बता देता तो क्या, तुम शादी के लिए हाँ नही बोलती?" रवि ने भी जायज़ सवाल किया।

"पता नहीं, पर मैं सोच समझ के ही कोई कदम उठाती। पता नहीं पापा क्या सोचेंगे तुम्हारे इस फ़ैसले के बारे में?" नेहा ने अपने पापा का जिक्र करते हुए कहा।

"मुझे लगा तुमको इस बात से कोई ज़्यादा फर्क नहीं पड़ेगा ... मुझे लगा था तुम वाक़ई में मॉडर्न हो!" रवि ने गंभीरता से कहा।

उसकी बातों में कोई व्यंग्य तो नहीं था पर नेहा को वो तीर की तरह चुभा। इतना तीक्षण की उसका मष्तिष्क इस वार को सह नहीं पाया और छटपटाहट में उसने फ़ोन काट दिया।

रवि शुरू से ही शांत बर्ताव कर रहा था और आखिर तक वो शांत ही था। पर नेहा के इस अशिष्ट बर्ताव ने उसके दिमाग को दोबारा फ़ोन करने के लिए उकसाया। पर उसने ख़ुद को रोका। उसको इस बात का बुरा लग रहा था कि उसकी शादी नेहा से तय होने के लिए मुख्यतः उसका व्यवहार या उसकी अच्छाई नहीं थी बल्कि वो वेतन था जो वो अपनी नौकरी से कमा रहा था। कम से कम नेहा ने तो अपनी बातों से ये ही जाहिर किया। जो लड़की खुद को मॉडर्न शब्द की मुख्य प्रचारक बता रही थी उसके लिए मॉडर्न होने का मतलब सिर्फ बहुत पैसा कमाना या लड़की का नौकरी करना तक ही सीमित था। ये सोच के रवि ने खुद को फ़ोन करने से रोका।

"तेरी शर्तों पर ही अगर करना है तुझे कुबूल,

तो ये सहूलियत तो हमें सारा जहाँ देता है।"

रवि को इस वक़्त ये ही दो पंक्तियां याद आ रही थी।

उधर नेहा ने फ़ोन तो काट दिया था पर उसके ज़हन में सिर्फ ये ही बात घूम रही थी कि रवि कैसे उसके मॉडर्न होने को प्रश्न कर सकता है। ये प्रश्न तो आजतक किसी ने नही किया था तो फिर रवि कैसे सवाल उठा सकता है।

पर रवि ने कुछ भी गलत नही कहा था। न ही उसने नेहा को नौकरी छोड़ने को कहा। उसने बस ये ज़ाहिर किया की वो क्या करना चाहता है। और उसने सही मायने में ये भी बताया कि मॉडर्न होना सिर्फ लड़की को पढ़ाना लिखाना, नौकरी करने काबिल बनना या किसी और पे निर्भर न रहना नहीं है। मॉडर्न होने की परिभाषा सिर्फ लड़की को लड़के जैसा बनाना नहीं है। मॉडर्न होना जिसको जो करना अच्छा लगता है, जिसका जो जुनून है वो करने देना होता है चाहे वो लड़का हो या लड़की। रवि एक ऐसी चीज़ करने के लिए कह रहा था जो हमारे समाज मे अधिकतर लड़कियाँ करती हैं। पत्नी के नौकरी पे जाने के बावजूद पति का घर पे रहके काम करना वो भी कुछ ऐसा जिसमे शायद शुरुवात में ज़्यादा पैसे कमाने के अवसर नहीं मिलते।

और कोई बाप आजकल के ज़माने में क्यों अपनी बेटी का रिश्ता सिर्फ उस लड़के से करे जो उससे ज्यादा कमाता है। मॉडर्न तो वो होता है जो काबिलियत देखता है ना कि कमाई।

जैसे ही नेहा को ये बात समझ मे आयी तो उसे ये भी समझ मे आया कि उसने कितनी बुरी तरह से रवि का दिल दुखा दिया है। वो आत्मग्लानि में जलने लगी। वो एक पल और सोच के वक़्त ज़ाया नहीं कर सकती थी। उसने आंखों में आँसू भरके तुरंत फ़ोन मिलाया और रवि के हेलो बोलते ही पागलों की तरह रो पड़ी।

रवि उसे चुप कराते हुए बोला कि अगर तुम्हें शादी नहीं करनी तो मत करना पर रोओ मत। जवाब में नेहा ने कहा ," अब तो मुझे हर हाल में तुम्ही से शादी करनी है।"



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