मुझे जीना हैं !!

मुझे जीना हैं !!

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-‘इन्हें कुछ भी नहीं हुआ है . बिलकुल तंदुरस्त है . ठीकठाक है . ‘ डॉक्टर ने सब रिपोर्ट देखने के बाद कहाँ , ‘ हर तरह की जांच करवाना ठीक रहता है. इससे बिमारी के बारे में सहीसही पता पड़ता है और निश्चिंतता हो जाती है . ‘                               

–मधुसूदन अस्पताल में पलंग पर लेटे थे . डॉक्टर की बात सुन कर उन्हें बहुत गुस्सा आ रहा था . ’ मना करते करते भी डॉक्टर ने सारी जाँच करवाकर ही छोड़ा . कितना खर्च करवाया ? आजकल के अस्पताल लूटमार के नए अड्डे हो गए है . ‘ मधुसूदन बड़बड़ा रहे थे , ‘ कब से कह रहा था मुझे कुछ भी नहीं हुआ है . पर कोई सुनने को ही तैयार नहीं था . मै भी क्या करता ? ‘                                                    

– तीन दिन पहले शाम के समय मधुसूदन के सीने में थोडा दर्द हुआ और उनकी पत्नी ने सबको खबर कर दी . बेटा , बेटी , दामाद . बहू सब तुरंत आगये . मधुसूदन की इच्छा के विरुद्ध जबरन उन्हें इस अस्पताल में भरती करा दिया . सब तरह की जांच भी करवा ली . बच्चों ने बिचारों ने खूब भागादौड़ी की . डॉक्टर को मसूसुदन ने कई बार बताया कि उन्हें कुछ भी नहीं हुआ है और उन्हें किसी भी जांच या इलाज की जरुरत नहीं है . परन्तु डॉक्टर ने मधुसूदन की एक भी नहीं सुनी और हर तरह की जांच व् एक्सरे करवाकर ही छोड़ा . बहुत सारा रूपया तो जाँच में ही खर्च हो गया . उपर से अस्पताल और कमरे का खर्च अलग .                      

–‘डॉक्टर साहब मै तो आपसे तीन दिन से चिल्ला चिल्ला कर कह रहा हूँ कि मुझे कुछ भी नहीं हुआ है . मै बिलकुल ठीक हूँ . मुझे अभी इतनी जल्दी मरना भी नहीं है और ना मै अभी इतनी जल्दी जाने वाला हूँ . आपने बेकार हमारा इतना रूपया जांच में खर्च करवा दिया . ‘ मधुसूदन ने डॉक्टर को सूना ही दिया .                                        

 – ‘ ये क्या कह रहे है पापाजी आप ? एक तरह से सारे टेस्ट हो गए . चेकअप हो गया . ठीक ही तो हुआ . ‘ दामाद बोला .                                         

– ‘ पर कितना खर्च ? ‘                                           

– ‘ पापा आप ऐसा क्यों कह रहे है ? ‘ बेटी बोली , ‘ आप से ज्यादा पैसा थोड़े ही है . खर्चे की आप चिंता मत कीजिए . ‘ फिर उसने डॉक्टर से पूछा , ‘ पापा को छुट्टी कब मिलेगी ? ‘         

 – ‘ कल सुबह . ‘                                                

– इतना कहकर डॉक्टर साहब चले गए . धीरे-धीरे सब बच्चे भी सुबह आने का कहकर घर रवाना हो गए . अब कमरे में मधुसूदन व उनकी पत्नी मालती ही बची थी .      – ‘ मैं कह रहा था ना कि थोड़ा अपचन है जिस कारण थोड़ी सी एसिडिटी हुई और इसी के कारण शायद सीने में थोड़ी सी बेचैनी और थोड़ा सा दर्द था . पर तुम सुनने को ही तैयार नहीं थी . मेरी ही गलती हुई जो तुम्हें बताया . ‘ सारा गुस्सा अब पत्नी पर निकला .             

– ‘ और नहीं तो क्या ? कुछ कम ज्यादा हो जाता तो इतनी रात में मैं कहाँ जाती ? क्या करती ? किसे बुलाती ? ‘ मालती को भी अब गुस्सा आ गया .                     –‘अरे भागवान , मुझे कुछ भी नहीं होगा . अभी मुझे बहुत जीना है . तुम्हें भेज कर ही जाऊँगा मैं . समझी ?’                                                    

–‘भगवान तुम्हारा भला करे . देख लेना पाहिले मैं ही जाऊँगा . ‘                       

–‘सच बताऊँ मेरी इच्छा भी यहीं है . मुझे तुम्हारी चिंता भी नहीं रहेगी और मैं चैन से मर  पाऊंगा . ‘                                                    

–मधुसूदन का गुस्सा भी अब शांत हो गया था .                             

–‘हमारे बच्चे , दामाद , बहू हमारी कितनी चिंता करते है . ऐसा लगता है कि हमारे बुरे दिन तो कब के खत्म हो चुके है . जीने की लालसा अब बढ गयी है . हमारे अपने बच्चो को पालने पोसने में , उनकों बेहतर शिक्षा मिले इसके लिए हमने कितने कष्ट सहन किये . आज अब इसका संतोष जरुर है , पर अपने बच्चों को बड़ा होते देखने का आनंद हम संघर्षमय जीवन में अपनी व्यस्तताओं के कारण नहीं भोग पाए थे . पर कम से कम नाती–पोतों को बड़ा होते हुए देखने का आनंद अब हमें जरुर भोगना है . वो आनंद वो सुख अब हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रहा है . फिर हम मरने की बात क्यों करे ? जिन्दगी ने कई घाव दिए और जवानी में आए अनेक संकटों ने हमें समय से पहले ही बूढा कर दिया . पर अब ऐसा लगता है कि कोई आए और हमारी जिन्दगी को दस बीस बरस पीछे कर दें .                          

–मधुसूदन को इतनी शांति से बोलता देख मालती भी भावुक हो गयी , ‘ सच कहते हो जी . पर अब कल सुबह घर जाना है ना ? ज्यादा सोच विचार मत करो . चुपचाप सो जाओ . ‘         

– मालती बगल के सोफे पर सो गयी . मधुसूदन को नींद नहीं आ रही थी . देर रात उनको नींद आयी और बहुत जल्द वे खर्राटे भरने लगे .                            

– मध्य रात्री को मधुसूदन को सपना आया . सपने में कोई उन्हें हाथ पकड़कर उठा रहा था . सपने में उन्हें जो आकृति दिखाई दी वह यमदूत जैसी लग रही थी . उन्होंने पूछा , ‘ कौन ? ‘ – ‘ मैं साक्षात् मृत्यु ! तुम्हें लेने आया हूँ.                                         

 – मधुसूदन घबरा गए . सपना देख रहे थे पर बदन कांपने लगा . ‘ क्या कह रहे हो ... ? बड़ी मुश्किल से उनके मुंह से शब्द निकले . बाद में हाथ जोड़कर वह आकृति के पैरों में गिर , गिडगिडाने लगे . ‘ मेरे ऊपर कृपा करों . मुझे अभी खूब जीना है . अभी तो कही जीवन की शुरवात हुई है . अपने बच्चों का हँसता खेलता संसार देखना है . नाती-पोतों के साथ खेलना है . पत्नी की भी बहुत साड़ी इच्छाए पूरी करनी है . और भी बहुत साड़ी इच्छाए है जिन्हें अब पूरा करने का समय आया है . अभी तरो जिन्दगी में जाकर कही कुछ फुर्सत मिली है . हमारे चारधाम रह गए है . सारे ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने है . भागवात और गीता का अध्ययन कर इनके गूढ़ रहस्य समझना है . रामचरितमानस का एक बार गहरे से अध्ययन करना है . बचपन से वायलिन सीखने की इच्छा थी अब सोच रहा हूँ , किसी अच्छे गुरु का शिष्य बन जाऊं ? पत्नी की भी बहुत सारी इच्छाएं पूरी करनी है . क्या क्या बाताऊं .... क्या क्या करना है ? आकृति के पाँव मधुसूदन अभी छोड़े नहीं थे . एक ही श्वास में सारा कुछ कह गए .अंत में बोले , मुझे अभी बहुत जीना है ..... खूब जीना है . ‘                                            

– ‘ खूब जीना है ? आकृति ने जोर जोर से हंसने लगी , ‘ कल तक तो तुम बात बात पर मरने की कुई कोशिश करते थे . कई बार जान देने का असफल प्रयास कर चुके हो . याद करो , दस साल की उम्र में पहली बार , मुझे मरना है .. मुझे मरना है कहते हुए तीसरी मंजिल की बालकनी से कूद कर खुद को ही खत्म करने चले थे . याद है ? ‘ आकृति ने जोरसे कहाँ .     - मधुसूदन को बहुत आश्चर्य हुआ . आकृति मधुसूदन को सच्चाई बता रही थी .पर यें सब बचपन की बातें . उनका महत्व अब आज क्या ? उस वक्त तो कुछ समझ ही नहीं थी . कुछ मनमाफिक नहीं हुआ तो तुरंत पारा सातवें आसमान पर . कुछ भी बोलना और कुछ भी करना . यहीं तो बचपन होता है ना ? अपनी जिद पूरी करने के लिए और अपनी बात मनवाने के लिए हर समय व्यग्रता और उग्रता . उस दिन की घटना मधुसूदन को याद आगयी . सौतेली माँ ने किसी बात पर खाना नहीं दिया तो अपनी सगी मृत माँ को पुकारते हुए दस वर्ष के बालक मधुसूदन ने आसमान सर पे उठा लिया . जब रोने का भी असर कुछ नहीं हुआ तो बालक मधुसुदन ने , ‘ माँ मै भी तुम्हारे पास आ रहा हूँ ..... मुझे नहीं जीना ... मैं मरना चाहता हूँ ‘ इतना कहकर बालकनी की रेलिंग से एक पैर बाहर लटका दिया .पर बालक मधुसूदन की तीसरी मंजिल से कूदने की हिम्मत नहीं हुई उस वक्त , और इसलिए बहुत देर तक उसी अवस्था में रोता रहा . आखिर मधुसूदन के बड़े भाई ने उसे दो चांटे जड़ दिए और हाथ पकड कर अन्दर की ओर खींचा . पर इतना सब होने पर भी उस रात दस वर्षीय बालक मधुसूदन हिचकियाँ लेते हुए भूखे पेट कब सो गया , इसका किसी को पता ही नहीं चला था – ‘ तुम्हें कैसे पता ? ‘ मधुसूदन ने आश्चर्य से आकृति से पूछा .                           

– ‘ मुझे सब पता है . पर यह सच है कि नहीं ? ‘ आकृति ने पूछा .                   

– ‘ सच है . पर उस दिन तो मुझे बड़े भैय्या ने बचा लिया . ‘                      

– ‘ बड़े भैय्या ने नहीं बचाया . बड़े भैय्या के रूप में मैंने तुम्हारे प्राण लेने से इन्कार कर दिया . मैं अगर प्राण ही नहीं लेता तो तुम्हारी मृत्यु कैसे होती ? ‘ आकृति बोली .  – ‘ फिर आज क्यों मेरे प्राणों के पीछे पड़े हो ? जब मुझे मरना था तब मरने नहीं दिया , और अब मुझे जीना है तो कह रहे हो सब कुछ ख़त्म हो गया . ‘                         – ‘ क्यों कि अब तुम्हारा समय पूरा हो गया है . और तुम्हें अब जीवित रखना संभव ही नहीं . ‘ आकृति ने कहा .                                                 

– अब मधुसूदन कुछ ज्यादा ही अस्वस्थ हो गए . बड़ी व्यथा से बोले , ‘ जिन्दगी में मैंने बहुत कष्ट सहन किए हैं . अनेक संकटों से भरी रही है मेरी जीवन यात्रा . गृहस्थी की गाडी यहाँ तक लाते-लाते अपमान और पीड़ा ने कई बार मुझे जीते जीते मार डाला . हर बार लगता था मानों मैंने अपमानित होने के लिए और पीड़ा सहने के लिए ही जन्म लिया है . आखिर यहाँ तक आते आते अब संकट ही हार गए है मुझसे . मेरे बच्चों को इन सबका एहसास है . बच्चों के कारण ही थोड़े बहुत सुख की बयार इस ढलान पर आने को है . इसी उम्मीद में अब जीने की लालसा भी बढ़ी है . मुझे नहीं मरना अभी . ‘                                

– ‘ कमाल है .’आकृति बोली , ‘ तुम्हारे कहने और चाहने से जीवन मृत्यु का चक्र नहीं हो सकता . और फिर तुम्हारे जैसा आदमी जिन्दगी से हार कर न जाने कितनी बार आत्महत्या करने का असफल प्रयास कर चुका है . फिर आज ही इतना विलाप क्यों ? जान देने के ऐसे नए नए साहसी तरीके कोई भी नहीं आजमाता जैसे कि तुमने आजमाए है . याद करो ,एक बार चौदह साल की उम्र में तुम्हारी सौतेली माँ की शिकायत पर तुम्हारे पिता द्वारा तुम्हें छड़ी से पिटे जाने पर , गुस्से में आत्महत्या करने निकले थे . मिटटी के तेल का पूरा डिब्बा ही तुमने खुद पर उड़ेल लिया था . तुम्हारी मौसी ने उस वक्त तुम्हारे हाथ से माचिस की डिब्बी छीन ली थी . तुम तो उसी दिन अनर्थ ही करने जा रहे थे . ‘                               

– ‘ हाँ सही हैं . बड़ा स्नेह करती थी मौसी मुझसे . मै तो उसका लाडला ही था .सच तो यह है कि , उस दिन मुझे मौसी ने ही बचाया था . ‘                                     

– फिर तुम्हारी गलतफहमी है . ‘ आकृति बोली , ‘ सच तो यह है कि उस वक्त तुम्हारा समय ही पूरा नहीं हुआ था . मौसी का तुम्हारे यहाँ चार दिनों के लिए आना कोई योगायोग नहीं था . अवसाद में और गुस्से से , बात बात पर आत्महत्या करने की तुम्हारी सनक बढती जा रही थी . किसी भी बात पर गंभीरतापूर्वक विचार न कर मरने के लिए प्रेरित होना यह तुम्हारा स्वभाव बनता जा रहा था . आत्महत्या से हुई मृत्यु किसी समस्या का हल नहीं होता . बल्कि उससे अनेक नयी समस्याएं उपजती है . हमेशा बिना संघर्ष जल्द ही निराश हो जाना , अवसाद में डूब जाना , और सोचना कि इतनी बड़ी दुनियाँ में तुम्हारा कोई नहीं , तुम्हें कोई चाहता ही नही , तुम्हारी किसी को जरुरत ही नहीं , हमेशा अकेले महसूस करना और अकेला रहना ही पसंद करना यें सारी बातें तुम्हारे सारे संकटों की जड़ थी . इन सब के बारे में तुम कभी सोचते ही नहीं थे . मौसी ने तुम्हारी जान बचाई इस खुशफहमी में तुमने जिन्दगी निकाल दी , पर तुमने अनेक बार आत्महत्या का प्रयास किया इस बाबद तुम्हें कही कोई पछतावा , कोई ग्लानि नहीं हुई . ‘                                                           

– मधुसूदन चुपचाप सुन रहे थे . आकृति बोली , ‘ अब तुम्हारी मौसी और तुम्हारे बड़े भैय्या भी इस दुनियाँ में नहीं है . अब तुम्हें बचाने वाला यहाँ कोई नहीं है . तुम्हें मेरे साथ चलना ही होगा . उठों और चलो मेरे साथ . ‘                                                

- ‘ नहीं .. नहीं. इन्हीं दिनों अब मेरी जीने की लालस प्रबल होती जा रही है . अब तक तो मै निराशा की गर्त में और परिस्थितियों से हार कर आत्महत्या का ही प्रयास करता रहा था . संकटों से घबरा कर हर हमेशा जान देने की ही सोचता था . पर धीरे धीरे अब परिस्थितयां बदल गयी है . मेरी सब सांसारिक जिम्मेदारियां पूरी हो चुकी है . बच्चें भी अपनी अपनी गृहस्थी में खुश है . और मेरी जिन्दगी का पहाड़ सा बोझा भी कम हो गया है .निराशा के बदल छट चुके है . इसलिए जिन्दगी का भी अब अर्थ भी बदल गया है . जीने के खुशनुमा रंग बिखरते से दिखाई दे रहे है . उमंग और उत्साह बढ़ने लगा है . अब अचानक ये जीने का आनंद बीच में ही कैसे छोड़ दूं .’                                       - आकृति हसने लगी , पाहिले जब कुछ भी नहीं था तब भी मोह . और अब जब सब कुछ है और सब कुछ हो चुका है तब भी मोह ? ‘                                          

– ‘ यह मोह नहीं हैं . मेरी पत्नी ने मेरे साथ , मेरे बुरे दिनों में बहुत कष्ट सहें हैं . सच पूछो तो मेरी पत्नी मेरे और हमारे बच्चों के लिए रोज मर मर के जीती रही . अब शेष बचे दिनों में मुझे उसकी झोली तमाम खुशियों से भर देना है . मैं ही नहीं रहूँगा तो उसका क्या होगा ? ‘ मधुसूदन के स्वर में निराशा थी .                                      –‘ ऐसे तो तुम पिछले जन्मों में कितनी ही पत्नियों को छोड़ कर आए हो . ‘                  

– ‘ पिछले जन्म का किसी को कुछ याद रहता है क्या ? ‘                           

- ‘ अच्छा ? फिर इस जन्म का याद करों . इस जन्म में अब तुम्हें पत्नी की चिंता सता रही है ? ‘ आकृति बोली , ‘ याद करो , जिस लड़की को तुम अपने प्राणों से भी ज्यादा चाहते थे और जिसके साथ तुमने कई बार जीने मरने की कसमें खायी थी ... याद है उसकी ? तुम्हारा पहला प्यार . उससे विवाह करना चाहते थे तुम , पर जब लड़की के पिता ने तुम्हारे जैसे गरीब और बेरोजगार के साथ अपनी लड़की का विवाह करने से साफ़ मना कर दिया था तब प्रेम में असफल और निराशा में यह मजनू एक बार फिर आत्महत्या करने गया था . याद है ? अचानक रेलवे स्टेशन पर मिले तुम्हारे मास्टरजी ने तुमकों नहीं रोका होता और समझाबुझाकर खुद तुम्हारे घर नहीं लाया होता तो तुम्हारा रेलगाड़ी के नीचे आकर जान देने का इरादा पक्का ही था ना ? अब मुझे बताओं वो प्यार सच्चा था , या आज पत्नी के लिए उमड़ रहा तुम्हारा यह प्रेम सच्चा है ? ऐसा समझ लो कि अपने प्यार की खातिर तो तुम तभी मर चुके थे .मतलब आज की मृत्यु का तुम्हें कतई दु:ख नहीं होगा .उसी वक्त मर जाते तो आज की यह गृहस्थी , ये पत्नी , ये बच्चें , ये नाती पोती* , ये सब सुख कहाँ मिलता ? जिस सुख की खातिर आज तुम्हारी ज्यादा जीने की लालसा है , इन सब का उपभोग कहाँ से कर पाते ? ‘     –‘ क्या कह रहे हो ? ‘ मधुसूदन ने कहाँ , ‘ अरे वो तो नासमझी की उम्र में लड़कपन का प्यार था .’                                                       

–‘ परन्तु मौत लड़कपन की नासमझी नहीं होती . उम्र लडकपन की हो सकती है , परन्तु बार-बार जान देने की तुम्हारी कोशिश को लडकपन की नासमझी नहीं कहा जा सकता . एक निराशा से घिरा , अवसाद में जिन्दगी से हारा हुआ आदमी मृतप्राय ही तो रहता है . उसे प्राण देने की क्या जरुरत है ? इतने वर्ष तुमने अपने आप को मरा हुआ क्यों नहीं समझ लिया ? बेकार इतने वर्ष रिश्तें जोड़ते रहे सबसे ? मृत्यु के लालयित इतने वर्ष भी क्यों जीते रहे ? सब के मन में तुम्हारे रहने की , तुम्हारे सहारे की आंस जगाते रहे ? अपनी जिम्मेदारियों से भागने की प्रवृत्ति पलायन ही है . क्या कहोगे इस सब के लिए ? ‘                           

– मधुसूदन की धडकनें तेज हो गयी . लम्बे समय से अँधेरे में निरुद्येश दौड़ते रहने का एहसास हो रहा था . थकान और ग्लानि भी महसूस होने लगी . बदन पसीने से भीग गया था . दु:खी मन से आकृति से बोले , ‘ क्यों कर मेरी आत्महत्या के पहाड़े बार बार पढ़े जा रहे हो ? मेरी जिन्दगी के बारे मे जो तुम्हें पता है वह मुझे भी पता ही है ना ? लेकिन अब यही सच है कि मुझे अब लम्बी उम्र जीना है . ‘                                               

 – ‘ जब हर बार जिन्दगी जीने का अवसर मिल रहा था तब बार बार जिन्दगी को ही ख़त्म करने पर तुले थे . और आज जब मृत्यु का सामना साहस के साथ करने का अवसर है , तब मोह में पड़े एक दयनीय याचक बन गए हो . मृत्यु ही शाश्वत है और मृत्यु को हर व्यक्ति को गले लगाना ही पड़ता है . पाहिले जीवन को भूल रहे थे अब आज मृत्यु को भुलाये बैठे हो . मृत्यु नहीं तो जीवन भी नहीं . प्रकृति का भी यही नियम है .  समझे ? ‘ आकृति मधुसूदन को समझा रही थी .       

-‘ पर वास्तविकता यह है कि मुझे अभी मृत्यु नहीं चाहिए . ‘ निराश मधुसूदन ने क्षीण आवाज में कहा .                                                              

– ‘ किसी की इच्छा अनिच्छा पर यह दुनिया नहीं चलती . प्रकृति का नियम और प्रकृति का संतुलन महत्वपूर्ण है . मृत्यु तो एक उत्सव है . मृत्यु है तो जीवन है . सच तो यह है कि तुम्हारा समय पूरा हो चुका है . चलो मेरे साथ . इस स्वाभाविक मृत्यु के कारण तुम्हें और तुम्हारी पत्नी एवं तुम्हारे बच्चों को समाज में प्रतिष्ठा मिलेगी . आत्महत्या से वो प्रतिष्ठा नहीं मिला करती . जो सुख तुम्हें तुम्हारी पत्नी और बच्चों को देने की इच्छा है , उससे कई गुना ज्यादा सुख उनकों समाज में मिलने वाली इज्जत और प्रतिष्ठा से मिलेगा . उन सब के भी जीने की राह आसान होगी . इसके अलावा तुम्हारी मृत्यु से वें सब तुम्हारे बंधन से और उनके बन्धनों से तुम ख़ुशी ख़ुशी मुक्त हो जाओगे . ‘ आकृति ने कहा .                                

‘ नहीं नहीं मेरे ऊपर दया करो . मुझे अभी नहीं मरना . मुझे जीना है . मुझे जीना है . अब मै क्या करू ? कहाँ जाऊं ? मुझे जीना है ..... मुझे जीना है ... .’ मधुसूदन नींद में बडबडाएं जा रहे थे . उनके जोर से बडबडाने से उनकी पत्नी मालती की नींद खुल गयी . –‘ क्या हो रहा है जी आपको ? ‘ मालती ने मधुसूदन को हिलाया .                      मुझे जीना है . मुझे अभी नहीं मरना . मुझे जीना है . ‘ मधुसूदन बस यहीं बड़बड़ाएं जा रहें थे .                                                                 

– मालती तुरंत कमरे से बाहर गयी और नर्स को बुला लायी . नर्स ने मधुसूदन की हालत देखी और तुरंत डॉक्टर को बुला लायी . मधुसूदन की धड़कनें बहुत तेज होती जा रही थी . डॉक्टर ने देखा और तुरंत नर्स को इंजेक्शन ले कर आने को कहा . नर्स भी तुरंत इंजेक्शन ले कर आयी पर व्यर्थ , मधुसूदन का समय इस धरा पर पूरा हो चुका था . 



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