हँसना मना है
हँसना मना है
बचपन मे अंधेर नगरी के एक राजा की पढ़ी हुई एक कहानी याद आ गयी। राजा को चापलूसी और खुशामद बहुत पसंद थी। इसी कारण राजा हमेशा खुशामदियों और चापलूसों से घिरा रहता था। एक बार चापलूसों ने हद कर दी। राजा की झूठी प्रशंसा कर और उसे भ्रम में रख कर अति महीन पारदर्शी मलमल के वस्त्रों में हाथी पर बिठाकर नगर भ्रमण के लिये राजी कर लिया। राजा की सवारी नगर के मुख्य मार्गो से होकर गुजरने लगी और नगरवासी अपने राजा को लगभग विवस्त्र अवस्था में हाथी पर बैठा देख कर हैरान हो रहे थे। नगरवासियों को राजा की अवस्था देख कर बहुत दुःख भी हो रहा था।परंतु सनकी, वहशी, क्रूर, अत्याचारी और बेशर्म राजा को उसकी सही अवस्था बताने की हिम्मत किसी में भी नहीं थी। तभी अचानक एक छोटा बालक जोर से चिल्लाया , " राजा नंगा ! राजा नंगा !! "
बचपन मे पढ़ी हुई यह कहानी इतनी ही थी। पर आज के वर्तमान परिद्र्ष्य में और परीस्थितियों में यह कथा इस तरह हो सकती है। वह ऐसे कि, वह छोटा बालक राजा को इस अवस्था में देख कर जोर जोर से चिल्लाने लगा था। उसके बाल सुलभ मन में यह बिठाया गया था कि राजा ईश्वर के समान होता है।बालक ने कभी राजा को नहीं देखा था और ईश्वर को देखने का तो सवाल ही नहीं था। उसकी अपनी समझ में उसे ईश्वर के समान राजा को देखने का आनंद हुआ था। इसीलिए वह उत्तेजित होकर ताली बजा कर और जोर जोर से चिल्लाकर अपना आनंद व्यक्त कर रहा था।
छोटे से बालक के जोर जोर से चिल्लाने से राजा को अपनी अवस्था का भान हुआ। अपनी प्रजा के समक्ष हमेशा ही भारी भरकम राजसी दरबारी पोशाक में रहने वाला राजा लज्जा अनुभव करने लगा, उसे कुछ संकोच भी हुआ और फिर वह क्रोधित होने लगा। इधर छोटे बालक का साहस देख कर नगरवासी भी खुश हो गये और वें भी जोर जोर से तालियां बजाकर उस नन्हे बालक का उत्साह बढ़ाने लगे। सनकी और क्रूर राजा के सामने कभी भी मुंह खोलने का साहस न करने वाली प्रजा में ना जाने कहा से अचानक आत्मविश्वास और साहस का संचार हो गया कि वह उस नन्हे बालक मे भविष्य के अपने राजा की कल्पना भी करने लगी।
लोगों को प्रसन्नता से तालियां बजाते देख वह नन्हा बालक भी उत्साह में चिल्ला चिल्ला कर नाचने लगा। लोग भी उसका जोर जोर से तालियां बजाकर साथ दे रहे थे। इस राज्य में इसके पूर्व किसी ने भी ऐसा दृश्य नहीं देखा था। और नाही लोगो को इतना आनंदित देखा था। क्षण भर के लिये राजा का भय भूलकर सभी नगरवासी जोर जोर से हँस रहे थे।
अपने प्रजाजनों को इस तरह तालियां बजा कर आनंद और उल्लास व्यक्त करते देख राजा स्वयं को अपमानित महसूस करने लगा। 'प्रजाजनों की इतनी मजाल कि वे अपने ही राजा का अपमान करे ?' यह सोच सोच कर राजा का क्रोध बढ़ता ही जा रहा था।' नगरवासियों को सबक सिखाने की जरुरत है।अपने ही राजा को अपमानित करने के अपराध हेतु उन्हे दंडित भी किए जाने की जरुरत है।' यह सोच राजा उसी क्षण अपना नगर भ्रमण अधूरा छोड़ राजमहल वापस आ गया। जिन चापलूसों ने उसे पारदर्शी महीन मलमल की पोशाक में हाथी पर बैठकर नगर भ्रमण करने की सलाह दी थी उन सबको राजा ने तत्काल कठोर दंड देकर काराग्रह में भिजवाया। इसके बाद राजा ने सभी दरबारियों को तुरंत दरबार में उपस्थित होने का आदेश दिया।
दरबार में राजा ने नगरवासियों द्वारा जोर जोर से हँस कर एवं ताली बजाकर उनके खुद के ही सम्राट को अपमानित करने पर तीव्र नाराजगी जाहिर की।अव्यवस्था के लिये अपना रोष भी प्रकट किया। राजा सोच रहा था कि सदैव दुःखी और त्रस्त रहने वाली उसकी प्रजा आज अचानक आल्हादित और प्रसन्न कैसे हो सकती है ? उसके लिये प्रजा यानि भेड़ बकरियों के समूह जैसी। राजा को लगता था कि राजा का काम ही प्रजा को हांकना और प्रजा को असंतुष्ट रखना है। अत: राजा, प्रजा को और ज्यादा कष्ट पहुँचाने के बारे में सोच रहा था जिससे कि राजा का फिर से अपमान कोई ना कर सके। इस हेतु राजा दरबारियों से गंभीर मंत्रणा करने लगा। इस हेतु कुछ ठोस कार्यवाही करने की भी राजा ने दरबार में अपनी इच्छा बोल कर बतायी।
बैठक में चर्चा का विषय बहुत गंभीर था। विस्तृत विचार विमर्श के बाद एक ही मुद्दा उभर कर सामने आया कि सारी समस्या की जड़ उस छोटे से बालक का राजा के बारे में टिप्पणी करना था और इससे बढ़ कर उस बालक का आनंदित होकर तालियाँ बजाते हुए जोर से हँसना था।
सभी की राय थी कि हँसने के उपर कुछ कठोर कदम उठाये जाने की जरुरत है। सभी खुशामदी बढ़चढ़ कर राजा को सलाह देने लगे।
किसी एक खुशामदी ने राजा को सलाह दी , "राजा यह ईश्वर का प्रतिनिधि होता है। अत: राजा के उपर हँसने को कानून बनाकर हमेशा के लिये प्रतिबंधित किया जाय। ' एक और चतुर खुशामदी ने राजा को ज्यादा प्रसन्न करने की सोची, उसने राजा को सलाह दी , "राजन, राज्य के प्रधानजी को कभी किसी ने हँसते हुए नहीं देखा है। इसलिये प्रधानजी का सार्वजनिक सत्कार धूमधाम से किया जाय जिससे कि प्रजाजनों को प्रधानजी से न हँसने की प्रेरणा मिलेगी।" पर तुरंत ही दरबार में इसका भारी विरोध भी हुआ। एक तो प्रधान जी के विरोधी भी कम नहीं थे। दूसरा महत्वपूर्ण कारण यह था कि, इससे सब को अपने आप यह पता पड़ जाता कि हँसी बिना किसी प्रयास के भी आ सकती है और यह भी साबित हो जाता कि प्रधानजी को छोड़ कर राज्य में सभी हँसते है।इसलिये प्रधानजी का सम्मान समारोह होते होते रह गया। इसके अलावा इस प्रस्ताव में हँसी के उपर रोक लगाने जैसा कोई भी सुझाव नहीं था। कोई एक मासूम छोटा बालक जाब निश्चल हँसी हँसेगा या कोई भी अगर हँसने का तय ही कर लेगा, और या फिर अगर कोई जबरन ही हँसेगा तो उसके उपर कैसे रोक लगायी जायेगी यह कही भी स्पष्ट नहीं था।
इसके बाद एक और चापलूस सलाहकार आगे आया और बोला, " राजन हँसने हँसानेके लिये जितने भी मुख्य कारण और साधन है उन सबको जड से नष्ट करने की आवश्यकता है। इस हेतू हँसने हँसानेके समस्त कारण और साधनों को खोजने के लिये एक खोज समिती बनाने की आवश्यकता है।जिसका उत्तरदायित्व इस बाबद गहराई से अध्ययन और शोधकार्य कर अपने शोध पर सारासार विचार विमर्श करने के उपरांत अपनी रिपोर्ट शीघ्र प्रस्तुत करना हो ताकि इस बाबद महाराज को कोई ठोस निर्णय लेने में आसानी हो सके। "
किसी एक खुशामदी ने अपनी अलग ही राय राजा को दी। वह राजा के अपमानित होने की वेदना समझता था।उसने कहा , " महाराज , हँसने को राष्ट्रीय शर्म घोषित किए जाने की जरुरत है। जिससे कि मन में हँसने का विचार आने के पूर्व आदमी अपने आप में ही शर्मिंदा हो जाय। इसी तरह से किसी दुसरे को हँसाने वाला भी मन में हँसाने का विचार आते और इस कल्पना मात्र से ही लाज शर्म से ज़मीन में धंसने जैसा अनुभव करे। महाराज , इन्ही सब ठोस उपायों से राज्य में हँसने और हँसाने में कमी लायी जा सकती है। हमें यह भी देखना होगा कि आगे से कोई मसखरा,विदुषक, या मदारी बच्चों समेत किसी को भी हँसा न पाये। इस हेतु मय प्राणियों के इन सब के राज्य में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिये। सर्कस में भी जोकरो पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिये। और सर्कस भी बिना मनोरंजन के होनी चाहिये।
एक खुशामदी ने अपना महत्वपूर्ण विचार राजा को बताया , " महाराज , हँसने हँसाने के और भी बहुत से कारण है जिनके उपर गंभीरता से विचार कर और कठोर कानून बनाकर उन्हे सख़्ती से लागू किए जाने की जरुरत है। इनमें, व्यंगचित्र , बड़ी हस्तियों पर कार्टून बनाना, विनोदी लेख, विनोदी कथा
कविताएं , विनोदी चित्रपट , विनोदी सिरियल्स , विनोदी नाटक , सीधे प्रक्षेपित होने वाले हास्य कार्यक्रम , हास्य कवि सम्मेलन जैसे कार्यक्रमों से लोगो में हँसने हँसाने के विषाणु बहुत जल्द फैलते है। और लोग हँसने के आदि हो जाते है और अपनी इस आदत के कारण दूसरों पर तंज कसने की बीमारी से भी वे ग्रस्त हो जाते है। और इस कारण धीरे धीरे उन्हे आनंद भी मिलने लगता है। अत: सबसे पहले इस तरह के कार्यक्रमों पर रोक लगाने की जरुरत है ताकि सभी की हँसी पर अंकुश लगाया जा सके।"
एक और खुशामदी ने अपने अमूल्य विचार सबके सामने रखे। वह बोला , " राजन, हँसना सब लोग भूल जाय इसलिए प्रजाजनों को कदम कदम पर रुलाने की जरुरत है। इसलिए सरकार द्वारा प्रजा के ऊपर अधिक से अधिक नए नए अत्याचार करने की भी आवश्यकता है, जिससे प्रजा ज्यादा त्रस्त और दुःखी रहे। उदाहरणार्थ सरकार की ओर से ज्यादा महँगाई बढ़ाने की जरुरत है। इस हेतु यात्री किराया और माल भाड़ा भी बढ़ाया जा सकता है। जमाखोरो को रियायात और प्रोत्साहन देने की जरुरत है। किसी भी तरह से जीवनोपयोगी और रोजमर्रा की वस्तुएँ महंगी होने से लोग परेशान होंगे और हँसना भूल जाएंगे। इन सब उपायों से निश्चित ही लोगो का जीना दुभर हो जाएगा। इन सब प्रयासों के बाद भी अगर थोड़ी बहुत दबी छुपी हँसी इधर उधर के खबरों से पता पड़ जाय तो प्रजा पर करों का बोझ बढा कर उनकी आमदनी और कम करने की जरुरत होगी । इन सब उपायों से लोगों की हँसी क्षण भर में काफूर हो जाएगी। सबसे महत्वपूर्ण यह कि दरबारियों और राजा के खासम खास लोगों को समस्त कायदे कानून और व्यवस्था से उपर रखा जाय और उन्हे अनेक तरह की विशिष्ट सुविधाये दी जाय और इन लोगो से प्रजा के उपर अत्याचार करवाया जाय। परंतु साधारण प्रजाजनों को छोटी से छोटी ग़लती के लिये भी कठोरतम दंड की व्यवस्था हो। गरीबों के लिये न्याय वर्षो तक न मिले इसकी व्यवस्था हो और इससे बढ़कर न्याय असंभव हो ताकि प्रजा में असंतोष और आक्रोश बढ़ता रहे। हे राजन, इन्ही सब उपयों से प्रजा अपनी समस्याओं में उलझी रहेगी और त्रस्त हो, हमेशा दुःखी ही रहेगी और हँसना हँसाना भूल जाएगी। "
एक और सलाहकार ने अपनी अलग ही तरह की अनोखी सलाह राजा को दी। वह बोला , " हे राजन, बहुत छोटे शिशुओं को पलने में अपने आप ही हँसी आती है। परंतु बड़ों को हँसने के लिये अपने दाँत दिखाने पड़ते है। अत: संपूर्ण राज्य में मुनादि करावकर और चेतावनी देकर सभी प्रजाजनों के दाँत उखड्वाने हेतु सख़्ती से व्यवस्था करवाई जाय। इससे कई समस्याएं अपने आप हल हो जायेंगी। महत्वपूर्ण तो यह कि भविष्य में कोई भी हँसने के लिए अपनी बत्तीसी नहीं दिखा पाएगा। इसके अलावा खाने के दाँत अलग और दिखाने के दाँत अलग इसकी गिनती करने की जरुरत नहीं रहेगी। मतलब नकली दाँतों से हँसने वालों की गणना करने में सरकारी अमले की जरुरत नहीं रहेगी। इसका एक और यह फायदा भी होगा कि न तो किसी की घिग्गी ही बंधेगी और नाही किसी के दाँत कभी ठंड से किटकिटाएंगे। इन दो समस्याओं के न रहने से बिना हँसे भी महाराज को सबकी दुआएँ मिलती
रहेंगी । सबसे महत्वपूर्ण महाराज यह होगा कि लोगो के दाँत ही नहीं होंगे तो वें ज्यादा खा भी नहीं पायेंगे और इस तरह राज्य में अनाज की बहुत बचत होगी। "
सभी खुशामदी दरबारी राजा को एक से बढ़ कर एक नयी नयी सलाह दे रहे थे। और राजा भी सभी की सलाह पर गंभीरता से विचार कर रहा था, परंतु अपने अपमान को वह भुला नहीं पा रहा था। इसीलिए राजा व्यग्र भी बहुत था। राजा सोचने लगा , 'एक छोटा सा बालक अपने राजा को अपमानित करता है , और न सिर्फ अपमानित करता है वरना औरों को भी राजा को अपमानित करने के लिए उकसाता है ? इससे बढ़कर किसी राजा के लिये लज्जास्पद और भला क्या हो सकता है ? कुछ तो करना ही होगा।
'उस छोटे से बालक का ताली बजाते हुए जोर जोर से चिल्लाकर राजा को विवस्त्र बताने का दृष्य राजा की आँखो के सामने बार बार आ रहा था और राजा को विचलित कर रहा था। राजा के मन में आया कि , 'जब वह इस घटना को नहीं भुला पा रहा तो नगरवासी इस दृष्य को कैसे भूल पाएंगे ? मन ही मन तो हँसते ही होंगे ? उसका क्या किया जाय ? और उनके ही राजा के अपमान का क्या ? कुछ भी हो राजा को अपमानित करने का दंड तो प्रजा को मिलना ही चाहिये। पर इस अपराध के लिये नगरवासियों को कैसे सजा दी जाय और क्या सजा दी जाय ?'
आखिर बहुत विचार विमर्श के पश्चात और खुशामदी दरबारियों की सलाह से राजा ने तुरंत प्रभाव से हँसने और हँसानेपर पाबंदी लगादी। हँसने और हँसाने को राष्ट्रीय शर्म घोषित किया गया। और तत्काल एक नया , ' हँसना हँसाना प्रतिबंधात्मक कानून ' लागू कर राज्य में हँसने हँसाने को एक अपराध घोषित किया गया और दंड हेतु कानून में विभिन्न धाराएं भी शामिल की गयी। इसके अलावा हँसना हँसाना रोकने हेतु अन्य उपायों की भी घोषणा की गयी। इन उपायों में, सभी शालेय और महाविद्यालयीन पाठ्यक्रमों में तुरंत प्रभाव से बदल कर पाठ्यक्रमों में से हास्य एवं मनोरंजक साहित्य सामग्री को हटाया गया।अकबर बिरबल के किस्सो के साथ ही तेनालीराम, और मुल्ला नसरुद्दिन के किस्सो जैसी अन्य बहुत सारी सामग्री पाठ्यक्रम में से हटायी गयी। द्रौपदी पांडवों पर हँसी थी यह प्रसंग भी महाभारत में से हटाने के आदेश जारी किए गये। हास्य चित्रपट और हास्य धारावाहिकों पर तत्काल प्रतिबंध लगाया गया।सभी हास्य कलाकारों की गिरफ्तारी के आदेश जारी किए गए। ' हँसान ' यह अपशब्द और अपशकुनी और असंसदीय घोषित किया गया। इतना ही नही
हँसना यह शब्द कभी आगे लोगो की स्मृती में न रहे इसलिये ' ह ' यह अक्षर बाराखड़ी और शब्दकोश में से तुरंत प्रभाव से हटाने के आदेश जारी किए गए।
इतना सब निपटाने के बाद दरबार की कार्यवाही समाप्त की गयी। राजा समेत सभी खुशमदी दरबारियों के चेहरे पर विजयी मुस्कान थी । प्रजाजनों द्वारा उसकी हँसी सी उड़ाने का भय राजा के मन से अब दूर हो चुका था। राजा अब बेहद संतुष्ट था और उसके खुशामदी दरबारी भी बेहद प्रसन्न थे। चुकी राजा को अब किसी के द्वारा भी अपने अपमान का भय नहीं रहा था इसलिये राजा अब और भी ज्यादा स्वच्छंद और निरंकुश हो गया। अत्याचारी राजा की निरांकुषता देख उसके खुशामदी दरबारियों में भी खुद को ज्यादा से ज्यादा निर्लज्ज साबित करने की प्रतिस्पर्धा शुरू हो गयी।
