रंगबिरंगी !!!

रंगबिरंगी !!!

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मंच पर से वक्ता बोल रहा थाI अचानक वह बोलते बोलते रुक गयाI सबसे अंतिम पंक्ति की ओर उसने टेढ़ी नज़रों से देखा, एक क्षण देखता रहा और फिर विषय से हट कर बोला , “ मुझे ऐसा लगता हैं कि अंतिम पंक्ति में बैठे हुए चारों सज्जन अगर मेरी बात शांति से सुने तो बेहतर होगा, इससे वे भी मेरी बात ठीक से समझ सकेंगे और दूसरों को भी कोई परेशानी नहीं होगी और वें सब भी शांति से मेरी बात सुन सकेंगेI आखिर हम लोग सेवानिवृत्ति के पश्चात् आने वाली समस्याओं पर ही तो चर्चा कर रहे हैं, और यह सबके भले के लिए ही तो हैI “वें चारों सकपका गए, फिर मुस्करा दिए और गर्दन हिला कर शांति से भाषण सुनने का वक्ता को आश्वासन दियाI वक्ता फिर से विषय पर बोलने लगाI परन्तु उन चारों की हरकते बदस्तूर जारी थीI इन अभिन्न मित्रों की शैतान चौकड़ी अनेक वर्षों के उपरान्त एकत्रित हुई थी और जिगरी दोस्तों की यह शैतान चौकड़ी सेवानिवृत्ति के पश्चात सिर्फ एक दूसरे से मिलने के लिए ही इस संमेलन में आई थीI

“मैं कह नहीं रहा था तुमसे कि चुपचाप बैठो ? “इनमें से एक चिंटू अर्थात गणेशशंकर अय्यर मद्रासी ने अपने मित्र रामू से कहाँI “मैं नहीं ! ये वाहियात अली जोर जोर से बोल रहा थाI “ रामू अर्थात रमा शंकर अवस्थी ने जवाब दियाI “ फिर मुझे वाहियात अली कहाँI "वाहिद अली ने रामू की पीठ पर धौल जमाया , “मेरा नाम वाहिद अली हैI सबके सामने वाहियात अली नहीं कहने काI “ वाहिद अली ने गुस्से से कहा I “मतलब अकेले में कह सकता हूँ ?“

रामू हँसते हुए बोलाI “ शरम नहीं आती वाहियात अली कहते हुए ? हम सब बूढ़े हो गए हैं अबI “सब नहीं I सिर्फ तुम तीनों, मैं तो अभी भी सरदार हूँ I सरदार अमरीक सिंहI ओये सुनो ! सरदार कभी बूढ़ा नहीं होताI “ सरदार अमरीक सिंह ने कहाँI “सच है, तभी तू पचास के बाद बाप बना हैंI “ चिंटू ने कहाँ , चिंटू के इतना कहते ही सारे फिर ज़ोर से हँस पड़ेI वक्ता ने मंच से एक बार फिर इन चारों की ओर नाराज़गी से देखा I वाहिद अली ने चिंटू की पीठ पर धौल जमाया , “ खामोश रहो I वो हमारी ओर ही देख रहा हैं, क्या बोलना है वही भूल जाएगा, इसलिए कहता हूँ खामोश बैठोI“ इतने में वक्ता की किसी बात पर हॉल तालियों से गूँज उठाI यह देख कर अमरीक सिंह भी तालियाँ बजाने लगाI वक्ता ने क्या कहा यह बाकी तीनों समझने का प्रयत्न कर रहे थेI अमरीक सिंह को बड़ी देर तक तालियाँ बजाते देख चिंटू बोला , “अब बस करोI सब रुक गए हैं तालियाँ बजाने सेI तुम्हारी यही आदत .... यही आदत अभी भी नहीं गयीI“ “कौन सी ? “ अमरीक सिंह ने पूछाI “तुम्हें जब कुछ भी समझ में नहीं आता तब तुम तालियाँ बजाने लगते हों I“ अमरीक सिंह शरमाया I

“अब जब तक मैं ना कहूँ, तालियाँ नहीं बजानाI समझे ? “ चिंटू ने ताकीद ही कर दी और इस पर सब एक बार फिर हँस पड़ेI “सुनो , चाय पीने चले ? वैसे भी इसका भाषण लम्बा और उबाऊ हो चला हैI " अमरीक सिंह बोला I – “ओ.के. “चिंटू बोला, वैसे भी तुम्हें इसका भाषण कुछ भी समझ में नहीं आएगा और हमें कई दिन लग जाएंगे तुम्हें समझाने में तो फिर चाय ही ठीक रहेगीI “

एक एक कर के चारों उठकर बाहर आ गए और नज़दीक के ही एक रेस्ट्रारेंट में जा कर बैठ गएI “ क्यों रामू अब कैसी तबियत हैं तुम्हारी ? “ वाहिद अली ने पूछाI वाहिद अली के रामू से यह पूछने पर सभी मित्र गंभीर हो गएI रमाशंकर अवस्थी की पत्नि विवाह के दस वर्ष बाद ही चल बसी थीI एक बेटी थीI बेटी की देखभाल ठीक से हो सके इस के लिए रमाशंकर अवस्थी ने दूसरा विवाह नहीं किया , परन्तु अब बेटी का विवाह हो गया था और वह पिछले कई वर्षों से अमेरिका में ही स्थायी हो गयी थीI अब इस ६५ साल की उम्र में रमाशंकर अवस्थी अकेले ही जीवन गुजार रहा थाI मधुमेह और ब्लडप्रेशर के अलावा रामू का बायपास ऑपरेशन भी हो चुका थाI बीमारी और कमज़ोरी के कारण रामू को जीवन में निराशा ने घेर लिया थाI अपने गिरते स्वास्थ को देखते हुए रामू ने ही सब मित्रों से फोन कर, एक बार मिलने की इच्छा व्यक्त की थी और इसीलिए सभी मित्र यहाँ इस सम्मेलन के बहाने इक्कट्ठे हुए थेI अपनी चालीस वर्षों से भी ज्यादा की मैत्री के पुराने दिनों को याद करते हुए बीते एक दिन से यहाँ सम्मेलन में हँसी ठिठोली कर रहे थेI वाहिद अली ने एक बार फिर रामू से पूछा, “अरे भाई कैसी तबियत हैं तुम्हारी ? कुछ बोलो ना ? दवाई वगैरे ठीक से ले रहों ना ?“ “कैसे होगी ? “ रामू ने उलटे वाहिदअली से ही प्रश्न किया , “अकेले की गृहस्थी I बिटिया हमेशा अमेरिका में के लिए आने की रट लगा रही है, वैसे हो के भी आया दो बारI पर मुझे बताओ क्या करूँगा उस पराए देश में ? बेटी हैं तो वो अपनी गृहस्थी में व्यस्त रहती हैI उसे क्यों बार बार बिना कारण तकलीफ़ दें ? अब उस पराए देश में अपना कोई परिचित ही नहीं हैं तो वहां स्थायी रहकर क्या करेंगे ? यहाँ अपने देश में आप भले, हम भले और हमारा देश भलाI मरने के बाद कम से कम तुम यारों का कान्धा तो मिलेगाI वहां मिलेगा क्या तुम लोगों का कान्धा ?“ “हाँ ! ज़रुर मिलेगाI “चिंटू बोला , “चिंता मत करों हम इंटरनेट से भेज देंगेI“ फिर से चारों जोर से हँस पड़े I “अब तुम यहाँ से वापस बंगलौरु नहीं जाना , और वहां अकेले रहने की भी जरूरत नहींI मेरे साथ चलो, अब तुम मेरे साथ मेरे घर में ही रहोगेI इस बीमारी की हालत में मैं तुम्हें अकेले नहीं रहने दे सकताI “ चिंटू बोलाI “तुम्हारे यहाँ अकेला आकर ये क्या करेगा ? सिर्फ कबाब में हड्डीI तुम दोनों की राजारानी की गृहस्थी, इस बूढ़े को गोद लेने वाले हो क्या ? “अमरीक सिंह ने चिंटू से पूछा और सब मित्र एक बार फिर जोर से हँस पड़ेI


गणेश शंकर अय्यर हँसते हँसते गंभीर हो गया I उसकी हँसी मानो एक पल के लिए ही थीI बोला , “ मेरा जाने दो, मुझे मेरी चिंता नहीं हैं I पर तुम्हारी भाभी बहुत चिड़चिड़ी हो गयी हैI हम लोगों को बच्चा नहीं हो सका इसलिए उसकी मानसिक हालत ठीक नहीं रहती , हमेशा बच्चें के बारे में ही सोचती रहती हैI हम दोनों की ही अब उम्र हो गयी हैं और इस बुढ़ापे में पत्नी को संभालते संभालते मैं खुद कई बार अस्वस्थ हो जाता हू I इस उम्र में उसकी ज़िद है बच्चा गोद लेने की परन्तु उसका मन रखने के लिए कहें या उसकी तबियत के लिए कहें पर अब इस उम्र में तो किसी बच्चे को गोद नहीं लिया जा सकता ना ? अब तो बहुत देर हो चुकी हैI हमारी ऐसी कितनी सी जिन्दगी बची है? और अब अगर किसी बच्चें को गोद लेते हैं तो उसको ठीक से कैसे संभाल पायेंगे ? हमारे बाद कौन उसे संभालेगा ? क्या होगा उस बच्चें का ? क्या करूँ यह समझा में नहीं आता I घर हैं , सारी सुविधाएँ हैं ,रूपया पैसा हैं , पर सब बेकार और व्यर्थ लगता हैंI“ चिंटू की ऑंखें भीग गयीI “ ए ... चिंटू... मुझे माफ़ कर यार I“ अमरीक सिंह ने कहाँ , “ मुझे ऐसा नहीं कहना था I मेरी मंशा तुम्हें दु:ख पहुँचाने की कतई नहीं थीI “ सरदार अमरीक सिंह भी अब गंभीर हो गया था और लगातार अपनी दाढ़ी पर हाथ फेर रहा थाI क्या कहें यह उसे समझ में ही नहीं आ रहा था I मित्र मंडली में रामू की बीमारी की ही एक चिंता थी, पर अब चिंटू के निपुत्रिक होने और उसकी पत्नी की बेहद खराब मानसिक हालत के लिए भी चिंता व्याप्त हो चुकी थीI यह वेदना सभी को तीव्रता से महसूस भी हो रही थीI थोड़ी देर तक वातावरण में ऐसी ही गंभीरता छायी रही फिर अचानक चिंटू ही बोल पड़ा, “आश्चर्य है, आश्चर्य ही हैI “ सब ने एक स्वर में पूछा , “क्या ?“ “अरे हमारा अमरीक सिंह भी गंभीरतापूर्वक सोच सकता हैI “ एक बार फिर से सब को हँसी आ गयी और ये चारों मसखरे जोर से हँस पड़ेI सरदार अमरीकसिंह का उसकी दाढ़ी पर हाथ फेरना कब का बंद हो चुका था I “ नहीं , पर अब तुम अकेले कतई मत रहो I “ चिंटू ने रामू से कहाँ , “ तुम्हें याद हैं हमें नौकरी मिलने पर हम दोनों ने एक ही कमरा लिया था किराये से और दोनों मिलकर ही खाना बनाते थे , खूब फ़िल्में देखते , धमाल करते I कितने अच्छे दिन थे I उन दिनों नौकरी एक जगह, रहना भी एक जगहI चौबीस घंटों का साथ थाI अब फिर से उसी तरह से दिन गुजारेंगे I रामू पुरानी यादों में खो गया , “हाँ वो भी क्या दिन थेI काश वे दिन फिर से लौट सकते ? चिंटू , तुम्हें याद हैं मुझे टायफाइड हो गया था तब तुम कितने परेशान हो गए थे I वो डॉक्टर को बुलाना , वो मेरी सेवा करना , मुझे फल खिलाना , सब .... सब मुझे याद हैं I“ “मुझे अच्छी तरह से याद हैं I कुछ भी भूला नहीं हूँ मैं I तुम्हें तेज बुखार था और मम्मी ....मम्मी ...पापा ....पापा ...की तुम्हारी रट बंद ही नहीं हो रही थी I मैं भी घबरा गया था I तुम घर जाने को तैयार ही नहीं थे और मुझे तुम्हारे घर पत्र लिखकर खबर भी नहीं करने दे रहें थेI तुम्हें यह डर सता रहा था कि तुम्हारे मम्मी पापा घर से इतनी दूर लगी लगायी तुम्हारी नौकरी छुड़वा देंगेI आखिर तुम्हारा बुखार उतरता ना देख कर चार दिन बाद मैं ही जबरन तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ कर आ गया था I रामू , जैसे उन दिनों मैंने तुम्हारी देखभाल की थी वैसे ही अब भी करूँगा रे I वैसे तुम्हारी भाभी भी बहुत अच्छे स्वभाव की ही है, करेगी देखभाल हम दो बच्चों कीI“ “दो की ही क्यों ? तीन की क्यों नहीं ? “ वाहिदअली बीच में ही बोल पड़ा, “अरे , मैं भी तो अकेला ही हूँ ना ? फिर मैं भी आता हूँ तुम दोनों के साथI मुझे तो पूछ ही नहीं रहे हो I“ “ ए ! वाहियात अली तेरी क्या जरुरत हैं वहां? “ अमरीक सिंह ने छेड़ा और वाहिद अली नाराज़ हो गया , “फिर वाहियात अली ? पिछले चालीस साल से बता रहा हूँ कि मेरा नाम वाहिदअली हैं, पर तू ठहरा निरा मूरख I सुधरने का नाम ही नहीं लेतI तूने ही मेरा नाम सब जगह बिगाड़ कर रखा हैं , अब मैं तुझे नहीं छोडूंगा I" “ क्या करेगा अब इस बुढ़ापे में तू ? ले तू भी बिगाड़ दें मेरा नाम ? बस हो गया ? नहीं मैं तो कहता हूँ तू मेरा नामकरण संस्कार ही कर डाल नए सेI “ अमरीक सिंह बोला और मंडली ने एक बार फिर जोर से ठहाके लगाएI वाहिद अली झेंप गयाI अमरीक सिंह बोला , “जाने दे रे छोड़ सब, पर मुझे यह बता तू चिंटू के यहाँ जा कर क्या करेगा ? तेरी तो बेटी तेरे साथ रह रहीं हैI फिर ?" वाहिद अली का विषय निकलते ही सब मित्रमंडली गंभीर हो गयी I वाहिदअ ली उदास हो गया I “अल्ला ने मेरे नसीब में मालूम नहीं क्या लिख कर रखा हैं ? “ वाहिद अली ने कहाँ I “क्यों क्या हुआ ? “ रामू ने पूछा I “तुम सब को तो मालूम ही हैं कि मेरी बीबी ने अर्थात वहिदा ने खुद को जला कर आत्महत्या कर ली थी I “ वाहिद अली कह रहा था , “हम दोनों में झगपड़े की वजह मेरा मेरे छोटे भाई बहनों का ज्यादा ख्याल रखना होता और भाई बहनों की जरूरतें पूरी करना होता I हर बात में अम्मी और अब्बू को तवज्जो देना भी उसे पसंद नहीं होता थाI अब्बू की तो एक छोटी सी सायंकाल मरम्मत की दुकान ही थी और उससे पूरे घर का गुजारा होना संभव ही नहीं थाI उस पर अम्मी हमेशा ही बीमार रहती थीI हम सब की परवरिश करते करते अब्बू के ऊपर कर्जे का भी बहुत बड़ा बोझा हो गया था I इसलिए मुझे जब नौकरी लगी तो मैं घर की जरूरतें पूरी करने लगा और यहीं बात वहीदा को पसंद नहीं थीI वह अपनी अलग गृहस्थी चाहती थी और जब तक छोटे भाई बहनों की जिम्मेदारी से मैं बंधा था मुझे उसकी यह इच्छा पूरी करना संभव नहीं थाI छोटे भाई की पढ़ाई पूरी होनी और छोटी बहन का निकाह, ये दो काम ऐसे थे कि वहीदा की ख़्वाहिश पूरी करना मेरे लिए संभव ही नहीं थाI रोज घर में झगड़े होते थे I फिर भी मैं संभालने की कोशिश करता I

ऐसे ही एक बार मेरी गैरहाजरी में अम्मी के साथ वहीदा का झगड़ा बहुत बढ़ गया और गुस्से में वहीदा ने अपने पल्लू को स्टोव से सुलगा लियाI आग इतनी जल्दी भड़की कि किसी को उसे बचाने का मौका ही नहीं मिलाI सारे रिश्तेदारों ने मुझे ही इसके लिए जिम्मेदार ठहराया कि मैंने दहेज़ के लिए अपनी बीबी को जलाकर मार डालाI वहीदा के मायके वालों ने मेरे ऊपर केस भी किया और बड़ी मुश्किल से मैं उसमें से निकल पायाI यह सारी बदनामियाँ और परेशानी झेलते झेलते मेरा जीना तो दूभर हो ही गया था, पर अम्मी अब्बू और छोटे भाई बहन की हालत भी कुछ अलग नहीं थीI अब इन सब बातों को तीस बरस से ज्यादा हो गए, पर उस वक्त अब्बू ने मेरे दूसरे निकाह के लिए बहुत कोशिश कीI बाद में स्थिति सामान्य होने के बाद बहुत से रिश्ते भी आये पर मैं ही मना करता रहाI अब्बू अम्मी का कहना था कि इस्लाम में चार निकाह किये जा सकते हैं , मेरा तो अभी एक ही निकाह हुआ हैं और उम्र भी हैं निकाह की I वहीदा से मैं बेइन्तहा मोहब्बत करता था और जब भी निकाह का विचार मन में आता, हर बार वहीदा का चेहरा मेरे सामने आ जाता I ऐसा लगता जैसे वह मुझसे कुछ मांग रही हैI आज इतने साल के बाद भी वहीदा का चेहरा मैं भूला नहीं पाताI “वाहिद अली बता रहा था और दोस्तों के कलेजे पर आघात हो रहा था I वाहिद अली के कंधे पर सांत्वना का हाथ रख कर रामू बोला , “जाने दे रे ... जो बीत गया सो बीत गया ....हमारे नसीब में जो लिखा हैं उसे कोई नहीं बदल सकताI पर अब इन सब बातों से क्या फायदा ? तुम्हारी तो एक बेटी है ना , उसकी ओर देखो I नयी उम्मीदों के साथ जीने की राह मिलेगी तुम्हेंI चिंता मत कर हम सब भी तुम्हारे साथ हैंI“ “अब उसीका तो ग़म है I “ वाहिदअली बोला , “ वहीदा की आत्महत्या के बाद हमें कहीं भी मुंह दिखाने की जगह नहीं बची थी I वहीदा गयी तब ज़ीनत चार साल की थी I वहीदा के साथ ही ज़ीनत भी घर में सबकी लाडली थीI वहीदा मुझसे हमेशा कहती थी कि उसे ज़ीनत को खूब पढ़ाना है, उसे अपने पाँव पर खड़ा होते देखना चाहती हैं वह, ताकि उसे औरत की लाचार जिन्दगी से आज़ादी मिल सकेI खूब पढ़ी ज़ीनतI अब चौतीस साल की हैI पर ज़ीनत का अभी तक निकाह नहीं हो सका हैं I यही ग़म हैं मुझेI “ “पर क्यों ? “ रामू ने पूछाI “ ज़ीनत पढ़ाई में बहुत अव्वल थीI“ वाहिद अली बताने लगा , “ मदरसे में वह हमेशा सबसे आगे रहतीI मैं तो नौकरी की वजह से हमेशा बाहर ही रहता था और ज़ीनत को अम्मी अब्बू के पास छोड़ मैं बेफिक्र भी था I अम्मी अब्बू भी उसका बहुत ख्याल रखतेI पर ज़ीनत जैसे जैसे बड़ी हो होती गयी , बाहर के लोगों के संपर्क में आने से वह वहीदा की आत्महत्या के लिए मुझे ही कसूर वार समझने लगी और उसके दिल में मेरे लिए एक नफ़रत सी पनपती गयीI आगे छठी कक्षा में उसे मदरसा छोड़ना पड़ा और सरकारी स्कूल में उसने ‘ संस्कृत ‘ यह ऐच्छिक विषय ले लिया और उसे संस्कृत भाषा से लगाव हो गयाI शुरू शुरू में हमने इसे उसका बचपना समझ कर ध्यान नहीं दियाI अब्बू उसकी तारीफ़ करते परन्तु अम्मी उसकी संस्कृत पढ़ाई के लिए नाराज़ होने लगी, उसे डांटती परन्तु वह अम्मी को क़ुरआन की आयते पढ़ कर सुनाती और अम्मी का दिल जीत लेतीI पर धीरे धीरे उसके संस्कृत पढ़ाई की बात सब जगह फ़ैल गयी और मदरसों से, मसजिदों से उसकी संस्कृत पढ़ाई के विरोध की बात सामने आने लगीI मोहल्ले में सब उसे नफरत भरी निगाहों से देखने लगेI परन्तु इस खिलाफत से ज़ीनत की संस्कृत सिखने की ज़िद और बढ़ती गयीI मैं तो बाहर रहता था पर अम्मी अब्बू का जीना मुश्किल हो गया थाI आगे उसने संस्कृत में एम.ए. किया और पीएचडी भी कर लय I“ “अरे पर इसमें बुराई क्या हैं ? यह तो बहुत ही अच्छी बात हैंI“ चिंटू बोलाI “बुराई कुछ भी नहीं ऐसा तुम समझ रहे होI पर हमारे समाज में संस्कृत सीखना और सिखाना यह हजम होने जैसा नहीं थाI

वहिदा की आत्महत्या का मामला बार बार उठा कर अब ज़ीनत को भी संस्कृत के लिए ताने मिलने लगे थे, और इसका उसके मन पर कुछ ऐसा प्रभाव पड़ा कि उसकी मेरे प्रति नफ़रत बढती गयी I इन सब बेइज्जती को दरकिनार कर ज़ीनत ने एक कॉलेज में संस्कृत पढ़ाने की नौकरी प्राप्त कर ली I बहुत जल्द ही प्रोफ़ेसर के पद तक पहुँच गयी और इतना ही नहीं संस्कृत भाषा के अनेक ग्रंथों का उसने उर्दू में अनुवाद किया, और दो बार विश्व संस्कृत सम्मेलन में जर्मनी भी शिरकत कर के आई हैं I" “ यह तो सब अच्छा ही है ? “ रामू बोलाI “ हाँ I पर हमारे समाज ने ज़ीनत को ताने मारना बंद नहीं कियाI कट्टर पंथी हमेशा उसके पीछे पड़े रहते थे और उन लोगों ने उसका जीना दूभर कर दियाI एक तरह से ज़ीनत के संकृत पढ़ाने के कारण हमारा हुक्कापानी जैसे बंद कर दिया होI इसीलिए इसी संस्कृत प्रेम के कारण मेरी ज़ीनत का अब तक निकाह नहीं हो पायाI “ वाहिदअली कह रहा था I – “क्या ? “सब को आश्चर्य का धक्का पहुंचाI शुरुआत में कहाँ गया कि हमारे घर में वहीदा ने आत्महत्या की थी इसलिए किसी को हमारे घर में रिश्ते नहीं करना इसलिए ज़ीनत के लिए कोई रिश्ता नहीं आया I फिर कहाँ गया कि संस्कृत भाषा मज़हब के खिलाफ हैं और जो संस्कृत पढ़ा रही हैं उसे मज़हब के खिलाफ माना गया इसलिए दिखने में सुन्दर होने के बावजूद ज़ीनत के लिए अच्छा रिश्ता आना ही बंद हो गया I हमारे यहाँ शिक्षण भी कम ही हैं , ऐसे में मैं अपनी उच्चशिक्षित बेटी को किसी के भी गले में कैसे क्या बाँध सकता था ? “ वाहिदअली बता रहा था और सभी ख़ामोशी से सुन रहें थे I –कॉलेज में पढ़ते हुए ही संस्कृत पढने वाले कर्मकांडी सनातन ब्राह्मण परिवार के एक सहपाठी से ज़ीनत का प्रेम हो गयाI वह लड़का भी ज़ीनत से बेइंतहा मोहब्बत करने लगा थाI दोनों ही बच्चे एक दूसरे के साथ जीने मरने की कसमें ले बैठेI अब हमारे परिवार पर यह एक और नयी मुसीबत आन पड़ी थीI वहीदा की आत्महत्या के बाद हमारे जिन रिश्तेदारों ने हमारा बहिष्कार कर रखा था वें ही लोग खुले आम हमें धमकाने लगे कि एक हिन्दू लड़के से ज़ीनत का निकाह नहीं होने देंगे I ज़ीनत के साथ ही हम सब का जीना मुश्किलात भरा हो गयाI अब्बू अम्मी को ही सब का सामना करना पड़ता थाI अब्बू ने ज़ीनत को समझाया , “हमारे यहाँ किसी भी मजहब की लड़की से निकाह हो सकता हैं पर हमारे यहाँ की लड़कियाँ किसी दूसरे मज़हब के लड़के से निकाह नहीं कर सकतीI हम बहुत ही साधारण परिवार से हैं, समाज की खिलाफत नही कर सकतेI“ परन्तु ज़ीनत अड़ गयीI आखिर अब्बू ने एक कठोर फैसला लिया और ज़ीनत को बताया , “निकाह करना हैं तो हमारे मज़हब के लड़के से हीI“ अब उस उम्र का ही कमाल था ज़ीनत अड़ गयी कि निकाह करेगी तो उसी लड़के सेI उसने अब्बू को चुनौती ही दे डाली कि उनके मज़हब का कोई उससे ज्यादा पढ़ा लिखा लड़का अगर वो ढूंढ कर ला सके तो वह अपने फैसले पर फिर से विचार कर सकती हैI 



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