मर्यादा
मर्यादा
उफ्फ ये लड़की भी ना ज़रा इसे अपनी उम्र का अंदाजा नहीं है। पूरे अड़तीस साल कि हो गई पर कपड़े देखो कैसे पहने हे जेसै16 -17साल की छोरी हो।
अभी इसकी शादी हुई होती तो चार पाँच बच्चों की माँ होती पर हमें क्या करना ।
ऐसा बोल चुगुलखोरों का झुंड अपने अपने काम पर निकल गया।
उनकी आवाजें मानो अचृना का कलेजा़ निकाल ले गई। अपने आप से बतियाते हुए उसने कहा लो आज फिर सुना गयी ।
मेरी भी शादी हुई होती तो मैं भी इन लुगाईयों के साथ बात कर किसी बड़ी उम्र की कुंवारी लड़की का कलेजा़ फूंक रही होती पर हमारे इधर तो एक मैं ही कुंवारी बची हूँ ,शादी के लिए ।
मुझसे भी छोटी लड़कियों की हो गयी सब की गोद भी भर गयी है ।
लेकिन मेरी उम्र ऐसे ढल रही हे जैसे पूर्णिमा का चाँद अमावस्या की तरफ बढ़ता है।
जो अपनी चमक, रूप, रंग, आकार खो बैठा ।
बालो की सफेदी बिना किसी छुअन के यूं ही बढ़ती जा रही है।
एक एक करके झुर्रियों ने अपना डेरा मेरे शरीर पर कर लिया हे ।
किया कोई अब भी मुझसे प्यार करेगा, अगर करता भी हे तो मेरे घरवाले शादी के लिए राजी नहीं होंगे ।
घर की मर्यादा कभी मुझे अपने मन की करने देगी।
मन की बात किससे कहे अपनी शादी की बात करना ना बाबा ना सोच कर ही डर लगता है।
घरवालों को सरकारी नौकरी वाला दमाद चहिए जो जात में भी हम से उपर हो आजतक इन सब पर कोई खरा नहीं उतरा।
उम्र का तराजू और शादी का पलड़ा खसकता़ सा जा रहा है।
और मैं यूं ही रह रही हूँ अपनी आंखों के सामने बराते आती हुयी।