मोहब्बत
मोहब्बत
मुसाफिर था दो पल तेरी सोहबत में ठहरा तो लगा
मोहब्बत वाकई में मिजाज घुमा देती है
प्यार तो तू भी करती थी, और मेरा प्यार तो बेशुमार था
ऐ दिल्लगी करने वाली जाते-जाते माफ तो कर जाती
अब अलविदा मोहब्बत तेरे दर से उठकर जा रहा हूँ
बाहें फैलाए दो वक्त की रोटी नहीं,
तुझसे दो पल की मोहब्बत मांगी थी
अपने गुनाहों के लिए पर्दा नहीं,
अपने गुनाहों के लिए तुझसे माफी माँगी थी
अब मैं फ़कीर बन, ना जाने किस राह पर चल दिया हूँ
तेरे पुकारने से भी नहीं आऊंगा
अब तेरी याद भी आएगी ना तो किताब में लिखकर
तेरा नाम, बस आँसू बहा लूँगा
पर अब अलविदा मोहब्बत
तेरे दर पर लौट कर कभी नहीं आऊंगा।