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आओ बात करें पार्क में जब एक बुजुर्ग ने मुझसे सीधे ये कहा तो मैं विस्मय में पड़ गई !भला आज के ज़माने में कौन सीधे इस तरह कहता है !मैंने विस्मय से उनकी ओर देखा पर उन आँखों में नमी और लाचारी देखकर मैं ठिठक गई ! मैंने बेंच पर बैठते हुए कहा कहिए क्या कहना है ।आपको उन्होंने कहा कुछ ख़ास नहीं बेटा तीन चार दिन से बिल्कुल अकेला हूँ किसी से एक शब्द भी बात नहीं की तुमको देखा तो मन हुआ कि तुमसे कुछ कहूँ सुनूँ मैंने पूछा आपके साथ कोई नहीं रहता तब वह बताने लगे मेरा भी भरा पूरा परिवार था ।पत्नी का निधन हो गया है बेटा और बेटी विदेश में सुखपूर्वक जीवन बिता रहे हैं ।कभी कभी उनसे बात हो जाती है,दो तीन साल में चक्कर भी लगा लेते हैं ।पर मैं रोज़ किसी से बात करने को तरस जाता हूँ आजकल जो भी आस पास होता है अपने यंत्र (मोबाइल) मैं बिज़ी होता है ।किसी से क्या कहूँ कोई बात करना ही नहीं चाहता है ।फिर वो अपनी सब बातें बताने लगे थोड़ी देर बाद बोले अच्छा बेटा मैंने तुम्हारा बहुत समय लिया मुझे क्षमा करना तुमसे अपने मन की कह सुनकर बहुत अच्छा लगा ,और धीरे धीरे उठ के चल दियेमैं दूर तक उन्हें जाते देखती रही और सोच रही थी !इन यंत्रों ने यूँ तो सारी दुनिया बदल दी सबको क़रीब कर दिया है पर मानव को मानव नहीं रहने दिया है ।