Deepali Saxena

Inspirational

5.0  

Deepali Saxena

Inspirational

मंगला का हार

मंगला का हार

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किसी नगर में मंगला नाम की एक औरत अपने पति सुयश और बच्चे पिंकी और राजू के साथ रहती थी।

मंगला का परिवार सामान्य वर्ग का था। सुयश एक निजी कम्पनी में नौकरी करता था और उसकी तनख्वाह से वो केवल जरूरते ही पूरी कर पाता था। मंगला की ख्वाहिशें बहुत बड़ी थी। वो जब भी किसी के पास कोई वस्तु देख लेती थी उसका मन उस तरफ ललचाने लगता था। ना जाने कितनी ही बार वो अपने आस-पड़ोस और नाते रिश्तेदारों से  वो अपनी आदत के अनुसार चीजें माँगती रहती थी। वो हमेशा कहती थी "लो कर लो बात, अब अपने ही अपनो के काम नही आएंगे तो कैसे अपने" उसकी इस आदत से सभी परेशान थे। उसके पड़ोस की औरतें तो उसे मंगु कहती थी, वे उसे देखते ही आपस में कहने लगती थीं लो आ गई मंगु मांगने ना जाने अब किस पर जी ललचाने लग जाए उसका और सभी हँसती थी।

सुयश ने उसे बहुत समझाया कि देखो मंगला ये सब गलत है हमारे पास जो है हमे उसमे गुजारा करना चाहिये। 

पर वो कहती थी, लो कर लो बात अरे भई अब मैं कोई खा थोड़े ही जाऊंगी अरे लौटा दूँगी उनके सामान। इस तरह वो किसी के कपड़े कभी ज्वेलेरी, बर्तन तो कभी खाने पीने का सामान मांगती रहती थी। 

वो रोज अपने बच्चों राजू और पिंकी को स्कूल छोड़ने और घर लाने जाती थी। उसके स्कूल के पास ही उसकी सहेली सुनीता का घर था। वो उस से भी चीजें मांगती थी पर सुनीता उसे खुशी खुशी सब दिया करती थी। अगर मंगु उसे यह कह देती कि हाय ये साड़ी तो बहुत अच्छी लग रही है तो वो साड़ी वो उसे दे देती थी। 

एक दिन मंगला को अपने परिवार के साथ किसी शादी में जाना था। तो वो सुयश से बोली कि मेरे पास कपड़े तो बहुत है पर गला मेरा खाली है। अगर कुछ गले के लिये मिल जाता था तो अच्छा हो जाता और आपकी इज्जत कितनी बढ़ जाती।

सुयश उसे कहता है देखो मंगला आज की ही तो बात है। अभी राजू और पिंकी की स्कूल की फीस भी भरनी है, और फिर तुम तो जानती ही हो इस महीने का बजट कितना बिगड़ गया है। अरे तुम तो वैसे ही सुंदर हो। क्या जरूरत तुम्हें किसी चीज की।

मंगला जबाब में मुस्कुराती है और कहती है लो कर लो बात मैंने कब आपसे कहा कि आप मुझे हार खरीद कर दो। आप भी ना नाहक ही परेशान होते हैं। अरे मैं तो यह कह रही थी कि वो मेरी सहेली है ना सुनीता पिछले हफ्ते ही उसके पति ने उसे नवलखा हार दिया है डेमण्ड का । आज के लिये मैं उस से वो हार मांग लूंगी, मेरा भी शौक हो जाएगा आपकी इज्जत रह जायेगी और पैसे भी बच जाएंगे।

सुयश यह सुनकर परेशान होता है और मंगला को मना करता है वो उसे समझाता है हीरो का हार। अरी भाग्यवान ये गलत है, जो हमारे पास है हमें उसमे खुश रहना चाहिए। राजू और पिंकी पर भी इसका गलत असर पड़ रहा है। कुछ तो सोचो इतना महंगा हार, अगर खो गया या चोरी हो गया तो कहाँ से लाएंगे इतने पैसे। सारी जिंदगी निकल जायेगी रुपये चुकाने में।

मंगला कहती है लो कर लो बात मैंने भला आज तक कुछ गुम होने दिया है। बस आज की बात है कल लौटा दूँगी। और फिर दोस्त दोस्त के काम नहीं आएगा तो कौन आएगा। मैं जा रही हूँ मुझे बच्चों को स्कूल से भी लाना है।

सुयश: पर सुनो तो।

मंगला स्कूल जाती है और फिर सुनीता से वो हार मांग लेती है।

सुनीता हिदायत के साथ वो हार उसे दे देती है। रात को मंगला और उसका परिवार शादी में जाता है। वहाँ मंगला सबको हार दिखाती है यह कह कर कि उसे उसके पति ने दिया है। 

मगर औरते मंगला की आदत जानती थी इसलिये सभी कानाफूसी करती है कि मंगु के पास हार, मांगा होगा किसी से। सब उसका मजाक बना कर हँसते है पर मंगला को इन सब से कोई फर्क नही पड़ता। कोई कहता नकली होगा तो दूसरा कहता लग तो असली रहा है।

थोड़ी देर बाद शीला नाम की औरत आती है और कहती है अरे मंगु मतलब मंगला तेरा हार कहाँ गया। उतार दिया, चुभ रहा था क्या ? नकली होगा तभी तो चुभ रहा होगा।

मंगला अपने गले पर हाथ रखती है तो उसे वो हार नही मिलता। वो परेशान होकर सब जगह ढूंढती है। फिर अपने बच्चों से पूछती है राजू, पिंकी तुमने हार देखा। 

वो पूरे हाल में ढूंढती रहती है पर उसे हार कहीं नही मिलता। तभी सुयश उसके पास आता है। मंगला रोने लगती है वो सुयश को बताती है कि हार चोरी हो गया। सुयश उसे डांटता है कि मैंने पहले ही कहा था अब कहां से लाएंगे हार। मना किया था कि तुम्हारी इसी आदत की वजह से किसी दिन हमे भुगतना होगा। पर तुम नही मानी अब रोना बाद में पहले ढूंढो। पर मंगला रोने लगती है और कहती है कि यहाँ नही है मैने सब जगह ढूंढ लिया। 

कुछ देर बाद वो लोग घर आ जाते है। सुयश मंगला से बात नहीं करता। मंगला अब भी परेशान है और रोती रहती है। पूरी रात मंगला सोती नही है। सुयश सुबह भी उससे बात किये बिना ऑफिस चला जाता है। शाम को जब वो घर आता है तो मंगला उससे कहती है सुनो जी इस बार मुझे बचा लो। मुझे माफ कर दो मैं वादा करती हूँ आगे से मैं किसी से कुछ नही मांगूगी। तुम जैसे रखोगे रह लूँगी पर मुझे माफ़ कर दो। 

इतने में सुनीता वहाँ आती है और कहती है अब बस भी करो सुयश। बेचारी ने सुबह से कुछ नही खाया। मंगला हैरानी से सुनीता को देखती है। तो सुयश और सुनीता एक दूसरे को देख कर मुस्कुराते हैं। सुयश, मंगला को बताता है कि पहली बात तो यह कि वो हार नक़ली है, दूसरी यह कि वो चोरी नहीं हुआ और तीसरी यह कि वो सुनीता का नहीं तुम्हारा है और फिर जेब से हार निकाल कर मंगला के गले में पहना देता है।

मंगला अपने आंसू पौंछती है और हैरानी से दोनों को देखती है तब सुयश उसे बताता है कि जब एक दिन वो राजू और पिंकी को स्कूल से लाने जाता है तो रास्ते में उसे सुनीता मिलती है और पिंकी सुयश को बताती है कि ये सुनीता आंटी है मम्मा की सहेली। फिर सुनीता और सुयश की बातचीत होती है। जिसमे सुयश, सुनीता को बताता है कि मंगला उसके बारे में बताती है। सुनीता, सुयश को कहती है कि मंगला का दिल साफ है बस उसमे एक ही बुरी आदत है कि वो अपने मन को रोक नहीं पाती।

इस पर सुयश, सुनीता से कहता है आप उसकी सच्ची दोस्त है तो क्या आप मेरी मदद करेंगी उसे बदलने में । इस पर वो कहती है हाँ हाँ क्यों नहीं। बताइये मुझे क्या करना होगा। और फिर वो उसे मंगला के लिए लाया हार उसे देकर बताता है कि हमे अगले महीने शादी में जाना है। तुम उससे पहले इस हार को उसके सामने अपना कहकर लाओगी। जहाँ तक मैं जानता हूँ वो तुमसे यह हार जरूर माँगेगी और फिर वो दोनों मंगला को सुधारने का प्लान बनाते हैं।

फिर सुयश उसे बताता है कि कैसे उसने शादी में उसके गले से वो हार निकाला। सुनीता, मंगला को समझाती है कि हमने जो कुछ भी किया तुम्हारे भले के लिये ही क़िया। भाई साहब चाहते तो तुमसे झगड़ सकते थे पर उन्हें घर की शांति की फिक्र थी। वो नहीं चाहते थे कि बच्चों पर गलत असर पड़े। आज हमने नाटक किया पर यह सच भी हो सकता था। सोचो कहा से करता सुयश ये इंतजाम। मंगला को अपनी गलती का एहसास होता है और वो दोनों से माफी मांगती है और धन्यवाद देती है आंखें खोलने के लिये जिस पर सुयश उसे गले लगाता है और कहता है, लो कर लो बात अपने ही तो अपनों के काम आते हैं, और तीनों हँसने लगते हैं।


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