Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Rakhi Hemani

Drama

4  

Rakhi Hemani

Drama

ममत्व

ममत्व

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ललिता की चाल आज कुछ अलग ही थी। जैसे ना कोई रोक पाएगा और ना ही उसके क़दमों के साथ क़दम मिला पाएगा। कंधे पर एक भारी सा झोला था। उसके अनेको मस्सों वाले चेहरे पर पसीना तो था, पर उसकी आखों में एक ग़ज़ब सा तेज़ था। इतना ख़ुश वो कब हुई थी, अब तो याद भी नहीं था।

थोड़ी ही देर में वो एक तीन मंजीला इमारत के सामने थी। साँस लेने के लिए रुक गयी। सारी के पल्लू से पसीना पूछा। तभी सामने से दया देवी आती दिखायी दीं।

“ कैसीं हो आप ?” अपने आप ही उसके मुँह से निकल गया। दया देवी को देखते ही उसने अपने हाथ और दिल फेला कर अभिनंदन किया।

“ठीक हूँ जीजी।”

“रास्ते में कोई तकलीफ़ ?”

“नहीं नहीं जीजी। यह तो आपका बड़पन्न है।” दया देवी ने मुस्कुराते हुए कहा।

“चलो अब आप कुछ खा लो।” यह कह कर ललिता ने अपना झोला खोल लिया।

ललिता

“ २० किलो लड्डू बटवाऊँगी जीजी। बस अब तो आने वाले का इंतेज़ार भर है।” ललिता बोली।

मन ही मन में सोच रही थी।

“क्या होगा ? क्या होगा ? पता नहीं कब दया देवी समझेंगी।”

“अर्रे जो होगा सो देखा जाएगा। होनी को कौन रोक पाया है।”

“जो भी हो बस सेहतमंद हो।” कह कर चुप हो गयी।

उमा

कमरे में लेटी उमा सोच रही थी, “ भगवान तु भी अजीब है। आज कितने दिनो बाद आराम का मौक़ा दिया है। पर यह दर्द। यह रह रह कर क्यूँ देता है ? बस एक बारी में देदो, मैं उफ़्फ़ तक ना करूँगी। फिर कुछ दिनो के लिए तो आराम होगा।”

“अब माँ के पास चली जाऊँगी। सब बहनो को बुलाऊँगी। मैंने भी तो ऽऽऽ” 

इतना सोच ही पायी थी, कि २० किलो लड्डू की बात उसके कानो में पड़ी। मन अजीब सी दुविधा में पद गया। “अर्रे इतना ख़र्चा ! पैसे तो हमें ही देने होंगे। इनके पास है ही क्या ?” 

अब दर्द और भी बढ़ गया।

दया देवी

“भगवान देखो मेरी लाज रख लेना। अंदर कितना तड़प रही है।”

“पहली बार में बेटा ही देना प्रभु।” 


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