मम्मी पापा गुम गए
मम्मी पापा गुम गए
दिन था मंगलवार, बहुत ठंड थी और शाम का समय था। हनुमान जी के दर्शन करने के लिए मैं अपने परिवार मेरी दोनों बहने , मम्मी, पापा के साथ मंदिर गई थी।
हम बहनें रोज साइकिल सीखने के लिए पापा मम्मी के साथ जाते थे। एक साइकिल चलाता था और बाकी दो से वे जीके पूछते थे। यदि किसी प्रश्न का उत्तर नहीं याद आता , फिर वे अपने अनूठे स्टाइल में थोड़ी सी हिंट देते। उदाहरण के लिए यूएसए की राजधानी क्या है ? इसके लिए बोलते कपड़े किस में धुलते हैं ? एक ही प्रश्न को बार-बार दोहराने से वह उत्तर हमारे मन मस्तिष्क में स्थाई हो जाता था। इस प्रकार सामान्य ज्ञान के प्रति जिज्ञासा बढ़ी और पढ़ने का शौक हुआ।
मम्मी से हम लोग विज्ञान के बारे में जानकारी प्राप्त करते थे। ऐसे करते करते विज्ञान के प्रति रुझान बड़ा, आविश्कारों के बारे में जानने की इच्छा जताई।
यह टहलना रोज़ की दिनचर्या में शामिल था।
एक शाम हम सब बिठ्ठन मारकेट सब्जीमंड़ी गए थे। थोड़ी भीड़ थी। हम सबका ध्यान सब्ज़ी खरीदने में था। इतने में पता ही नहीं चला कि कब मेरी एक बहन गुम हो गई। हम सब ढूंढते रहे परेशान होते रहे कि इतनी छोटी बच्ची ऐसे कहां चली गई।
पहले के जमाने में फोन या मोबाइल जैसी कोई सुविधा नहीं थी कि तुरंत लगा के पूछा जाए कि आप कहां पर खड़े हैं? आसपास वालों से पूछा की छोटी बच्ची को अकेले जाते हुए देखा क्या ? जिन्होंने सब्जी की दुकानें लगा रखी थी उनसे भी जानकारी ली, पर सफलता नहीं मिली।
समय बीतता जा रहा था शाम से रात हो चुकी थी और मन सबका बहुत घबरा रहा था। इस घटना के समय उसकी आयु लगभग 4 या 5 साल रही होगी।
हम दो बहनों को एक दुकान में बैठाकर मम्मी पापा ढूंढने चले गए। हम दोनों को भी डर लग रहा था , सहमे हुए थे कि क्या होगा हमारी बहन कहां चली गई?
समय बीतता जा रहा था और सबकी ह्रदय गति तेजी से बढ़ती जा रही थी। जब इस प्रकार कोई घटना हो जाती है तो मन में सबसे पहले बुरे विचार आते हैं कहीं कोई उठाकर तो नहीं ले गया ?? छोटा बच्चा समझ के किसी चीज का लालच देकर अपने साथ लेकर चला गया हो
मम्मी पापा की दशा देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे कलेजा ही बाहर आ गया हो आखिर दिल का टुकड़ा जो नहीं मिल रहा था। बहुत खोजबीन करने पर भी सफलता हाथ नहीं लगी।
लगभग 2 घंटे बीतने के बाद वही सब्जी मंडी में ढूंढते रहे। यह भी विचार आया कि क्या पुलिस को खबर करें।
ऐसा विचार कर ही रहे थे की अचानक से मेरे कंधे पर (मेरे बालों का रंग सुनहरा है उससे मुझे कोई भी बहुत जल्दी पहचान लेता है ) किसी ने हाथ रखा। मैं जैसे ही पलटी , मेरे सामने मेरी दीदी की सहेली थी। मेरी बुआजी की बेटी ( विभा ) जो भोपाल के कॉलेज में पढ़ती थी, उनके दोस्तों का आना जाना घर में रहता था। उनमें से ही एक दीदी को मेरी बहन सब्जी मंडी में रोती हुई मिल गई। और वे पहचान गई की ये तो विभा के मामा जी की बेटी है। वे हमें ढूंढते ढूंढते मेरी बहन को हमारे पास ले आई। हम लोगों की खुशी का ठिकाना ना रहा। भगवान ने हमारी प्रार्थना सुन ली।मम्मी पापा ने उनका बहुत शुक्रिया अदा करा और धन्यवाद दिया।
दीदी की सहेली ने हम सभी को बहन का वृतांत सुनाया, इतनी देर से जो मन में उथल-पुथल हो रही थी, नयनों में से अश्रु की धारा बह रही थी तुरंत ही मुस्कुराहट और हंसी के माहोल में परिवर्तित हो गई। उन्होंने बताया - यह अकेली मेरे को घूमते हुए मिली, ना रो रही थी बस यही सब को कह रही थी मेरे मम्मी पापा को ढूंढ दो ,मेरे मम्मी-पापा कहीं गुम गए हैं।
इतने छोटे बच्चे के मुंह से यह सुनते ही हम सब खूब हंसे और बस यही विचार आया कि बच्चों की मासूमियत भरी बातें बहुत ही प्यारी होती है। सही में भगवान का ही रूप होते हैं।
