Neeraj Kumar

Comedy

5.0  

Neeraj Kumar

Comedy

मिसेज शर्मा का झुमका

मिसेज शर्मा का झुमका

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शर्मा जी आजकल बड़े ही विकट स्थिति में फंस गए हैं । पिछले तीन चार वर्षों से पत्नी को दिलासा दे रहे थे कि सातवें वेतन आयोग की सिफ़ारिश लागू होने पर जो ऐरियर मिलेगा उससे उसके लिए कान का झुमका जरूर खरीद देंगे। साथ ही वेतन बढ़ोतरी के बाद एक अच्छी साड़ी, पैर की जूती वगैरह का भी वादा किया गया था। इन्हीं वादों को सुनकर मिसेज शर्मा चुप रह जाती थी। वह दिनरात चक्कर घिन्नी की तरह घूम कर काम करती रहती। सुबह सवेरे उठकर नाश्ता तैयार कर बच्चों को स्कूल भेजना, घर की सफाई, कपड़ों की सफाई, दो बार का खाना, शाम का नाश्ता, इसके अलावे भी तो घर में हजारों काम होते हैं, सब चुपचाप निबटाती रहती। इतना सब निबटाते-निबटाते मिसेज शर्मा को कभी टीवी देखने की भी फुर्सत नहीं मिलती और टीवी देखे भी तो क्या शर्मा जी का टीवी तो डब्बा था। वही टीवी जो शादी के समय मिसेज शर्मा अपने मायके से लेकर आई थी आज तक चल रहा था। बच्चे कहते डब्बा है डब्बा, पापा का टीवी डब्बा। बच्चों को इस टीवी को चलाने में महारत हासिल थी, जब टीवी थोड़ा सा झिलझिलाया कि उसके सर पर दो थप्पड़। हालांकि मिसेज शर्मा इससे आहत महसूस करती थी। इतने थप्पड़ तो उसने कभी अपने बच्चों को भी नहीं लगाया था। कितने प्यार से इस टीवी को उसके पापा शादी में देने के लिए खरीद कर लाये थे। शादी के समय घर में आए नाते रिशतेदारों को इसे छूने तक की  भी इजाजत नहीं थी। पापा का सख्त आदेश था कि कोई इसे हाथ नहीं लगाएगा। नया था तो टनाटन आवाज़ करता था। पिक्चर क्वालिटी तो ऐसी कि नाचते नाचते माधुरी दीक्षित मानो बाहर आ जाती थी। इसकी आवाज़ तो पूरा मुहल्ला सुनता था। लेकिन हर चीज की उम्र होती है। अब टीवी है तो क्या हुआ रिटाइर नहीं होगा? रिटायरमेंट की उम्र में बेचारा थप्पड़ खाकर चले जा रहा है। लेकिन मिसेज शर्मा भी क्या करती आखिर बच्चों को भी तो टीवी देखना जरूरी है। खुद तो उन्हें समय ही नहीं मिलता टीवी देखने का। रमेशर के खटाल पर जब शाम को दूध लेने जाती तो सभी औरतें तरह-तरह के सीरियल की चर्चा करती और वह मन मसोस कर रह जाती और हाँ हूँ कह कर काम चलाती। कभी कभी टीवी देखने का मन भी करता तो कुढ़ती कहती, “तिवारी जी के यहाँ देखो एलईडी आ गया है, पासवान जी के यहाँ तो यह.... ह... बड़ा बयालीस इंच का टीवी लगा है और अपने यहाँ तो डब्बा है डब्बा।"

शर्मा जी ने सोच कर रखा था कि ठीक है सातवाँ वेतन आयोग लागू होगा तो किश्त पर एक बड़ा टीवी खरीद लेंगे। बेचारी चुन्नु मुन्नी की मम्मी को कितना शौक है कि सोफे पर पसर कर टीवी देखे।

जिस दिन सातवाँ वेतन आयोग की सिफ़ारिश सरकार ने लागू करने की घोषणा की उसी दिन टीवी पर भी खूब न्यूज़ चला कि सरकारी कर्मचारियों का वेतन इतना बढ़ गया, उतना बढ़ा गया, देश पर भारी बोझ पड़ गया। देश पर बढ़ते इस बोझ से मिसेज शर्मा के दिल का बोझ यका यक हल्का लगने लगा था। उन्हें लगने लगा था कि उनकी सारी दमित इच्छाएं शीघ्र ही पूरी हो जाएगी। अखबार में भी इसी बात कि चर्चा थी कि सरकारी बाबुओं के वेतन में भारी वृद्धि हुई है। मिसेज शर्मा को लगा कि वह भरी बारिश के बीच खड़ी है और उसकी ठंडी-ठंडी फुहारे वेतन वृद्धि के रूप में उन्हें जी भर के भिगा रही है।

उनके मम्मी पापा ने भी उन्हें फोन पर बधाई दे दी, कहा – “इसलिए तो बेटा तुम्हारी शादी ऐसे घर में की है और देखो एक तुम्हारा भाई है लल्लन, बैंक में मैनेजर है पर उस बेचारे की सैलरी ही नहीं बढ़ती।"

मिसेज शर्मा इस पर चुप ही रही। सातवें वेतन आयोग के बढ़े वेतन के सपने ने उसे ऐसे गिरफ्त में ले रखा था कि वह कुछ भी बोलना अपनी तौहीन समझ रही थी वरना उसे अच्छी तरह याद है जब पिछली बार लल्लन की पत्नी से जब उसकी मुलाक़ात हुई थी तो कैसे उसने उसकी पुरानी साड़ी को लेकर कमेंट किया था। लल्लन की पत्नी ने कहा था “कम से कम शादी ब्याह के मौके पर तो, भाभी, अच्छी नयी साड़ी पहननी ही चाहिए” और फिर कैसे हुमक-हुमक कर अपना नया सोने का चेन और ब्रेस्लेट दिखाने लगी थी। मिसेज शर्मा क्या करती उसके पास तो शादी के वक्त का मिला हुआ ज़ेवर ही था, उसे ही घूमा फिरा कर पहनती रहती थी। अब तीन चार साल से कान के झुमके के लिए ज़िद करके बैठी थी तो शर्मा जी सातवाँ वेतन आयोग का भरोसा दिलाये बैठे थे। लल्लन का वेतन भी शर्मा जी से ज़्यादा था। क्लर्क में शुरू करके लल्लन आज शर्मा जी से ज़्यादा वेतन पा रहा था। बड़े ब्रांच का मैनेजर था। बढ़िया ऑफिस, घर का किराया भी बैंक ही देती थी। शर्मा जी 20 साल से एक ही पद पर घिसटते रहे थे।

जब से सातवें वेतन आयोग की घोषणा हुई थी मिसेज शर्मा के चेहरे पर रौनक बढ़ गयी थी। उधार में मिठाइयाँ खरीदी जाने लगी।

“बेचार मेरा चुन्नु-मुन्नू एक दो काजू बर्फी के लिए तरस गया। खाओ बेटा खाओ, अब रोज़ मिठाइयाँ मिलेंगी” मिसेज शर्मा कहती।

आम का सीज़न था। शर्मा जी कार्यालय से आते हुए आधा किलो आम लेकर आए। मिसेज शर्मा खीजकर बोली, “आप भी न सब दिन वही रहिएगा। इतना वेतन बढ़ गया है। समूचे देश में हल्ला है, ई नहीं कि पेटी लेकर आवें, आयें हैं आधा किलो आम लेकर। जाइए नहीं खाना है आपका आम, जात भी गंवाएंगे और भात भी नहीं खाएँगे”। 

शर्मा जी ने समझाते हुए कहा- “भाग्यवान, अभी एक बार बढ़ा हुआ वेतन मिल तो जाने दो, फिर करते रहना जो चाहे इच्छा हो”।

मिसेज शर्मा ने तो जेवेलरी की दुकान भी तय ली थी, जहां से झुमका खरीदा जाना है।

“सुनिए न जी, अभी तो सोना का दाम गिरा हुआ है, अगर मौका लगे तो डायमंड वाला झुमका बनवाएंगे” मिसेज शर्मा हुलसती इसपर शर्मा जी झुँझला कर कहते, “हाँ बनवा लेंगे”।

“ये जी! टोटल कितना पैसा बढ़ेगा और कितना एरिअर मिलेगा” – मिसेज शर्मा ने एक बार बच्चों सी जिज्ञासा से शर्मा जी के पैर दबाते हुए पूछा”।

“आहा! बड़ा अच्छा लग रहा है...दबाती रहो , कितने वर्षों के बाद किसी ने पैर दबाया है”...शर्मा जी ने कहा l

“हाँ नहीं तो मैंने तो कभी आपकी सेवा ही नहीं की। मैं तो बैठे ठाले पलंग तोड़ती रहती हूँ” मिसेज शर्मा ने मुंह बनाते हुए कहा।

उस मुंह बनाने में जो अंदाज़ था कि शर्मा जी को वो दिन याद आ गए जब उनकी नयी नयी शादी हुई थी और उनकी पत्नी की इन्हीं अदाओं पर वे रीझ जाया करते थे। उसके बाद से घर परिवार चलाने के झंझट में कभी इन बातों के लिए समय ही नहीं मिला।

“अगर सरकार हर साल वेतन आयोग लेकर आती तो कितना अच्छा रहता न?” शर्मा जी ने आँख मुंदे हुए कहा।

“हुंह सरकार को भला और कोई काम नहीं है तुम्हारे लिए वेतन आयोग बैठाती रहे। अच्छा बताओ न कितना वेतन बढ़ेगा, कितना एरिअर मिलेगा प्लीज़” मिसेज शर्मा ने फिर मनुहार किया।

“अरे मुझे नहीं मालूम है भाई जितना सबको मिलेगा मुझे भी मिल ही जाएगा, अब अभी से कितना माथा खराब करते रहें” शर्मा जी ने कहा ।

शर्मा जी ने इधर महसूस किया था कि उनके मकान मालिक का व्यवहार आजकल कुछ बदला बदला नजर आता है। एक दिन उनके मकान मालिक ने मौका देखकर उनको टोक ही दिया “और शर्मा जी सुना है हाउस रेंट बहुत बढ़ने वाला है आप लोगों का। हाँ भाई आप सरकारी लोगों की ही तो चाँदी है। बैठे बिठाये सरकार वेतन बढ़ाती रहती है। हमारा भी ख्याल रखिएगा” मकान मालिक गुप्ता जी ने अर्थपूर्ण मुस्कान बिखेरते हुए कहा ।

शर्मा जी किसी तरह गुप्ता जी से पिंड छुड़ा कर भाग लेना चाह रहे थे।

“हाँ हाँ ज़रूर" शर्मा जी ने हड़बड़ाते हुए कहा।

“अगले महीने से मकान का भाड़ा डबल लगेगा शर्मा जी” गुप्ता जी ने अपना बाउंसर फेंक दिया।

शर्मा जी गिरते गिरते बचे। “क्या हुआ शर्मा जी...इतना परेशान काहे हो गए? अरे भाई सरकार जब मकान भत्ता बढ़ा रही है तो आपको क्या दिक्कत है...? मकान भत्ता तो मकान मालिक के लिए ही बढ़ता है ना ?” गुप्ता जी उपदेशक की भांति प्रवचन देने लगे। शर्मा जी ने ऑफिस जाने के नाम पर किसी तरह गुप्ता जी से मुक्ति पायी और तेज़ी से घर के दरवाज़े से बाहर कदम बढ़ा लिया। 

एक दिन शर्मा जी ने निश्चित किया कि आज कार्यालय के अकाउंटस में जाकर पता कर ही आयें कितना वेतन बढ़ रहा है। बहुत सकुचाते हुए शर्मा जी अकाउंटस शाखा के डीलिंग असिस्टेंट के पास गए और उससे पूछा, “मेरे वेतन में कितनी वृद्धि हो रही है कुछ कैलक्युलेशन हुआ है क्या?”

डीलिंग असिस्टेंट ने मुसकुराते हुए कहा “कितना उम्मीद किए हैं सर?...अभी बैठिए दो मिनट कम्प्युटर से निकाल कर बताता हूँ” ।

“जी आपका इंकम टैक्स काटने के बाद कुल वेतन बढ़ेगा तीन हज़ार चार सौ छत्तीस रुपये, जो आपके खाते में जाएगा” डीलिंग असिस्टेंट ने कहा।

बस!! शर्मा जी इतने ज़ोर से चीखे कि ब्रांच के सभी लोग उनकी ओर देखने लगे। अचानक से हुए इस ध्यानकर्षण से शर्मा जी झेंप गए। उन्होने फिर से धीरे से डीलिंग असिस्टेंट से कहा, “बस!"   

“कितना उम्मीद किए बैठे थे.......?” डीलिंग असिस्टेंट ने हँसते हुए पूछा ।

“अभी आप बीस प्रतिशत के इंकम टैक्स ब्रैकेट में थे अब तीस प्रतिशत में चले जाइएगा तो टैक्स भी तो ज़्यादा कटेगा न सर” डीलिंग असिस्टेंट मुस्कुरा रहा था ।

“इस हिसाब से तो एरिअर भी ज्यादा नहीं बनेगा...?” शर्मा जी अब फुसफुसा रहे थे ।

शाम में शर्मा जी जब ऑफिस से घर के लिए चले तो उनके पैर ढाई-ढाई मन के हो रहे थे...आसमान में उड़ने वाला सफ़ेद बगुला कान का झुमका लिए दूर उड़ा जा रहा था। जूते की दुकानों के शो केस में सजे जूते उसे मुंह चिढ़ा रहे थे। ठेले पर आम वाला चिल्ला रहा था...लंगड़ा, बंबइया, मालदह, चौसा। गुप्ता जी का चेहरा यमराज की तरह नज़र आने लगा था और शर्मा जी के कानों में गुप्ता जी की आवाज़ कहीं दूर से आती हुई गूंज रही थी, “अगले महीने से भाड़ा डबल हो जाएगा शर्मा जी .....”

शर्मा जी के घर पहुँचते ही मिसेज शर्मा ने मुसकुराते हुए कहा, “ए जी! जानते हैं लल्लन की पत्नी अगले महीने यहाँ आ रही है उसे यहाँ डॉक्टर को दिखाना है” फिर उन्होने बहुत भोलेपन से पूछा...“तब तक तो एरिअर का पैसा मिल जाएगा न ?"


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