मगहर मैं मौत
मगहर मैं मौत
मरने लगे कबीर तो काशी छोड़कर चले गए। काशी लोग मरने आते हैं। मरे मराए लोग काशी मरने आते हैं।
खयाल है कि काशी में जो मरता है, वह स्वर्ग में जन्म लेता है।
काशी के पास एक छोटा सा गांव है, मगहर। कि जो मगहर में मरता है, वह गधा होता है नर्क में।
कबीर मरते वक्त मगहर चले गए। बहुत समझाया मित्रों ने, प्रियजनों ने, शिष्यों ने कि क्या करते हैं,
मगहर में कोई मरता ही नहीं! मगहर में आदमी मर भी जाए, तो उसके रिश्तेदार उसे लेकर भागते हैं कि अभी थोड़ी सांस चल रही है, मगहर के बाहर निकाल लो, नहीं तो नर्क में गधा होता है।
तो काशी लोग मरने आते हैं दूर—दूर से और तुम काशी जिंदगीभर रहे और मरने के वक्त मगहर जा रहे हो, दिमाग खराब तो नहीं हो गया!
कबीर ने कहा कि काशी में रहकर अगर मैं मरा और स्वर्ग में गया, तो कर्ता का भाव पकड़ जाएगा—अपनी वजह से। मगहर में मरूं, तो जहां उसकी मर्जी हो। नर्क का गधा बना दे,
तो भी उसकी मर्जी रही।
हम तो मगहर में ही मरेंगे। और अगर स्वर्ग गए तो फिर कह सकेंगे, तेरी अनुकंपा, तेरी कृपा। मरे तो मगहर में थे, होना तो गधा था। लेकिन काशी में मरकर अहंकार पकड़ेगा कि काशी में मरे, रहे काशी में, गए काशी—इसलिए। हमारे हर कर्म के पीछे कर्ता खड़ा हो जाता है, मैं कर रहा हूं।