मेरी प्रेरणा
मेरी प्रेरणा
बात उस समय की है जब हम पढ़ते थे। मैं थोड़ी चुलबुली थोड़ी शैतान हर लम्हे को भरपूर जीने वाली। कक्षा में हमेशा सेकंड और थर्ड आती थी।एक ही जुनून सबसे आगे निकलने का।हर काम सीखने का।
ड्राइंग टीचर की बेटी होने के नाते मेरी ड्राइंग तो अच्छी थी ही।
हम पढ़ाई के सिलसिले में हॉस्टल में रहने लगे। मैं अपने आप को खुशकिस्मत और सौभाग्यशाली समझती हूं कि मुझे मेरी रूममेट सारी की सारी जेबीटी या बीएड करने वाली मिली।
पढ़ने की शौक़ीन तो थी ही सो एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी
उनके साथ ही करने लगी।
साथ उनसे दोस्ती भी ही गई। मेरी एक सहेली poem लिखती थी और मुझे सबसे पहले पढ़ाती थी। एक दिन हमारी किसी बात पर तू तू मैं मैं हो गई और वो मुझसे रुष्ठ हो गई।
तो मैंने उस पर कुछ पंक्तियां लिखी_ बागों में एक कली खिली, ऐसा लगा सहेली मिली। जब मैंने चाहा उसे अपना शुरू कर दिया उसने मुरझाना....
ऐसे करके मैंने सात आठ लाइन लिखी और उसकी डायरी में रख दी।
जब उसने वो पढ़ी तो उसे यकीन है नहीं हुआ कि ये मैंने लिखीं हैं।फिर मैंने उसे दिखाया की बहना आप से प्रेरणा लेकर मैंने भी कुछ लिखा है और उसने पढ़ा तो वो हैरान रह गई। क्योंकि उसे लगा की वो अपनी ही रचनाएं पढ़ रही है, मुझे प्रेरित किया मेरी सहेली ने।