मेरी कहानी...।
मेरी कहानी...।
दिन रात परिश्रम करता वो पिता भी आज बोझ के तले दब गया जब उसके बच्चों ने ही उसको पराया समझ लिया
पिता जो धूप में बन जाता छाता है,
वो आज पांच पांच बेटो के होते अकेला है सचमुच कुदरत का करिश्मा भी देखो निराला है...,
"बचपन से लेकर जवानी तक जिस पिता ने हमको संभाला हमारा ध्यान रखा हमें उंगली पकड़ चलना सिखाया, हमारी ख्वाहिशों को पूरा किया आज हम उनके प्यार और दुलार का नहीं करते सम्मान..,"
सचमुच धिक्कार है ऐसी संतान पर...
लेकिन मेरी कहानी बिल्कुल अलग थी मैं और मेरी दी मेरा कोई भाई नहीं था फिर भी मैं बहुत खुशनसीब हूं मुझे जीवन में बहुत प्यारे रिश्ते मिले और उनसे मिला ढेरों प्यार या यूं कहूं मैं जहां जाती सबको अपना बना लेती बस इस बात का हमेशा अफसोस रहा कि मैं कभी पापा के बुढ़ापे का सहारा नहीं बन पाई
लेकिन इस बात की खुशी हमेशा रहेगी कि मैं जब तक पापा के साथ रही पापा का बेटा बन रही,
सब कहते भी थे दुकान मत जा...यह लड़कों का काम है कोई नौकर रख लो पर मैं फिर भी जाती फिर लोगों ने पापा से कहना शुरू कर दिया फिर मैंने दुकान जाना बंद कर दिया मैं बहुत रोई और सोचती अगर लड़का होती तो कोई कुछ भी नहीं कहता क्यों भगवान ने मुझे लड़की बनाया....
फिर जैसे जैसे मैं बड़ी हुई कॉलेज गयी तब मुझे मेरे गुरु जो कि मेरे बड़े भाई समान थे उन्होंने समझाया लोगों की सोच को हम कभी नहीं बदल सकते पर तू अपना तरीका बदल..
मैंने कहा वो कैसे तो उन्होंने कहा बेटा तू कुछ ऐसा कर कि तुझ पे पापा को गर्व हो खूब पढ़ाई कर और अच्छी जॉब कर पर घर में किसी को मेरा जॉब करना पसंद नहीं था फिर मुझे भैया ने लेखन क्षेत्र में जाने को कहा और मैंने अपने गुरु की बात मानी और आज लेखन के क्षेत्र में बहुत उपलब्धि प्राप्त की मेरी पांच कविताएं प्रकाशित हुई और मुझे अधिक सम्मानों से सम्मानित किया गया इसलिए मेरी जिंदगी में केवल एक व्यक्ति नहीं अपितु जिससे मैं मिली उसने कोई न कोई सीख मुझे अवश्य दी जैसे मेरे गुरु ने मुझे सही दिशा प्रदान की, पापा मम्मी ने अच्छे संस्कार दिए दोस्तों ने दोस्ती का महत्व समझाया इसलिए मुझे जीवन में जितने भी लोग मिले उन्होंने मेरे जीवन को नयी दिशा की और मैं उन सभी को तहे दिल से शुक्रिया अदा करना चाहूंगी।
