मेरी ईमानदारी का फल
मेरी ईमानदारी का फल
इस बार फिर मेरे 9 साल का बेटा अपनी क्लास में फर्स्ट आया है। मैंने सोचा इस महीने मिली तनख्वाह से उसे स्कूल की नई शर्ट और जूते दिला देता हूं। रविवार वाले दिन मैं अपने बेटे को लेकर बाजार गया। जैसे ही मैं उसे लेकर जूते की दुकान के बाहर पहुंचा,
उसने बोला कि ‘पापा मुझे नए जूते नहीं चाहिए।‘
मैंने पूछा कि ‘क्यों, तुम्हें नए जूते क्यों नहीं चाहिए ‘
तो बेटे ने जवाब दिया कि ‘अभी तो मेरे जूते ठीक हैं, बस उन्हें थोड़ा ठीक करवा लूं। फिर तो उससे इस साल आराम में काम चल जाएगा। आप मेरे जूते लेने के बजाए दादा जी के लिए नया चश्मा ले लीजिए, क्योंकि उन्हें उसकी ज्यादा जरुरत है।बेटे की ये बात सुनकर मुझे लगा कि शायद इसे अपने दादा जी से कुछ ज्यादा ही लगाव है, इसलिए ये ऐसा कह रहा है। मैं बिना कुछ कहे उसे स्कूल ड्रेस की दुकान पर ले गया। वहां मैंने दुकानदार को बेटे की साइज की सफेद शर्ट दिखाने को कही। दुकानदार बेटे के नाप का सफेद शर्ट निकाल कर लाया। मैंने बेटे को शर्ट डालकर देखने को कहा, तो उसने शर्ट पहनकर देखी भी। वो सफेद शर्ट बेटे पर बिल्कुल फिट बैठ रही थी, बिल्कुल उसकी साइज की, दुकानदार ने भी कहा ‘शर्ट तो एक बार में ही सही साइज की निकल गई। बच्चे को बिल्कुल फिट हो गई है। यही है इसके साइज की शर्ट। इसे पैक कर देता हूं।‘
तभी फौरन मेरे बेटे ने दुकानदार से इससे थोड़ी लंबी शर्ट दिखाने को कहा। मैंने बेटे से पूछा कि ‘लंबी शर्ट क्यों, ये साइज ही तो तुम्हें बिल्कुल सही आ रही है।‘
तभी बेटे ने जवाब दिया ‘पिताजी, मुझे शर्ट पैंट के अंदर ही तो डालना होता है, ऐसे में शर्ट लंबी भी हो तो की परेशानी नहीं है। शर्ट लंबी होगी तो अगले साल भी चल जाएगी। वैसे भी देखिए मेरी पहले वाली शर्ट भी तो अभी तक नई है, लेकिन छोटी हो गई है।‘
बेटे की ये बातें सुन मैं सोच में पड़ गया और खामोश हो गया। रास्ते में मैंने बेटे से पूछा कि ‘तुम्हें ये सब बातें सिखाता कौन है ?‘
तभी बच्चे ने जवाब दिया कि ‘मैं हमेशा देखता हूं कि आप और मम्मी अपनी जरुरत की चीजें छोड़कर मेरे स्कूल की फीस भरते हैं। आसपास पड़ोस के सभी लोग कहते हैं कि आप बहुत ईमानदार हैं। घर में भी मम्मी और दादी ऐसा ही कहती है। वहीं पास के पप्पू के पापा के बारे में सभी लोग बुरा- भला कहते हैं, जबकि वो भी आपके ऑफिस में ही काम करते हैं। मुझे अच्छा लगता है जब कोई आपको ईमानदार कहता है।‘
फिर बेटे ने कहा कि ‘पापा मैं भी आपकी तरह ईमानदार बनना चाहता हूं। साथ ही मैं आपकी ताकत बनना चाहता हूं, ना कि आपकी कमजोरी।‘
बेटे की ये बातें सुन मैं शांत हो गया। मेरे आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े और ऐसा लगा मानो मुझे मेरी ईमानदारी का फल मिल गया हो।