Bindushar Singh

Drama

4.3  

Bindushar Singh

Drama

मेरा भारत घूम गया है

मेरा भारत घूम गया है

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जब नगेन्द्र ने जनवरी में पहली बार कोरोनो वायरस के बारे में सुना तो बहुत खुश हुआ। चलो अच्छा है दुश्मन देश चीन कोरोना से बर्बाद हो जाएगा और अब भारत को दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बनने से कोई भी नहीं रोक पाएगा। 

पर तब CAA के समर्थन में रैली करने में व्यस्त नगेन्द्र के दिमाग में नहीं आया की जल्द ही कोरोना भारत भी आ जाएगा। वो तो बस यही सोच के खुश था की कोरोना के कहर से चीन चारों खाने चित हो जाएगा ।

नगेन्द्र की गली में रहने वाली सोफिया की कहानी कुछ अलग न थी। उसने भी जब पहली बार कोरोना के बारे में जनवरी में सुना तो वो भी फूले खुशी न समाई, उसे लगा मानो ऊपर वाले ने उसकी पुकार सुन ली, ऊपरवाले ने मानो कोरोना को नगेन्द्र और उसके साथियों को सबक सिखाने के लिए ही भेजा है और CAA विरोध रैली से वापस लौटती वो यही सोच रही थी की ऊपर वाले के घर देर है पर अंधेर नहीं।

पर जैसे ही CAA विरोध रैली से लौटती सोफिया अपनी गली के चौराहे पर पहुंची तो उसका सामना सामने से आते नगेन्द्र से हो गया, उन दोनों ने जैसे ही एक दूसरे को देखा तो उनकी सारी खुशी छूमंतर हो गई और उन दोनों की आंखे एक दूसरे के लिए गुस्से और नफरत से भर आयी। वो तो अच्छा है की देश में खून करने की सजा है वरना पता नहीं दोनों क्या करते।

वही गुस्से, नफरत से भरी सोफिया नगेन्द्र की उपेक्षा करते हुए अपने घर की ओर बढ़ गई। पर घर पहुँच कर भी उसके दिमाग में नगेन्द्र और उससे पिछले 5 महीने में हुई तकरार और लड़ाई-झगड़े ही घूमते रहे । सोचते-सोचते उसके दिमाग में अचानक सालों बाद वो बचपन के सुहाने और सुंदर दिन याद आ गए जहां नगेन्द्र उसके साथ एक ही क्लास में पढ़ा करता था।

वो स्कूल के प्यारे दिन जब सोफिया और नगेन्द्र एक दूसरे को देख के गुस्से और नफरत से नहीं भर जाते थे, तब तो वो अच्छे दोस्त हुआ करते थे। एक साथ स्कूल जाना और एक साथ वापस आना।

और जब स्कूल से रोज सोनिया और नगेन्द्र साथ लौटते तो गली के चौराहे पर परचून की दुकान पर रुक के टीवी देखना कभी न भूलते। तब टीवी भी नया-नया आया था और बुधू-बक्से दूरदर्शन के अलावा कोई और चैनल भी ना हुआ करता था।।

आज बरसों बाद सोफिया को लग रहा था की वो दूरदर्शन के दिन ही अच्छे थे। सुबह चित्रहार, शाम को रंगोली और सिर्फ एक घंटे की न्यूज।

पर जैसे किसी की गंदी नजर लग गई हो, कोरोना से भी गंदी नजर। और फिर TV, B TV, C TV, H TV, M TV और Z TV तक धड़धड़ाते हुए आ गए।

अब तो कोई बुधू बक्से दूरदर्शन को देखता भी नहीं है। सबके अपने-अपने पसंदीदा चैनल है जैसे सोफिया का H TV और नगेन्द्र का M TV।

जब भी M TV का देशभक्त पत्रकार सोफिया की टीम के लोगों का अपने प्रोग्राम में चीरहरण करता है तो नगेन्द्र खुशी और गर्व से भर जाता है की देशद्रोहियों को क्या अच्छा सबक सिखाया और सोफिया जब M TV के बातूनी पत्रकार को नगेन्द्र की टीम के लोगों के प्यार से कपड़े उतारते देखती तो वो यही सोचती की अगर कोई सच्चा पत्रकार है तो वो यही है, सलाम है इस पत्रकार को।

सोफिया पता नहीं कब यही सब सोचते-सोचते सो गई, कल उसे बहुत काम भी है। CAA विरोध के नए पोस्टर बनाने है, रैली के लिए अपने साथियों की मीटिंग ऑर्गनाइज़ करना है और हाँ सबसे जरूरी अपने पसंदीदा H TV टीवी के पत्रकार को नगेन्द्र और उसकी टीम की गरियाते देखना है।

जब अगली सुबह सोफिया उठी तो उसके दिमाग में न दूरदर्शन था, न स्कूल के पुराने दिन। उसके दिमाग में पिछले 5 महीनों की तरह सिर्फ CAA विरोध ही था और वो रोज की तरह आज भी हर जगह नगेन्द्र की टीम को हारने का संकल्प ले के उठी थी। Facebook में, Twitter में और अपनी गली में और इस धर्म युद्ध में H TV उसका सबसे बड़ा साथी था। जब से नगेन्द्र और उसके साथियों ने गली में चुनाव जीत कर कब्जा कर लिया है तब से H TV ही सोफिया के दुखी मन को तसल्ली और शांति देने का एक मात्र जरिया बन गया था।

अगले दिन सोफिया घर से निकली ही थी की सामने देखा नगेन्द्र अपने साथी के साथ बुलेट में बैठ कर CAA समर्थन के पोस्टर और झंडे लेकर जा रहा था, नगेन्द्र को भी जल्दी CAA समर्थन रैली की जगह पहुँचना था।

नगेन्द्र के दिमाग से चीन और कोरोना उतर गए थे,आखिर नगेन्द्र भी समझ गया था की देश के अंदर के दुश्मन को हराना बाहरी दुश्मन को हारने से ज्यादा जरूरी है क्योंकि देश के अंदर का दुश्मन दीमक की तरह घर को अंदर से ही चाट कर खत्म कर रहा है।

नगेन्द्र भी रोज-रोज के सोफिया और उसकी गैंग के विरोध प्रदर्शन और हल्लागुल्ला से परेशान हो गया था और इस बार आर या पार की लड़ाई के मूड में था । उसने तय कर लिया था इस बार वो सोफिया से 10 गुना बड़ी रैली करेगा और एक बार में ही सोफिया और उसकी रूदाली गैंग को हमेशा के लिए शांत कर देगा।

इधर  CAA का विरोध और समर्थन में उलझे हुए सोफिया और नगेन्द्र को पता ही नहीं चल की कब कपटी और शातिर कोरोना चुपके से उनकी गली में भी घुस आया।

कोरोना को ले कर नगेन्द्र और सोफिया की शुरुआती खक्षणिक ही साबित हुई, नगेन्द्र की सोच के उलट अब कोरोना चीन को छोड़ के भारत को ही डंस रहा था और सोफिया की सोच के उलट कोरोना उसके साथियों को ही ज्यादा निशाना बना रहा था।

पर अब भी वो दोनों पूरे जोर शोर से एक दूसरे को पछाड़ने में और एक दूसरे को हारने में ही व्यस्त थे और उनके M TV और H TV के पसंदीदा पत्रकार उनकी नफरत और दुश्मनी की आग में घी डालने में।

नगेन्द्र M TV में ये देख के खुश होता की कोरोना ने कैसे सोफिया की गैंग के ज्यादा लोगों को डँसा है और वो सोफिया की गैंग को कोसते अपने पसंदीदा पत्रकार को देख के गर्व से भर जाता, उधर सोफिया ये सोच के खुश थी कैसे नरेंद्र की सत्ताधारी टीम कोरोना को रोकने में नाकाम हो गई और कैसे कोरोना उसकी गली के अगले चुनाव में नरेंद्र की टीम के हारने का कारण बनेगा।

उधर गली के कोने में छुपे बैठे दरिंदे कोरोना से सोफिया और नगेन्द्र की दुश्मनी ज्यादा दिन चुप नई पाई और वो धूर्त और हिंसक कोरोना ये सोच के खुश हो रहा था की अब जब ये दोनों अपनी जानी दुश्मनी में व्यस्त है तो इनका सफाया करने का मेरा मकसद और आसान हो जाएगा।

और देखते ही देखते कपटी कोरोना ने पूरी गली में अपना जाल बिछा लिया। उसने न तो सोफिया के साथियों को छोड़ा और ननगेन्द्र के साथियों को।

अब सोनिया और नगेन्द्र की दिनचर्या में CAA के विरोध और समर्थन में लड़ने के अलावा एक और काम बड़ गया था, अपने-अपने साथियों के अंतिम संस्कार में जाने का काम।

रोज अपने एक साथी को खोता देख नगेन्द्र और सोफिया को एक बार लगा भी की आपसी दुश्मनी को भूल के कपटी कोरोना से एक साथ मिल के लड़ते है और कोरोना को अपनी गली से भागते है पर जब शाम को वो दM TV और H TV को देखते तो उनके अंदर की नफरत और दुश्मनी फिर जाग जाती।

M TV और H TV वाले भी कपटी कोरोना से कम करामाती न थे, उनके चक्कर में आ के नगेन्द्र की टीम ने सोफिया के सब्जी वाले साथी से सब्जी लेना ही बंद कर दिया और सोफिया की टीम ने नरेंद्र की सत्ताधारी टीम को अगले चुनाव में हराने के लिए social distancing मनाने से।

अब सोफिया और नगेन्द्र दिन में अपने-अपने साथियों को श्मशान घाट में आखिरी विदा करने जाते और शाम एक दूसरे को सोशल मीडिया में गाली देने में और अपने-अपने पसंदीदा चैनल पर एक दूसरी की खिली उड़ते देखने में बिताते।

ऐसा करते-करते पता ही नहीं चल की कब आज का दिन आ गया, आज सोफिया और नगेन्द्र अपने-अपने आखिरी साथी को श्मशान घाट में विदा कर के गली में वापस या रहे थे।

अब गली में सोफिया, नगेन्द्र और कपटी कोरोना के अलावा और कोई नहीं बचा था।

श्मशान से लौटते हुए सोफिया गली के चौराहे पर पहुंची ही थी की उसकी निगाहें सामने से आते नगेन्द्र पर पड़ गई।

आज जब उन दोनों की आंखें मिली तो आज बरसों बाद आज उनकी आँखों में एक दूसरे के लिए गुस्सा, नफरत और जहर नहीं था।

उनकी आँखों में आज एक अजीब सा खालीपन था - सबको खो देने का खालीपन।

सोफिया नगेन्द्र को कुछ देर गली के चौराहे पर टकटकी लगाए देखती रही और फिर पता नहीं कब उसकी आँखों से छल-छल करके आँसू की नदियां बहने लगी।

हमेशा अपने आप को मजबूत दिखाने वाला नगेन्द्र भी आज अपने आप को रोक नहीं पाया और वो भी दहाड़ मार के रोने लगा।

तभी अचानक गली में बिजली या गई और चौराहे के परचून की दुकान की टीवी चालू हो गई।

और टीवी से आने वाली सदियों पुराने गाने की आवाज उन दोनों के कानों में गूंजने लगी। हाँ बुधू-बक्से दूरदर्शन के गाने की आवाज।

“मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा, मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा“

और ये गाना सुनते-सुनते नगेन्द्र और सोफिया और जोर-जोर से रोने लगे।


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