मेहनत एवं सहयोग का फल
मेहनत एवं सहयोग का फल


गांव के एक सरकारी उच्च विद्यालय में मेरी नियुक्ति हुई थी। इस विद्यालय में मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चे पढ़ा करते थे। मैं अंग्रेजी विषय का शिक्षक था और बड़ी उत्साह और लगन के साथ बच्चों को पढ़ाया करता था। दिसंबर का महीना था सभी बच्चे जूते पहनकर विद्यालय आया करते थे परंतु एक विद्यार्थी जिसका नाम रोहन था इस ठंड में भी चप्पल पहन कर आया करता था। मुझे लगा कि जरूर इसकी कोई मजबूरी होगी अन्यथा कोई इस सर्दी के मौसम में आखिर चप्पल क्यों पहनेगा। वह विद्यार्थी पढ़ने में बहुत तेज था लेकिन उसके पोशाक और चेहरे से उसकी गरीबी की स्पष्ट अभिव्यक्ति हो रही थी। मैंने उसके बारे में दूसरे स्टाफ से पता किया तो पता चला कि वह एक अनाथ बच्चा है उसके पिता की मृत्यु 2 साल पहले किसी बीमारी की वजह से हो गई थी तब से उसकी देखभाल उसकी मां मेहनत मजदूरी करके करती थी। उसकी मां का सपना था कि मेरा बेटा एक कामयाब इंसान बने। गरीबी के बावजूद वह किसी के सामने हाथ नहीं फैलाता था ना ही किसी की सहायता स्वीकार करता था। पढ़ाई में इतना तेज था कि पूरे विद्यालय में उसके जैसा कोई विद्यार्थी नहीं था। अपना होमवर्क और टास्क हमेशा पूरा करके आता था।
मैंने एक दिन टेस्ट लेने की घोषणा की और टेस्ट में प्रथम आने वाले विद्यार्थी को पुरस्कृत करने का ऐलान किया। आशा के अनुरूप रोहन इस टेस्ट में प्रथम आया और मैंने उसे पुरस्कार स्वरूप एक जोड़ा जूता एक सुसज्जित पैकेट में पैक करा कर उसे दे दिया साथ ही मैंने इस पैकेट को घर पर जाकर खोलने की सलाह दी। वह बहुत खुश हुआ और अपना पुरस्कार लेकर घर चला गया। अगले दिन वह विद्यालय में मेरे द्वारा दिए गए जूते को पहनकर पढ़ने आया था मुझे बड़ी खुशी हुई। मैं उसे स्कूल टाइम के बाद भी पढ़ाया करता था। हर महीने टेस्ट में प्रथम आने पर मैं उसे पुरस्कार में किताबें कॉपियां और उसकी जरूरत के सामान देने लगा। वह मुझसे बहुत घुल मिल गया था मुझे उसकी मदद करके बेहद सुकून मिलता था। समय बीतता गया और बोर्ड की परीक्षा में रोहन स्टेट टॉपर बनकर पूरे विद्यालय का नाम रौशन कर दिया। सरकार की तरफ से उसे स्कॉलरशिप मिला और वह पढ़ने के लिए शहर चला गया। कुछ दिनों बाद मेरा भी तबादला दूसरे शहर में हो गया। मेरे नए विद्यालय में पढ़ाई का माहौल बहुत ही खराब था। ना तो बच्चों को पढ़ाई में दिलचस्पी थी और ना ही शिक्षकों को पढ़ाने का शौक। मुझे यह व्यवस्था बिल्कुल भी अच्छी नहीं लगी। मैंने अपने स्तर से शैक्षणिक माहौल विकसित करने का भरपूर प्रयास किया जिसका परिणाम भी दिखने लगा। उस विद्यालय के हेडमास्टर साहब सेवानिवृत्त हुए तो उ
नकी जगह मुझे हेड मास्टर बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मैंने सभी स्टाफ के साथ एक मीटिंग की और विद्यालय के शैक्षणिक माहौल को बेहतर बनाने में सहयोग करने की अपील की। सभी के सहयोग से कुछ ही वर्षों में विद्यालय जिले का नंबर वन विद्यालय बन गया।
अभिभावक अपने बच्चों को इस विद्यालय में एडमिशन दिला कर फूले नहीं समाते थे। क्षेत्र के लोगों में मेरे प्रति आदर की भावना जागृत हो गई थी। प्रत्येक वर्ष इस विद्यालय से स्टेट टॉपर विद्यार्थी निकलते थे। मुझे बहुत सुकून मिलता था कि मैंने जो सपने देखे थे वह साकार हो रहे हैं। मुझे मेरे इस उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए चुना गया था। मैं यह पुरस्कार पाकर बहुत गर्व महसूस कर रहा था। मुझे लगा कि ईश्वर ने मेरे मेहनत और लगन का खूबसूरत इनाम दिया है। मैंने अपने कार्यकाल को बहुत अच्छे ढंग से पूरा किया और मेरे रिटायरमेंट का समय आ गया। क्षेत्र के अभिभावक और विद्यार्थियों ने मिलकर मेरे विदाई के लिए एक शानदार समारोह का आयोजन किया। मुझे सम्मानित करने के लिए मुख्य अतिथि के रूप में जिलाधिकारी को निमंत्रण भेजा गया। इस समारोह में मुझे अभिभावकों एवं विद्यार्थियोंं द्वारा बहुत सारे पुरस्कार दिए गए सभी के आंखों में आँसू थे और एक अच्छे शिक्षक को खोने का ग़म था। इसी बीच जिलाधिकारी महोदय का आगमन होता है और वे जैसे ही स्टेज पर पहुँचकर मुझे पुरस्कृत करने के लिए आगे बढ़ते हैं अचानक वे मुझे और मैं उन्हें एकटक देखते रह जाते हैं। अगले ही क्षण जिलाधिकारी महोदय मेरे चरण स्पर्श करने के लिए झुक जाते हैं और मैं उन्हें उठाकर अपने गले लगा लेता हूं। दर्शक और सुरक्षाकर्मी आश्चर्य से हम दोनों को देखते रह जाते हैं। मैंने रोहन को पहचान लिया था और एक जिलाधिकारी के रूप में उसे देख कर मुझे अत्यंत प्रसन्नता हो रही थी। रोहन ने माइक अपने हाथों में लेकर अतीत की जो कहानी सुनाई उसे सुनकर वहां मौजूद लोगों के हृदय में मेरे प्रति आदर और बढ़ गया और मुझे तो अपना जीवन सफल महसूस होने लगा। समारोह समाप्ति के बाद जिलाधिकारी स्वयंं अपने गाड़ी से मुझे छोड़ने के लिए मेरे साथ सर झुकाया आगे बढ़ने लगे मैंने पीछे मुड़ कर देखा सभी लोगों की आंखों में आँसू थे और सभी के सर मेरे सम्मान में झुके हुए थे। आज मैंने शिद्दत से महसूस किया कि शिक्षक का पद वास्तव में बहुत सम्मानजनक पद है यदि शिक्षक अपने कर्तव्य का पालन निष्ठापूर्वक करें तो दुनिया उन्हें वह सम्मान देगी जो शायद किसी को मिलना संभव नहीं है।