मैं नशे में हूं
मैं नशे में हूं
बात उन दिनों की है जब पूरा देश प्रथम लॉकडाउन में "बंद" था। हम घर में पड़े पड़े "मुटिया" रहे थे और श्रीमती पर काम की दोहरी मार पड़ रही थी। ऐसे में उन्होंने हमें भी "मजदूरी" पर लगा लिया। वे इतनी भली हैं कि हम जैसे मजदूरों को रोटी के साथ साथ कभी कभी गुड़ की एक डली भी दे देती हैं। जिस दिन हमें गुड़ की डली मिल जाती है उस दिन कितनी दुआएं निकलती हैं आत्मा से, बता नहीं सकते हैं।
कल रात श्रीमती जी की फिर से कृपा हो गई थी और उन्होंने खाने में रोटी के साथ गुड़ की एक डली भी रख दी थी। कसम से मज़ा आ गया। गुड़ खा के ऐसा नशा चढ़ा कि उसने उतरने का नाम ही नहीं लिया। मुझे पता ही नहीं था कि गुड़ में भी इतना नशा होता है। एक बार मेरे बाबा बता रहे थे कि जो चीज हमारे पास नहीं होती है, अगर वो मिल जाये तो ऐसा नशा देती है कि सौ दारू की बोतलें भी कम पड़ जाए। आदमी नशे में मस्त हो जाता है। आज वो बात सच लगने लगी थी।
मेरा हैंगोवर अभी खत्म नहीं हुआ था। अचानक मोबाइल की घंटी ने सारा नशा उतार दिया। उधर से " निराशा "भाभी बोल रही थी। रोते रोते बोली।
" भैया जी, हम लुट गये, बर्बाद हो गये। हमें बचा लो भैया जी "
मैं सकते में आ गया। मुझे काटो तो खून नहीं। घबरा के मैंने कहा
" तनिक धीरज रखो भाभी। बताओ तो सही कि हुआ क्या है "
"क्या बतायें भैया। हमारो तो जीवन बर्बाद ही हो गया है। वो चिंटू के पापा ... " वे अपना वाक्य पूरा कर पाती इससे पहले ही वे सुबक पड़ीं
इस घटना से मैं घबड़ा गया और हड़बड़ी में बोला, "क्या हुआ पियक्कड़ सिंह को। वो सकुशल तो है ना " ?
" क्या खाक सकुशल हैं ? हमसे तो उनकी दशा देखी ही नहीं जा रही है "। वो हिलकी लेते लेते बोलीं।
मुझे मामला बहुत सीरियस नजर आया पर मैं कर भी क्या सकता था ? लॉकडाउन में जो फंसा हुआ था। पहले सारी बात तो पता चले उसके बाद देखेंगे कि क्या किया जा सकता है क्या नहीं ? इसके लिए पहले सारा वाकया जानना जरूरी था।
" पहले पूरी बात तो बताओ। फिर सोचेंगे कि क्या करना है " ? मैंने समझाते हुए कहा।
वो रोते रोते बोली, " भैया, चिंटू के पापा भांगड़ा कर रहे हैं "
मैंने आश्चर्य से पूछा " भांगड़ा कर रहे हैं ? और वो भी इस लॉकडाउन में ? लगता है कि उनको घर बैठे ही "कारूं का खजाना" मिल गया है। अरे, भांगड़ा कर रहे हैं तो करने दो उन्हें। यह तो अच्छी बात है। इसमें रोने का क्या है जो आप ऐसे रोये जा रही हो " ?
" आप समझ नहीं रहे हो भैया जी। ये आज सुबह से ही भांगड़ा कर रहे हैं। चार घंटे हो गये हैं इन्हें भांगड़ा करते करते, नॉनस्टॉप। अब तो लाइट भी चली गई है। पीपा पीट पीट कर ही भांगड़ा कर रहे हैं। मुझे तो ऐसा लग रहा है कि थोड़ा सा सरक गये हैं शायद "
उनकी बात सुनकर मैं थोड़ा चिंतित हुआ। मैं पियक्कड़ सिंह को बरसों से जानता हूं। दिल का बहुत नेक बन्दा है। यारों का यार है, दिलदार है। बचपन में इसका नाम प्यारा सिंह था लेकिन पीने की आदत ऐसी पड़ी कि रात और दिन, सुबह और शाम। बस एक ही काम, बस एक ही काम। हाथ में हरदम कम से कम एक जाम। इस आदत के कारण उसके घरवालों ने उसका नाम पियक्कड़ सिंह कर दिया था। तब से सब लोग उसे पियक्कड़ सिंह ही कहते हैं। अब तो खुद उसे अपना असली नाम पता नहीं है। एक दिन मैंने उसे आवाज दी " प्यारा सिंह " तो वह इधर-उधर देखकर बोला, " पा जी, ये प्यारा सिंह कौन है ?" मैंने कहा " सॉरी, मैंने गलती से तुझे प्यारा सिंह बोल दिया था "। वो बहुत नाराज़ हुआ और कहने लगा, " पा जी। आप चाहे मुझे गाली दे दो पर मेरा नाम पियक्कड़ सिंह ही बोला करो। इस नाम में एक नशा सा है और आप तो जानते ही हैं कि मैं नशे से कितना प्यार करता हूं ? "। तब से लेकर आज तक मैंने फिर कभी गलती नहीं की। मैं उसे पियक्कड़ सिंह ही कहता हूं अब। वह पीकर के भांगड़ा करता है ये तो जानता था पर इस तरह से घटिया हरकत पर उतर आयेगा कि पीपा पीट पीट कर नाचेगा, यह मैंने कभी सोचा नहीं था। पर वह पीपा क्यों पीट रहा था, कुछ पता नहीं था इसलिए मैंने निराशा भाभी से पूछा
" एकशबात तो बताओ भाभी कि हुआ क्या था ?क्या आपने सुबह-सुबह ही मायके जाने का शुभ समाचार सुना दिया था उसको "?
"नहीं भैया जी, ऐसी कोई बात नहीं थी। वो तो सुबह सुबह अखबार पढ़ रहे थे। अचानक जोर से बोल पड़े ' ओये, बल्ले बल्ले ' और टेप चलाकर भांगड़ा करने लग गये। पहले तो मैं खुश हो गई उनको भांगड़ा करते देखकर। चलो डेढ़ महीने तक घर में पड़े रहने के बाद भी ये भांगड़ा करने लायक तो हैं अभी। मैं तो सोचती थी कि इतने दिन लॉकडाउन में बंद रहने के बाद न तो ये तीन में रहे हैं और न तेरह में । लेकिन ये तो भांगड़ा करते गये करते गये। इतने में लाइट भी चली गई। फिर ये कबाड़ से एक पुराना पीपा उठा लाये और उसे ही पीट पीट कर फिर से भांगड़ा करने लग गए "।
मुझे अब पियक्कड़ सिंह से ईर्ष्या होने लगी थी। जब लोग कोरोना की दहशत से थर थर कांप रहे हों, लॉकडाउन में फंसे पड़े हों तब उसे कौन सा ऐसा कारूं का खजाना हाथ लग गया है कि उसके पैर रुकने का नाम ही नहीं ले रहे हैं ? पर अब ये समय जलने का नहीं है। इस पर फिर कभी देखा जायेगा। अभी तो उसके भांगड़ा करने का कारण तो खोजना पड़ेगा ना। लॉकडाउन के कारण मैं जा तो नहीं सकता था मगर फोन से तो कुछ कर,सकता था। इसलिए मैंने उनसे कहा
" एक बार आप मेरी पियक्कड़ सिंह से बात करा सकतीं हैं क्या "
वो सुबकते हुए बोली, "जी, कोशिश करती हूं "
और उन्होंने पियक्कड़ सिंह को मोबाइल दे दिया। पियक्कड़ सिंह ने पहले बात करने से मना कर दिया लेकिन जब उसे कहा गया कि मैं बात करूंगा तो वह बात करने को राजी हो गया। चाहे किसी की बात माने या ना माने लेकिन मेरी बात आज तक कभी टाली नहीं पियक्कड़ सिंह ने। सोच कर गर्व हुआ कि घर में चाहे अपनी औकात दो कौड़ी की नहीं है लेकिन बाजार में इज्जत बहुत है। सच में सीना फूलकर कुप्पा हो गया। घोर कलयुग में अगर ऐसा "भक्त" कहीं मिल जाये जो अपनी पत्नी की बात चाहे माने या ना माने लेकिन आपकी बात टाले नहीं, तो भक्त और भगवान की सी फीलिंग होने लगती है।
मैंने फोन पर कहा " अरे, पियक्कड़ सिंह। आज क्या कोई खजाना हाथ लग गया है जो इतना जश्न मना रहा है ? "
वो भांगड़ा करते करते बोला। " बस भाईसाहब पूछो ही मत। आज तो आनंद आ गया "
" तू अकेला अकेला ही वहां पर आनंद ले रहा है और हम लोग यहां लॉकडाउन में सड़ रहे हैं "
" आप भी भांगड़ा पाओ पा जी "
" अरे कैसे भांगड़ा पाऊं यार। कोरोना की दहशत कुछ करने ही कहां देती है " ?
" भूल जाओ पा जी कोरोना को। खबर ही कुछ ऐसी है कि आप सुनोगे तो आप भी डांस करने लगोगे, डांस " वह खुशी से झूमते हुए बोला
मैंने चिढ़कर कहा, " पहेलियां ही बुझाता रहेगा या कुछ दस्सेगा भी "
" भाईसाहब, सरकार अब लॉकडाउन 3.0 में शराब की दुकानें खोलने जा रही है और ये समाचार पढ़कर मेरे तो पांव रुक ही नहीं रहे हैं। "
अब जाकर सारा मजमून समझ में आया था। मैंने मन ही मन सरकार को कोसा। हरदम भेदभाव करती है यह हम चाय पीने वाले लोगों के साथ। इनके लिए तो दारू की दुकानें खुलवा दीं पर हमारे लिए चाय / लस्सी की एक दुकान तक नहीं खुलवाई ? अब महसूस होने लगा कि वास्तव में शराब कितनी महान है और चाय कितनी तुच्छ ?
पियक्कड़ सिंह की गिनती वी आई पी लोगों में होती है और हमारी गिनती आम लोगों में। कारण कि वह "सुरापान" करता है और हम ? हम अभी तक चाय पर ही अटके पड़े हैं। सरकार में बैठे सब नेता, अफसर, बड़े व्यवसायी, पत्रकार, कलाकार सबकी संजीवनी बूटी यह " शराब " ही तो है। इन लोगों ने डेढ़ माह से एक बूंद तक गले से नीचे नहीं उतारी है। कितना महान त्याग किया है इन लोगों ने। ये त्याग तो प्रधानमंत्री की कुर्सी त्यागने से भी बड़ा त्याग है। इस त्याग के चर्चे तो संपूर्ण भू लोक, स्वर्ग लोक और,पाताल लोक में होने चाहिए। इस अद्वितीय त्याग को देखकर मेरा मस्तक इन महानुभावों के प्रति स्वत: ही श्रद्धा से झुक गया।
अब कोरोना से लड़ने के लिए लोगों की ऊर्जा खत्म हो चुकी थी। बैटरी को रीचार्ज करना आवश्यक हो गया था। बिना रीचार्ज किए मोबाइल एक दिन भी नहीं चलता, ये बेचारे तो करीब डेढ़ महीने से चल रहे हैं। इसलिए इनको तो उसकी बहुत आवश्यकता है। पियक्कड़ सिंह भी उन लोगों की जमात में शामिल हो गया जो 'अंगूर की बेटी' के आशिक हैं। ये सब वी आई पी लोग हैं। अपना क्या है अपुन आम आदमी हैं और आम आदमी की औकात ही क्या है इस देश में ? महज कुर्सी प्राप्त करने का साधन।
लॉकडाउन लगने के तीन चार दिन बाद ही पियक्कड़ सिंह की तबीयत खराब हो गई थी। हॉस्पिटल में भर्ती कराना पड़ा था उसको। दो तीन दिन आई सी यू में रहा था वह। मगर उसा कोई फायदा नहीं हुआ। लगा कि भक्त और भगवान का संबंध यहीं तक था। अचानक मुझे याद आया कि पियक्कड़ सिंह तो बिना पिये एक मिनट भी नहीं रह सकता है। जब से लॉकडाउन हुआ है, इसके हलक में दारू की एक बूंद तक नहीं गयी है। क्या पता उसी के कारण इसकी तबीयत खराब हो। शायद दारू का "डिहाइड्रेशन" हो गया हो ?
मैंने निराशा भाभी को कहा कि आप के पास दारू की कोई बोतल वोतल है क्या ? मेरी यह बात सुनकर उन्होंने मुझे आग्नेय नेत्रों से देखा। मैंने बात संभालते हुए कहा कि इनको इस वक्त उसी बोतल की जरूरत है। थोड़ी सी दारू अगर अंदर चली गई तो संभवतः ये जी जाये नहीं तो ...
वे तुरंत समझ गईं। उन्होंने कहा कि हां, कुछ बोतलें मैंने इनसे छिपा कर रख दीं थीं। इनको उन बोतलों का पता नहीं है।
मैंने राहत की सांस ली और भारतीय नारियों पर गर्व महसूस किया। मुझे पता है कि भारतीय नारियां चोरी चोरी कुछ कुछ "माल" छिपाती जरूर हैं। जब सभी ऐसा करती हैं तो निराशा भाभी भी जरूर करती होंगी। संकट के समय में देवियां ही प्राण बचातीं हैं। चोरी चोरी ही सही कुछ पैसा बचाकर अपने पास रखतीं है जो आपातकाल में हमारे काम आता है। इसलिए मैंने सोचा कि भाभीजी ने आपात काल के लिए कुछ बोतलें भी छिपा कर जरूर रखीं होंगी क्योंकि आदतें बदलतीं नहीं हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि कुछ बोतल उन्होंने छिपा कर अपनी वार्डरोब में रख रखी हैं। मुझे लगा कि अब इस "सत्यवान" को भाभीजी रूपी "सावित्री" यमराज से छीन कर लें आयेंगी।
मैंने कहा कि इन्हें तुरंत डिस्चार्ज करवा कर घर ले चलो। घर पर एक दो बोतल दारू की चढवा देंगे तो शायद यह ठीक हो जाये। उन्होंने भी तुरंत सहमति दे दी।
घर ले जाकर उनको पहले व्हिस्की का एक पव्वा चढ़ाया गया। व्हिस्की का रस जैसे ही उसकी रगों में मिला उनके शरीर में हरकत होने लगी। फिर स्काॅच की बोतल चढ़ाई गई। स्कॉच के तो नाम में ही जादू है, तुरंत असर हुआ और उन्होंने आंखें खोल दी। वोदका के अंदर जाते ही तो वे उठकर बैठ गये। मैं भी मान गया कि कोई जमाने में संजीवनी बूटी हिमालय में उगती थी आज यह "संजीवनी बूटी" बोतल में बंद होकर गली गली में मिलती है। ऐसी संजीवनी बूटी उपलब्ध करवा कर सरकार ने न जाने कितने पियक्कड़ सिंहों के प्राण बचा लिये। सच में आज यही शराब लोगों की लाइफ लाइन बन गई है।
पियक्कड़ सिंह के ठीक होने के बाद भाभीजी उसे रोज चखना खिलाती हैं और चुपके से उसमें कुछ बूंदें व्हिस्की की छिड़क देती हैं गंगाजल की तरह। बस उसी से जिंदा रहता आया है ये आज तक।
फिर मुझे ध्यान आया कि जयपुर तो रैड जोन में है और रैड जोन में तो शराब की दुकानें बंद ही रहेंगी। यही आदेश है अभी तो। तो फिर ये पियक्कड़ सिंह इतना भांगड़ा क्यों कर रहा है। मैंने अपनी जिज्ञासा उसे बताई तो वह बोला
भाईसाहब, माना कि अपना जयपुर रैड जोन में है लेकिन पड़ौसी जिले दौसा, टोंक, अलवर, सीकर तो औरेंज जोन में है। वहां तो खुलेंगी ये दुकानें। बस अपना तो काम बन जाएगा।
मैंने कहा कि ये सभी जिले जयपुर से कम से कम 50 किलोमीटर दूर हैं। कैसे लायेगा ? लॉकडाउन भी तो है अभी भी ?
वो जोर से हंसा। कहने लगा। मेरे पिताजी कहा करते थे कि
रम, स्काच पांच कोसी, शैम्पेन पूरे बीस।
जो मिल जाए वोदका, तो दौड़ूं कोस तीस।।
अर्थात, रम स्कॉच के लिए 5 कोस, शैंपेन के लिए 20 कोस और वोदका के लिए 30 कोस तक दौड़ सकता हूं। भाईसाहब, मैं अपने बाप का बेटा हूं।माना कि उन जैसा पियक्कड़ नहीं हूं मगर उनसे कम भी तो नहीं हूं । अगर वे तीस कोस अर्थात 100 किलोमीटर दौड़ कर दारू ला सकते थे तो मैं तो 150 किमी तक दौड़ सकता हूं। पड़ौसी जिले इससे ज्यादा दूर तो नहीं हैं ना।
मुझे पियक्कड़ सिंह की क्षमता पर कोई संदेह नहीं था। लेकिन मुझे लगा कि एक ही ब्रांड पीते पीते बोर नहीं हो जायेगा वो ? इसलिए पूछ ही लिया। वो बोला
"आप रोजाना चाय पीते हो ? एक ही चीज दिन में चार बार पीते हो ? कभी बोर हुए हो उससे" ?
उसके अकाट्य तर्क के सामने मैं ढेर हो गया। कुछ कह पाता उससे पहले ही वो बोला
" मैंने सब इंतजाम कर लिया है, भाईसाहब। बकार्डी रम और जानी वाकर स्काॅच टौंक से, रायल स्टैग, इंपीरियल ब्लू, मैकडोनाल्ड नंबर वन और ऑफीसर्स चॉइस व्हिस्की अलवर से, ग्रीन मार्क, एब्सोल्यूट, स्मिरनोफ वोदका सीकर से शोचू, जिन, टकीला वगैरह दौसा से ले आऊंगा। सच में जिंदगी फिर से बन जायेगी अपनी तो। अब आयेगा मजा। "
अब तो मुझे अपनी हैसियत पर बहुत शर्म आने लगी। मुझे लगा कि पियक्कड़ सिंह उन लोगों में से हैं जो सदियों से पीते रहे और बरसों तक राज करते रहे। मैं बेचारा वह चायवाला हूं जो पहले भी चायवाला था और आज भी चायवाला ही है।
अब मैं भी भांगड़ा करके उसकी खुशी में चार चांद लगाने लगा। मैंने भी भांगड़ा शुरू कर दिया और गाने लगा
"मुझको यारो माफ करना, मैं नशे में हूं"
